बीमारी का बगैर दवाई भी इलाज़ है,मगर मौत का कोई इलाज़ नहीं दुनियावी हिसाब किताब है कोई दावा ए खुदाई नहीं लाल किताब है ज्योतिष निराली जो किस्मत सोई को जगा देती है फरमान दे के पक्का आखरी दो लफ्ज़ में जेहमत हटा देती है

Tuesday, 21 March 2023

चैत्र शुक्ल (बसंत नवरात्र) शुक्ल प्रतिपदा दिनांक 22 मार्च 2023 बुधवार को चैत्र नवरात्र प्रारंभ होंगे।

अंतर्गत लेख:

 चैत्र नवरात्र स्थापना 

  22 मार्च 2023 बुधवार 

                                          

🔸चैत्र शुक्ल (बसंत नवरात्र) शुक्ल प्रतिपदा दिनांक 22 मार्च 2023 बुधवार को चैत्र नवरात्र प्रारंभ होंगे।

🔸घटस्थापना (देवी आह्वान) के लिए देवी पुराण व तिथि तत्व में प्रातः काल का समय ही श्रेष्ठ बताया गया है अतः इस दिन प्रातः काल में द्विस्वभाव लग्न में घट स्थापना करनी चाहिए।

🔸इस वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा बुधवार को सूर्योदय 6:23 बजे होगा और द्विस्वभाव लग्न प्रातः 7:31 बजे तक रहेगा, अतः 6:23 से 7:31 बजे तक घट स्थापना कर नवरात्र शुरू करने का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त रहेगा।(दिल्ली के समय अनुसार)

                                

🔸इसके बाद भी द्विस्वभाव मिथुन लग्न में दिन में 11:14 से 12:00 बजे तक भी घटस्थापना की जा सकती है।

🔸चौघड़िया के हिसाब से घट स्थापना करने वाले प्रातः 6:23 से 9:28 बजे तक लाभ व अमृत के चौघड़िया में व दिन में 11:14 से 12:00 बजे तक शुभ चौघड़िये में के पूर्वार्ध में घट स्थापना कर सकते हैं।

⚛️नवरात्रि कलश स्थापित करने की दिशा और स्थान-:

कलश को उत्तर या फिर उत्तर पूर्व दिशा में रखें। जहां कलश बैठाना हो उस स्थान पर पहले गंगाजल के छींटे मारकर उस जगह को पवित्र कर लें। इस स्थान पर दो इंच तक मिट्टी में रेत और सप्तमृतिका मिलाकर एक सार बिछा लें। कलश पर स्वास्तिक चिह्न बनाएं और सिंदूर का टीका लगाएं। कलश के गले में मौली लपेटें।

⚛️कैसे करें कलश स्थापना-: 

नवरात्रि की पूजा में कलश स्थापना का विशेष महत्व है. कलश को श्रीविष्णु का रूप माना जाता है, इसलिए नवरात्रि से पहले घटस्थापना या कलश स्थापना की जाती है। कलश स्थापना अगर शुभ मुहूर्त में की जाए तो इसका विशेष फल मिलता है।

 कलश स्थापना से पहले घर के मंदिर को अच्छी तरह से साफ कर लें. इसके बाद पूजा के स्थान पर लाल कपड़ा बिछाएं. कलश के लिए वैसे तो मिट्टी का कलश सबसे शुभ होता है लेकिन अगर वो नहीं है तो तांबे का कलश भी चलेगा. इसे लगातार 9 दिनों तक एक ही स्थान पर रखा जाता है. कलश में गंगा जल या स्वच्छ जल भर दें. अब इस जल में सुपारी, इत्र, दूर्वा घास, अक्षत और सिक्का डालें. इसके बाद कलश के किनारों पर अशोक या आम के पत्ते रखें और कलश को ढक्कन से ढक दें. एक नारियल पर लाल कपड़ा या चुन्नी लपेट दें. अब नारियल और चुन्नी को रक्षा सूत्र या मोली से बांधें. इसे तैयार करने के बाद चौकी या जमीन पर जौ वाला पात्र (जिसमें आप जौ बो रहे हैं) रखें. अब जौ वाले पात्र के ऊपर मिटटी का कलश और फिर कलश के ढक्कन पर नारियल रखें।

उसके बाद आप विधि विधान से पाठ- पूजा उपासना करें, माता का ध्यान स्मरण करें व मंत्र जप करें, माता के प्रसाद का भोग लगाएं और माता की आरती करें।।


Posted By Lal Kitab Anmol03:29

Friday, 17 March 2023

भूमि-भवन सुख ओर ज्योतिष शास्त्र

 


१.-मंगल को भूमि का और चतुर्थ भाव का कारक माना जाता है, इसलिए अपना मकान बनाने के लिए मंगल की स्थिति कुंडली में शुभ तथा बली होनी चाहिए।   २.-मंगल का संबंध जब जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव से बनता है तब व्यक्ति अपने जीवन में कभी ना कभी खुद की प्रॉपर्टी अवश्य बनाता है।   ३.-मंगल यदि अकेला चतुर्थ भाव में स्थित हो तब अपनी प्रॉपर्टी होते हुए भी व्यक्ति को उससे कलह ही प्राप्त होते हैं अथवा प्रॉपर्टी को लेकर कोई ना कोई विवाद बना रहता है। ४.-मंगल को भूमि तो शनि को निर्माण माना गया है इसलिए जब भी दशा/अन्तर्दशा में मंगल व शनि का संबंध चतुर्थ/चतुर्थेश से बनता है और कुंडली में मकान बनने के योग मौजूद होते हैं तब व्यक्ति अपना घर बनाता है। 


 

👍५.-  चतुर्थ भाव का संबंध एकादश से बनने पर व्यक्ति के एक से अधिक मकान हो सकते हैं, एकादशेश यदि चतुर्थ में स्थित हो तो इस भाव की वृद्धि करता है और एक से अधिक मकान होते हैं। ६.-कुंडली में यदि चतुर्थ का संबंध अष्टम से बन रहा हो तब संपत्ति मिलने में अड़चने हो सकती हैं। ७.-जन्म कुंडली में यदि बृहस्पति का संबंध अष्टम भाव से बन रहा हो तब पैतृक संपत्ति मिलने के योग बनते हैं। ८.-चतुर्थ, अष्टम व एकादश का संबंध बनने पर व्यक्ति जीवन में अपनी संपत्ति अवश्य बनाता है और हो सकता है कि वह अपने मित्रों के सहयोग से मकान बनाएं। ९.-चतुर्थ का संबंध बारहवें से बन रहा हो तब व्यक्ति घर से दूर जाकर अपना मकान बना सकता है या विदेश में अपना घर बना सकता है। १०.-जन्म कुंडली में यदि चतुर्थ भाव पर अशुभ शनि का प्रभाव आ रहा हो तब व्यक्ति घर के सुख से वंचित रह सकता है, उसका अपना घर होते भी उसमें नही रह पाएगा अथवा जीवन में एक स्थान पर टिक कर नही रह पाएगा, बहुत ज्यादा घर बदल सकता है। ११.-चतुर्थ भाव का संबंध छठे भाव से बन रहा हो तब व्यक्ति को जमीन से संबंधित कोर्ट-केस आदि का सामना भी करना पड़ सकता है। १२.-👍चतुर्थ भाव का संबंध यदि दूसरे भाव से बन रहा हो तब व्यक्ति को अपनी माता की ओर से भूमि लाभ होता है। १३.-चतुर्थ का संबंध नवम से बन रहा हो तब व्यक्ति को अपने पिता से भूमि लाभ हो सकता है....!!


Posted By Lal Kitab Anmol10:15

Wednesday, 15 March 2023

कुंडली में गुरु के अनुकूल होने पर माना जाता है कि जातक अपने जीवन में खूब नाम कमाएगा

 बृहस्पति के स्वामी कौन है?


बृहस्पति के अधिदेवता इंद्र और प्रत्यधि देवता ब्रह्मा हैं। महाभारत के आदिपर्व में उल्लेख के अनुसार, बृहस्पति महर्षि अंगिरा के पुत्र तथा देवताओं के पुरोहित हैं।

ज्योतिष में गुरु की स्थिति

गुरु को ज्योयतिष में एक शुभ ग्रह माना गया है जो कि जातकों को करियर और धन संबंधी मामलों में लाभ प्रदान करते हैं। कुंडली में गुरु के अनुकूल होने पर माना जाता है कि जातक अपने जीवन में खूब नाम कमाएगा और उसे तरक्कीु के साथ शुभ फल और आनंद की प्राप्ति होगी। आज हम आपको बताने जा रहे हैं गुरु ग्रह की खूबियों के बारे में और आपके जीवन पर ये क्या प्रभाव डालता है।

गुरु प्रथम भाव में हो

अगर किसी जातक की कुंडली में गुरु प्रथम भाव में हो तो ऐसे लोग काफी विद्वान होते हैं और ये पेशे से ज्योरतिषी, तेजस्वीि, स्वांभिमानी, सुखी और सुंदर व धर्मात्माो होते हैं।

गुरु द्वितीय भाव में हो

किसी जातक की कुंडली में गुरु यदि दूसरे भाव में हो तो ऐसे लोग मधुरभाषी होते हैं। ऐसे लोग स्वेभाव से बहुत ही सदाचारी, शांत और पुण्याभत्माव होते हैं। ऐसे लोग अक्स।र व्यंवसाय को अपना पेशा चुनते हैं।

गुरु तृतीय भाव में हो

कुंडली में गुरु यदि तृतीय भाव में हो तो ऐसे जातक लेखक बनते हैं। ऐसे जातकों की रुचि विपरीत लिंग से संबंध बनाने में काफी होती है। ऐसे लोगों की अपने बहन और भाइयों से काफी पटरी खाती है। ऐसे लोग विदेश गमन भी करते हैं।

गुरु चतुर्थ भाव में हो

कुंडली के चौथे भाव में गुरु के होने पर जातक काफी शौकीन टाइप के होते हैं। ऐसे लोगों को आराम तलबी काफी पसंद होती है और इसके साथ ही ये सदैव उच्चल शिक्षा प्राप्तप करने के लिए प्रयासरत रहते हैं।

गुरु पांचवें भाव में हो

अगर किसी की कुंडली में गुरु पांचवें भाव में हो तो ऐसे लोग नीति में ज्ञान प्राप्ती करने वाले और स्वंभाव से काफी लोकप्रिय होते हैं। इनका अपने परिवार में सबसे ऊंचा स्थाकन होता है। ये ज्यो तिष भी बनते हैं।

गुरु छठें भाव में हो

अगर आपकी कुंडली में जातक छठें भाव में गुरु हो तो ऐसे लोग रोग से घिरे रहते हैं। ऐसे लोग मुकदमे में जीत हासिल करते हैं और सदैव सफलता प्राप्तह करते हैं व अपने शत्रुओं को भी पटखनी देने की क्षमता रखते हैं।

गुरु सातवें भाव में हो

अगर किसी जातक की कुंडली में गुरु सातवें भाव में होते हैं तो उनकी बुद्धि श्रेष्ठी होती है और ऐसे लोग भाग्यववान, नम्र और धैर्यवान होते हैं। ऐसे जातकों को धार्मिक कार्यों में काफी रुचि रहती है। इसके साथ ही ऐसे जातक सभी से मिलने-जुलने वाले होते हैं।

गुरु आठवें भाव में हो

जिनकी कुंडली के आठवें भाव में गुरु होते हैं ऐसे जातक दीर्घायु होते हैं और इनका मन अधिक समय तक पिता के घर में नहीं लगता और ये अपने जीवन में अपने दम पर कुछ हासिल करना चाहते हैं। ऐसे जातक सभी प्रकार के सांसारिक सुखों को प्राप्तक करते हैं। इनके भाग्यप में भी वृद्धि होती है।

गुरु नवें भाव में हो

जिन लोगों की कुंडली में गुरु नवें भाव में होते हैं ऐसे जातक सुंदर से मकान का निर्माण करवाते हैं और भाई-बहनों से विशेष स्ने ह रखते हैं। इस भाव में गुरु के होने पर जातक काफी प्रसिद्धि को प्राप्त करते हैं और इनका जन्मद एक अमीर परिवार में होता है।

गुरु 10वें भाव में हो

जिन लोगों की कुंडली में गुरु 10वें भाव में होता है ऐसे जातकों की प्रॉपर्टी में काफी रुचि रहती है। ऐसे लोग अपना घर बनवाने में सफल होते हैं। इन लोगों की पेंटिंग में काफी रुचि होती है। इस भाव में गुरु के होने पर जातक सदैव खुश रहना पसंद करते हैं। आर्थिक रूप से भी ऐसे जातक समृद्ध रहते हैं।

गुरु 11वें भाव में हो

जिन लोगों की कुंडली के 11वें भाव में गुरु होता है ऐसे लोग व्याॉपार में काफी दक्षता लिए होते हैं। ऐसे लोगों को बिजनस में काफी सफलता प्राप्तह होती है। इस घर में बृहस्पति अपने शत्रु ग्रहों बुध, शुक्र और राहु से संबंधित चीजों और रिश्तेदारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। नतीजतन, जातक की पत्नी दुखी रहती है।

गुरु 12वें भाव में हो

जिन लोगों की कुंडली में गुरु 12वें भाव में होते हैं ऐसे लोग स्वीभाव से आलसी, कम खर्च करने और कई बार तो दुष्टड प्रकृति के भी होते हैं। ऐसे जातक स्व भाव से काफी लोभी और लालची भी होते हैं। इस प्रकार के लोग धर्म कर्म में काफी यकीन करते हैं।

बृहस्पति का नंबर कौन सा है?

3 अंक के स्वामी – 3 अंक के स्वामी देवगुरु ग्रह बृहस्पति हैं। जिन लोगों का जन्म 03, 12, 21 या 30 तारीख को हुआ उनका मूलांक 3 है और इनके मूलांक स्वामी बृहस्पति हैं।

गुरु खराब होने के लक्षण (9 लक्षण)

शिक्षा और ज्ञान प्राप्ति में बाधा

काल्पनिक दुनिया में खोए रहना

शिक्षक या गुरु अच्छे नहीं मिलते

सही गलत चुनने की क्षमता घट जाती है

नैतिकता में कमी आ जाती है

ज्ञान का अहंकार हो जाना


पाचन ठीक से नहीं होता

नास्तिक हो जाना

गुरु ग्रह से कौन कौन सी बीमारी होती है?

बृहस्पति कमजोर हो तो व्यक्ति को लीवर, किडनी, प्लीहा आदि से संबंधित कोई रोग हो जाता है। वहीं इस ग्रह के प्रभाव से जातक को कान से संबंधित रोग, मधुमेह, पीलिया, स्मृति हानि, जीभ से संबंधित कोई समस्या, मज्जा दोष, यकृत पीलिया, मोटापा, दंत रोग, मस्तिष्क विकार आदि हो जाता है।

गुरु को मजबूत करने के लिए करें ये काम

बृहस्पतिवार का व्रत करना चाहिए।

बृहस्पतिवार को ओम ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम: मंत्र का जाप मंत्र का जाप 3, 5 या 16 माला कर सकते हैं।

नियमित रूप से भोजन में बेसन, चीन और घी से बने लड्डू का सेवन करना चाहिए। ...

गुरुवार को नाखून नहीं काटने चाहिए।

गुरुवार को बाल नहीं धोने चाहिए।

*गुरु ग्रह खराब हो तो क्या करना चाहिए?

उपाय : यदि आपका गुरु अशुभ या कमजोर है तो आप नित्य पीपल में जल चढ़ाएं, सदा सत्य बोलें और अपने आचरण को शुद्ध रखें तो गुरु शुभ फल देने लगेगा। इसके अलावा गुरु को शुभ करने के लिए सदा पिता, दादा और गुरु का आदर कर उनके पैर छुएं। गुरु बनाएं। इसके अलावा अन्य अचूक उपाय यह कि गुरुवार के दिन पीली वस्तु का सेवन करें।

*बृहस्पति ग्रह को मजबूत कैसे करें?

गुरु ग्रह को प्रबल करने के लिए आप अपनी शक्ति अनुसार शहद, पीले अन्न, पीले वस्त्र, फूल, हल्दी, पुस्तक, पुखराज, सोना आदि का दान कर सकते हैं. 6. जिनका गुरु ग्रह कमजोर होता है, उनको पुखराज पहनना चाहिए. इसके लिए आपको किसी योग्य ज्योतिषाचार्य की सलाह लेनी चाहिए.

*गुरु कमजोर होने पर क्या होता है?

- गुरु कमजोर हो तो जातक को पैसों की तंगी से जूझना पड़ता है. उनके कामों में बार-बार रुकावटें आती हैं. - कमजोर गुरु शिक्षा पाने में भी मुश्किलें लाता है. ऐसे में जातक को या तो पढ़ाई बीच में ही छोड़ने पड़ती है या वह मनमुताबिक पढ़ाई नहीं कर पाता है

*गुरुवार के उपाय

             ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर स्नान करें।

             स्नान के समय 'ॐ बृ बृहस्पते नमः' का जाप भी करें।

             गुरु के भी प्रकार के दोष को दूर करने के लिए आप गुरुवार के दिन नहाने के पानी में चुटकी भर हल्दी डालकर स्नान करें।

             इसके साथ ही साथ नहाते वक्त ॐ नमो भगवते वासुदेवायमंत्र का जाप जरूर जाप करें।

             गुरु उच्च का कब होता है?

             ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गुरु को कर्क राशि में उच्च् का माना गया है. यानि जब गुरु कर्क राशि में होते हैं तो ये उच्च के होते हैं. इस स्थिति में गुरु शुभ फल प्रदान करने वाले माने गए हैं. इसके साथ ही मकर राशि में गुरु को नीच का माना गया है

             गुरु नीच का कब होता है?

             कुंडली के तीसरे भाव में गुरु हो तो वह जातक को नीच स्वभाव का बना देता है। परंतु उसे सहोदर भ्राताओं का सुख भी प्राप्त होता है। तीसरे भाव का बृहस्पति जातक को समझदार और अमीर बनाता है, जातक अपने पूरे जीवन काल में सरकार से निरंतर आय प्राप्त करता रहता है। नवम भाव में स्थित शनि जातक को दीर्घायु बनाता है।

             गुरु कैसे खराब होता है?

             गुरु जब शुभ होते हैं तो व्यक्ति को पुरस्कार, मान सम्मान दिलाते हैं. लेकिन जब इसमें कमी महसूस होने लगे तो समझ लेना चाहिए गुरु अशुभ फल दे रहे हैं. उच्च पद प्राप्त करने में बाधा: जब उच्च पद प्राप्त करने में बाधा आने लगे तो समझ जाना चाहिए कि गुरु शुभ नहीं है. इस तरह की दिक्कत आने पर गुरु का उपाय करना चाहिए.

             गुरु ग्रह से आशीर्वाद कैसे प्राप्त करें?

             गुरु बीज मंत्र - "ॐ ग्राम ग्रीं सः गुरवे नमः" का प्रतिदिन 28 बार या 108 बार जाप करें। किसी धार्मिक स्थान जैसे बृहस्पति के मंदिर में लोगों को मिठाई या गुड़ का दान करें ताकि आपको ज्ञान और विस्तार का आशीर्वाद मिल सके। गरीबों के प्रति निःस्वार्थ सेवा करें या मंदिरों में स्वैच्छिक कार्य करें।

             गुरु को कैसे खुश रखें?

             बृहस्पति देव को प्रसन्न करने के लिए पीड़ित जातक को गुरुवार का व्रत अवश्य करना चाहिए. इस दिन पीले वस्त्रों को धारण करना भी श्रेष्ठ माना गया है. व्रत का पारायण भी पीले भोजन के साथ करना चाहिए. अगर आप राशि में गुरु कमजोर स्थिति में हैं तो इससे उत्पन्न होने वाली परेशानी से बचने के लिए कुछ चीजों का दान करना शुभ माना गया है.

 

*बृहस्पति के लिए कौन सा घर अच्छा है?

प्रथम भाव या लग्न में बृहस्पति मुख्य रूप से जातक के सामान्य स्वास्थ्य और व्यक्तित्व को दर्शाता है। यह प्रमुख घर है जो जन्म कुंडली में विभिन्न राशियों और ग्रहों की आगे की स्थिति तय करता है।

*आपको कैसे पता चलेगा कि बृहस्पति मजबूत है या कमजोर?

ऐसा माना जाता है कि हथेली की तर्जनी के नीचे का पर्वत बृहस्पति का प्रतिनिधित्व करता है। पर्वत का यही कहना है। नेगेटिव बृहस्पति - यदि पर्वत एक दूसरे को आड़ी-तिरछी रेखाओं से भरा हुआ है, तो बृहस्पति आपके लिए नकारात्मक भाव रखता है। कमजोर गुरु - चपटी पर्वत का अर्थ है कि आपकी कुंडली में बृहस्पति कमजोर है ।

*क्या गुरुवार को चावल खा सकते हैं?

यह भगवान विष्णु की पूजा करने का भी दिन है, जिन्हें पीला रंग पहनना पसंद है। इसलिए लोगों का मानना है कि खिचड़ी को कभी भी बनाना या खाना नहीं चाहिए, क्योंकि ये पीली मूंग दाल और चावल से बनती है. साथ ही, यह भी माना जाता है कि गुरुवार के दिन खिचड़ी खाने से 'धन हानि' होती है और दरिद्रता आती है।23 जून 2022

 

*मीठा खाने से बृहस्पति ग्रह मजबूत होता है?

जिनकी कुंडली में बृहस्पति या सूर्य मजबूत होता है, उन्हें मीठा खाना पसंद होता है. अगर बृहस्पति या सूर्य की वजह से परेशानी हो तो मीठा खाना बंद कर देना चाहिए. खट्टा स्वाद शुक्र का होता है.2

 

*गुरु दोष कैसे दूर करें?

विष्णु सहस्रनाम या बृहस्पति मंत्र का जाप आपको शांत रखेगा । यह सलाह दी जाती है कि गुरु चांडाल दोष के दौरान आपको गरीबों की मदद करने और आवारा पशुओं को खिलाने में खुद को शामिल करना चाहिए। कम भाग्यशाली लोगों को उपयोगी चीजें दान करने से इस दोष का प्रभाव काफी कम हो जाता है।

*गुरु की महादशा में व्यक्ति को क्या करना चाहिए?

गुरु ग्रह के उपाय

1.            बृहस्पतिवार का व्रत रखें। ...

2.            नहाने के पानी में हल्दी डालकर, उस पानी से नहाएं।

3.            गुरुवार के दिन मंदिर जाकर केले के पेड़ की पूजा करें।

4.            केले के पेड़ पर हल्दी, गुड़ और चने की दाल चढ़ाएं।

5.            गुरुवार के दिन गरीबों या जरूरतमंदों को पीली चने की दाल, केले और पीली मिठाई दान करें।

 

 

Posted By Lal Kitab Anmol12:36

Friday, 10 March 2023

चैत्र नवरात्रि पर्व में करें इन 10 नियमों का पालन, आप पर प्रसन्न रहेंगी माँ भगवती

अंतर्गत लेख:

✍🏻चैत्र नवरात्रि पर्व 22 मार्च 2023 से प्रारंभ हो रहे है, इस बार चैत्र नवरात्रि 09 दिनों की है, नवरात्रि का पर्वकाल मां दुर्गा देवी जी को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उत्तम माना जाता है  यदि आप भी इस वर्ष चैत्र नवरात्रि का व्रत या पूजन रखना चाहते हैं, तो उसके व्रत, पूजन नियमों के बारे में जानना जरूरी है, नियमपूर्वक व्रत करने और सही विधि से पूजा करने से ही चैत्र नवरात्रि के व्रत सफल होते हैं, नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा जी के नौ स्वरुपों की आराधना की जाती है, आइए जानते हैं चैत्र नवरात्रि व्रत के नियमों के बारे में, ताकि आपको व्रत का पूर्ण फल प्राप्त हो और माता रानी की कृपा आपको मिल सके।

चैत्र नवरात्रि पर्वकाल के नियम

✍🏻1:-  चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन यानी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को कलश स्थापना या घटस्थापना करना चाहिए, कलश स्थापना के साथ हम मां दुर्गा जी का आह्वान करते हैं, ताकि मां दुर्गा जी हमारे घर पधारें और नौ दिनों तक हम उनकी विधि विधान से पूजा करें।

2:-  कलश के पास ​एक पात्र में मिट्टी भरकर उसमें जौ बोना चाहिए,  उसे नियमित जल देना चाहिए, जौ की जैसी वृद्धि होगी, उस आधार पर इस साल के जुड़े संकेत आप प्राप्त कर सकते हैं, वैसे भी मान्यता है कि जौ जितना बढ़ता है, उतनी मां दुर्गा जी की कृपा होती है।

3:- यदि आप अपने घर पर मां दुर्गा का ध्वज लगाते हैं, तो उसे चैत्र नवरात्रि में बदल दें।

4:- यदि आप नौ दिन व्रत नहीं रख सकते हैं, तो पहले और अंतिम दिन नवरात्रि व्रत रख सकते हैं।

5:-  नवरात्रि के समय में कलश के पास मां दुर्गा जी के लिए अखंड ज्योति जलानी चाहिए, उसकी पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए।

6:- नवरात्रि के समय में दुर्गा सप्तशती का पाठ करें, आप नहीं कर सकते हैं, तो किसी वैदिक ब्राह्मण से कराये।

7:- नवरात्रि में लाल वस्त्र, लाल रंग के आसन का उपयोग करें।

8:- नवरात्रि पूजा के समय माता रानी को लौंग, बताशे का भोग लगाएं, तुलसी और दूर्वा नहीं चढ़ाएं।

9:- नवरात्रि पूजा में नियमित रूप से सुबह और शाम को मां दुर्गा देवी की आरती करें।

10:-  मां दुर्गा जी को गुड़हल (जासौन) का फूल बहुत प्रिय होता है, संभव हो तो पूजा में उसका ही उपयोग करें, गुड़हल न मिले, तो लाल रंग के फूल का उपयोग करें।

Posted By Lal Kitab Anmol14:02

Wednesday, 1 March 2023

होली पर विशेष उपाय

 

होली पर्व के दौरान होलिका दहन के अवसर पर आप अपनी राशि के अनुसार निम्न वस्तुओं की आहुतियां देकर सुख, शांति, समृद्धि व स्वास्थ्य में लाभ प्राप्त कर सकते हैं-:

मेष राशि -:

उपाय-: होलिका दहन में गुड़ की आहुति चढ़ाएं।

वृषभ राशि-:

उपाय-: होलिका दहन में मिश्री एवं नारियल गिट की आहुति चढ़ाएं।

मिथुन राशि -:

उपाय-: होलिका दहन में कपूर एवं इलायची की आहुति चढ़ाएं।

कर्क राशि-:

उपाय-: होलिका दहन तक चावल या सफ़ेद तिल की आहुति चढ़ाएं।

सिंह राशि-:

उपाय-: होलिका दहन में गूगल एवं गुड की आहुति चढ़ाएं।

 कन्या राशि-:

उपाय-: होलिका दहन में पान और हरी इलायची की आहुति चढ़ाएं।

तुला राशि-:

उपाय-: होलिका दहन में कपूर की आहुति चढ़ाएं।

वृश्चिक राशि-:

उपाय-: होलिका दहन में गुड़ की आहुति चढ़ाएं।

धनु राशि-:

उपाय-: होलिका दहन में हल्दी की गांठ व नारियल गिट की आहुति चढ़ाएं।

मकर राशि-:

उपाय-: होलिका दहन में काले तिल व लौंग की आहुति चढ़ाएं।

कुंभ राशि-

उपाय-: होलिका दहन में काली सरसों, लौंग व गूगल की आहुति चढ़ाएं।

मीन राशि-:

उपाय: होलिका दहन में पीली सरसों व गुड  की आहुति चढ़ाएं।।

होलिका दहन के अवसर कपूर, लौंग, गुड, गूगल आदि वस्तुओं की आहुतियां अवश्य देनी चाहिए, इससे वातावरण भी शुद्ध होता है और आपके स्वास्थ्य व समृद्धि के लिए भी लाभकारी होता है।।

Posted By Lal Kitab Anmol05:11

आमलकी एकादशी व्रत फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है अबकी बार यह व्रत 3 मार्च 2023 शुक्रवार को रखा जाएगा।

 

     3 मार्च 2023 शुक्रवार 


व्रत का पारण अगले दिन 4 मार्च शनिवार को सुबह 06:43 से सुबह 09:03 तक किया जाएगा।।

आमलकी एकादशी को आमलक्य एकादशी भी कहा जाता है। 

आमलकी का मतलब आंवला होता है, जिसे सनातन धर्म और आयुर्वेद दोनों में श्रेष्ठ बताया गया है। पद्म पुराण के अनुसार आंवले का वृक्ष भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय होता है। आंवले के वृक्ष में श्री हरि एवं लक्ष्मी जी का वास होता है। आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास होने की वजह से उसी के नीचे भगवान का पूजन किया जाता है, यही आमलकी एकादशी कहलाती है। इस दिन आंवले का उबटन, आंवले के जल से स्नान, आंवला पूजन, आंवले का भोजन और आंवले का दान करना काफी लाभकारी बताया गया है।


⚛️आमलकी एकादशी व्रत की पूजा विधि-: 

आमलकी एकादशी में आंवले का विशेष महत्व है। इस दिन पूजन से लेकर भोजन तक हर कार्य में आंवले का उपयोग होता है। आमलकी एकादशी की पूजा विधि इस प्रकार है-:

1. इस दिन सुबह उठकर भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत का संकल्प करना चाहिए।

2. व्रत का संकल्प लेने के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की पूजा करना चाहिए। घी का दीपक जलकार भगवान विष्णु जी के मंत्रों का जप करना चाहिए व विष्णु सहस्रनाम का पाठ भी कर सकते हैं।

3. भगवान विष्णु की पूजा में आंवले का फल भगवान विष्णु को प्रसाद स्वरूप अर्पित करें।

4. आंवले के वृक्ष का धूप, दीप, चंदन, रोली, पुष्प, आदि से पूजन कर सकते हैं।

5.एकादशी व्रत के दिन केवल फल, दूध इत्यादि का ही सेवन करना चाहिए।

6. एकादशी की व्रत करने वालों को तामसिक भोजन, लहसुन प्याज इत्यादि दशमी तिथि अर्थात व्रत के एक दिन पहले से ही त्याग देना चाहिए।

7. एकादशी तिथि के दिन चावल व चावल से बनी हुई वस्तुओं का सेवन बिलकुल नहीं करना चाहिए।एकादशी व्रत रखने वाले को किसी किसी भी तरह के अनाज का सेवन भी नहीं करना चाहिए।

8. एकादशी तिथि के व्रत रखने वालों को ज्यादा से ज्यादा मौन रहना चाहिए, किसी भी तरह की अनर्गल वार्तालाप से बचना चाहिए।

9. एकादशी तिथि का व्रत रखने वाले को ज्यादा से ज्यादा भगवान श्री हरि के नाम व मंत्रों का जप करना चाहिए।

10.भगवान श्री हरि को जब भी किसी वस्तुओं का भोग लगाएं तो उसमें तुलसीदल अवश्य छोड़ें। क्योंकि बिना तुलसीदल के भगवान  भोग ग्रहण नहीं करते।

11. एकादशी व्रत के अगले दिन यानि द्वादशी तिथि को स्नान कर भगवान विष्णु का पूजन करें, भगवान को सात्विक भोजन का भोग लगाएं और  किसी सात्विक प्रवृत्ति के व्यक्ति को दान दक्षिणा देने के उपरांत व्रत खोलना चाहिए।

🔯आमलकी एकादशी व्रत का महत्त्व-: 

पद्म पुराण के अनुसार आमलकी एकादशी का व्रत करने से सैंकड़ों तीर्थ दर्शन के समान पुण्य प्राप्त होता है। समस्त यज्ञों के बराबर फल देने वाले आमलकी एकादशी व्रत को करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो लोग आमलकी एकादशी का व्रत नहीं करते हैं वह भी इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु को आंवला अर्पित करें और स्वयं भी खाएं। शास्त्रों के अनुसार आमलकी एकादशी के दिन आंवले का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभकारी होता है।।



Posted By Lal Kitab Anmol04:51

Tuesday, 28 February 2023

मृत्यु के बाद किस लोक में स्थान प्राप्त करेगा कुंडली बताती है ।

अंतर्गत लेख:

 

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भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि आत्मा कभी मरती नहीं है। आत्मा शरीर बदलती है और जब तक मोक्ष प्राप्ति नहीं होती है तब तक आत्मा जीवन और मृत्यु के चक्र में रहती है। आत्मा का लक्ष्य है परमात्मा से मिलन यानि मोक्ष की प्राप्ति। लेकिन अपने कर्मों के बंधन में फंसकर जीवात्मा अनेकानेक योनियों में भटकता रहता है।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार व्यक्ति को अपने कर्मों के अनुसार वर्तमान जीवन के बाद किस लोक में स्थान प्राप्त होगा और व्यक्ति किस योनि और लोक से आया है यह उसकी कुण्डली से जाना जा सकता है। यहां कुछ सामान्य ज्योतिषीय योगों की जानकारी दी जा रही है जिससे यह पता किया जा सकता है कि व्यक्ति मृत्यु के बाद किस लोक में स्थान प्राप्त करेगा।  

स्वर्ग प्राप्ति योग

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ज्योतिषशास्त्र का एक नियम है कि कुण्डली के बारहवें घर में शुभ ग्रह हों अथवा बारहवें घर पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। आठवें घर में चन्द्रमा, गुरू, शुक्र का स्थित होना भी मृत्यु के पश्चात स्वर्ग प्राप्ति को दर्शाता है। जिनकी कुण्डली में पहले घर में गुरू होता है और चन्द्रमा को देखता है ऐसा व्यक्ति धार्मिक प्रवृति का होता है।


 


ऐसे व्यक्ति की कुण्डली में अगर आठवें घर में कोई ग्रह नहीं हो तो अपने सद्कर्मों से मृत्यु के पश्चात स्वर्ग में उत्तम स्थान प्राप्त करता है। इसी प्रकार जिनकी जन्मपत्री में दसवें घर में धनु अथवा मीन राशि हो और बारहवें स्थान में बैठे गुरू पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो व्यक्ति को स्वर्ग में देवपद मिलता है।

मोक्ष प्राप्ति योग

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बृहद् पराशर होराशास्त्र में लिखा है कि जिनकी कुण्डली में बारहवें स्थान में शुभ ग्रह बैठें हों और बारहवें भाव का स्वामी अपनी राशि अथवा मित्र की राशि में हों एवं उन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो ऐसा व्यक्ति अपने सद्कर्मों से मोक्ष प्राप्त करता है। वराह मिहिर ने अपनी पुस्तक वृहद्जातक में इस बात का जिक्र किया है कि, कुण्डली में सभी ग्रह कमज़ोर हों केवल गुरू कर्क राशि में छठे, आठवें, प्रथम, चतुर्थ, सप्तम अथवा दशम में तो ऐसा व्यक्ति मोक्ष का अधिकारी होता है। कुण्डली में गुरू मीन राशि में लग्न अथवा दशम भाव में हो और कोई अशुभ ग्रह उसे नहीं देख रहा हो तो यह मोक्ष प्राप्ति का योग बनता है।

नरक प्राप्ति योग

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जिस व्यक्ति की कुण्डली में राहु आठवें भाव में कमज़ोर स्थिति में हो और छठे अथवा आठवें घर का स्वामी राहु को देख रहा हो तो नरक प्राप्ति योग बनता है। वृहद् पराशर होराशास्त्र के अनुसार जिनकी कुण्डली में पाप ग्रह यानी सूर्य, मंगल, शनि, राहु बारहवें घर में हो अथवा बारहवें घर का स्वामी सूर्य के साथ हो वह मृत्यु के बाद नरकगामी होता है। बारहवें घर में राहु अथवा शनि के साथ आठवें घर का स्वामी स्थित हो तब भी नरक प्राप्ति योग बनता है।

Posted By Lal Kitab Anmol10:05

Friday, 24 February 2023

भूमि-भवन सुख ओर ज्योतिष शास्त्र मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव से बचने के 10 उपाय


🏻ज्योतिषाचार्य:- आचार्य लक्ष्मण सिंह स्वतंत्र


१.-मंगल को भूमि का और चतुर्थ भाव का कारक माना जाता है, इसलिए अपना मकान बनाने के लिए मंगल की स्थिति कुंडली में शुभ तथा बली होनी चाहिए।   २.-मंगल का संबंध जब जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव से बनता है तब व्यक्ति अपने जीवन में कभी ना कभी खुद की प्रॉपर्टी अवश्य बनाता है।   ३.-मंगल यदि अकेला चतुर्थ भाव में स्थित हो तब अपनी प्रॉपर्टी होते हुए भी व्यक्ति को उससे कलह ही प्राप्त होते हैं अथवा प्रॉपर्टी को लेकर कोई ना कोई विवाद बना रहता है। ४.-मंगल को भूमि तो शनि को निर्माण माना गया है इसलिए जब भी दशा/अन्तर्दशा में मंगल व शनि का संबंध चतुर्थ/चतुर्थेश से बनता है और कुंडली में मकान बनने के योग मौजूद होते हैं तब व्यक्ति अपना घर बनाता है।  ५.- चतुर्थ भाव का संबंध एकादश से बनने पर व्यक्ति के एक से अधिक मकान हो सकते हैं, एकादशेश यदि चतुर्थ में स्थित हो तो इस भाव की वृद्धि करता है और एक से अधिक मकान होते हैं। ६.-कुंडली में यदि चतुर्थ का संबंध अष्टम से बन रहा हो तब संपत्ति मिलने में अड़चने हो सकती हैं। ७.-जन्म कुंडली में यदि बृहस्पति का संबंध अष्टम भाव से बन रहा हो तब पैतृक संपत्ति मिलने के योग बनते हैं। ८.-चतुर्थ, अष्टम व एकादश का संबंध बनने पर व्यक्ति जीवन में अपनी संपत्ति अवश्य बनाता है और हो सकता है कि वह अपने मित्रों के सहयोग से मकान बनाएं। ९.-चतुर्थ का संबंध बारहवें से बन रहा हो तब व्यक्ति घर से दूर जाकर अपना मकान बना सकता है या विदेश में अपना घर बना सकता है। १०.-जन्म कुंडली में यदि चतुर्थ भाव पर अशुभ शनि का प्रभाव आ रहा हो तब व्यक्ति घर के सुख से वंचित रह सकता है, उसका अपना घर होते भी उसमें नही रह पाएगा अथवा जीवन में एक स्थान पर टिक कर नही रह पाएगा, बहुत ज्यादा घर बदल सकता है। ११.-चतुर्थ भाव का संबंध छठे भाव से बन रहा हो तब व्यक्ति को जमीन से संबंधित कोर्ट-केस आदि का सामना भी करना पड़ सकता है। १२.-👍चतुर्थ भाव का संबंध यदि दूसरे भाव से बन रहा हो तब व्यक्ति को अपनी माता की ओर से भूमि लाभ होता है। १३.-चतुर्थ का संबंध नवम से बन रहा हो तब व्यक्ति को अपने पिता से भूमि लाभ हो सकता है....!!

मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव से बचने के 10 उपाय और 5 मंत्र।

 मंगल ग्रह के उपाय 

1. मंगल की दिशा दक्षिण मानी गई है। दक्षिण दिशा में द्वार से दोगुनी दूरी पर एक नीम का पेड़ लगाएं। 

 2. नीम की दातुन करते रहने से शनि और मंगल के दोष दूर होते हैं। नीम की दातून करने से और भी कई ज्योतिष लाभ मिलते हैं।

3. आंखों में सफेद सुरमा लगाएं। सफेद सुरमा नहीं मिले तो काला सूरमा लगाएं।

4. घर से बाहर निकलते समय गुड़ खाना चाहिए। गुड़ खाएं और खिलाएं।

5. यदि आपको मंगल दोष है तो उज्जैन मंगलनाथ पर भात पूजा कराएं और अविवाहित हैं तो कुंभ विवाह करें।

 6. भाई सौतेला हो या सगा उससे अच्छे संबंध रखें।

 8. हनुमानजी की नित्य पूजा करें या हनुमान चालीसा पढें।

 9. एक सफेद ध्वज हनुमान मंदिर या किसी पीपल के वृक्ष पर लगाएं।

 10. मंगलवार के दिन गेहूं, गुड़, तांबा, मसूर, मूंगा, लाल वस्त्र, लाल फल, लाल फूल, लाल चंदन और लाल रंग की मिठाई आदि मंदिर में अर्पित करें।

मंगल के  मंत्र 

1. हनुमान मंत्र- ॐ हनुमते नम:।

 2. मंगल ग्रह का पौराणिक प्रार्थना मंत्र- 'ॐ धरणीगर्भसंभूतं विद्युतकान्तिसमप्रभम। कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम।। '

3. मंगल ग्रह का जप मंत्र- 'ॐ  क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:'

4. मंगल ग्रह का वैदिक मंत्र- ॐ अग्निमूर्धा दिव: ककुत्पति: पृथिव्या अय्यम्। अपां रेतां सि जिन्वति।।

5. मंगल ग्रह का तांत्रिक मंत्र : ॐ अंगारकाय नम:। 

6. मंगल ग्रह का गायत्री मंत्र : ॐ अंगारकाय विद्यहे शक्तिहस्ताय धीमहि, तन्नो भौम: प्रचोदयात्।

7. मंगल ग्रह का पूजा मंत्र : ॐ भोम भोमाय नम:। 

मंगल स्तुति- 

जय जय जय मंगल सुखदाता। लोहित भौमादित विख्याता।।

अंगारक कुज रूज ऋणहारी। दया करहु यहि विनय हमारी।।

हे महिसुत दितीसुत सुखरासी। लोहितांग जग जन अघनासी।।

अगम अमंगल मम हर लीजै। सकल मनोरथ पूरण कीजै।।

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✍🏻ज्योतिषाचार्य:- आचार्य लक्ष्मण सिंह स्वतंत्र

वैदिक ज्योतिष व पायरा वास्तु व लाल किताब विशेषज्ञ व एनर्जी हिलर  

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Posted By Lal Kitab Anmol10:00

Wednesday, 22 February 2023

पितृदोष का असर शादी विवाह ना होने का कारण भी बन सकता है

अंतर्गत लेख:

 

पितृ दोष से हानि-

संतान न होना, संतान हो तो विकलांग, मंदबुद्धि या चरित्रहीन अथवा होकर मर जाना। (2) नौकरी, व्यवसाय में हानि, बरकत न हो। (3) परिवार में ऐक्य न हो, अशांति हो। (4) घर के सदस्यों में एक या अधिक लोगों का अस्वस्थ होना, इलाज करवाने पर ठीक न होना।

                               {लक्षण}

पितृ दोष और पितृ ऋण से पीड़ित कुंडली शापित कुंडली कही जाती है। ऐसे व्यक्ति अपने मातृपक्ष अर्थात माता के अतिरिक्त मामा-मामी मौसा-मौसी, नाना-नानी तथा पितृपक्ष अर्थात दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई आदि को कष्ट व दुख देता है और उनकी अवहेलना व तिरस्कार करता है। जन्म पत्री में यदि सूर्य पर शनि राहु-केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक की कुंडली में पितृ ऋण की स्थिति मानी जाती है। इसके अलावा भी अन्य कई स्थितियां होती है।

इसके अलावा व्यक्ति अपने कर्मों से भी पितृदोष निर्मित कर लेता है। विद्वानों ने पितर दोष का संबंध बृहस्पति (गुरु) से बताया है। अगर गुरु ग्रह पर दो बुरे ग्रहों का असर हो तथा गुरु 4-8-12वें भाव में हो या नीच राशि में हो तथा अंशों द्वारा निर्धन हो तो यह दोष पूर्ण रूप से घटता है और यह पितर दोष पिछले पूर्वज (बाप दादा परदादा) से चला आता है, जो सात पीढ़ियों तक चलता रहता है।

पितृ ऋण कई प्रकार का होता है जैसे हमारे कर्मों का, आत्मा का, पिता का, भाई का, बहन का, मां का, पत्नी का, बेटी और बेटे का। आत्मा का ऋण को स्वयं का ऋण भी कहते हैं। जब कोई जातक अपने जातक पूर्व जन्म में धर्म विरोधी कार्य करता है तो वह इस जन्म में भी अपनी इस आदत को दोहराता है। ऐसे में उस पर यह दोष स्वत: ही निर्मित हो जाता है। धर्म विरोधी का अर्थ है कि आप भारत के प्रचीन धर्म हिन्दू धर्म के प्रति जिम्मेदार नहीं हो। पूर्व जन्म के बुरे कर्म, इस जन्म में पीछा नहीं छोड़ते। अधिकतर भारतीयों पर यह दोष विद्यमान है। स्वऋण के कारण निर्दोष होकर भी उसे सजा मिलती है। दिल का रोग और सेहत कमजोर हो जाती है। जीवन में हमेशा संघर्ष बना रहकर मानसिक तनाव से व्यक्ति त्रस्त रहता है।

पितृदोष के प्रकारकुंडली में दोष

सबसे खतरनाक: जब पितृदोष प्रथम स्तर पर हो. पितृदोष प्रथम स्तर पर होता है यदि सूर्य इन ग्रहों में से किसी के साथ किसी भी भाव या घर में होता है. यह सबसे खतरनाक दोष है. मध्यम प्रभाव: पितृदोष जब द्वितीय स्तर पर हो

 पितृ दोष कितने प्रकार के होते हैं?

इसी प्रकार मंगल यदि राहु या केतु के साथ हो या इनसे दृष्ट हो तो मंगलकृत पितृ दोष का निर्माण होता है। दो प्रकार के होते हैं पितृदोष : सूर्यकृत पितृदोष होने से जातक के अपने परिवार या कुटुंब में अपने से बड़े व्यक्तियों से विचार नहीं मिलते।

पितृ दोष कैसे बनता है?

जब किसी जातक की कुंडली के लग्न भाव और पांचवें भाव में सूर्य, मंगल और शनि विराजमान हो तो पितृदोष बनता है. इसके अलाव अष्टम भाव में गुरु और राहु एक साथ आकर बैठ जाते हैं तो पितृ दोष का निर्माण होता है. जब कुंडली में राहु केंद्र या त्रिकोण में मौजूद हो तो पितृदोष बनता है.

आपको कैसे पता चलेगा कि आपके पास पितृ दोष है?

कुंडली में सूर्य की स्थिति को 'पिता' का प्रतीक माना जाता है। नवम भाव में सूर्य की स्थिति या उसमें सूर्य की स्थिति के साथ नवम भाव पर किसी अन्य ग्रह का नकारात्मक प्रभाव पितृ दोष का संकेत है।

 

 

 

भयानक प्रभाव

 

आप कर्ज में दब जाते हो और ऐसे में आपके घर की शांति भंग हो जाती है। मातृ ऋण के कारण व्यक्ति को किसी से किसी भी तरह की मदद नहीं मिलती है। जमा धन बर्बाद हो जाता है। फिजूल खर्जी को वह रोक नहीं पाता है। कर्ज उसका कभी उतरना नहीं।

 बहन के ऋण से व्यापार-नौकरी कभी भी स्थायी नहीं रहती। जीवन में संघर्ष इतना बढ़ जाता है कि जीने की इच्छा खत्म हो जाती है। बहन के ऋण के कारण 48वें साल तक संकट बना रहता है। ऐसे में संकट काल में कोई भी मित्र या रिश्तेदार साथ नहीं देते भाई के ऋण से हर तरह की सफलता मिलने के बाद अचानक सब कुछ तबाह हो जाता है। 28 से 36 वर्ष की आयु के बीच तमाम तरह की तकलीफ झेलनी पड़ती है।

 पितृदोष शांति के उपाय

पितृ दोष कैसे खत्म किया जाए ?

पितृ पक्ष शांति के लिए रोजाना दोपहर के समय पीपल के पेड़ की पूजा करें. पितरों को प्रसन्न करने के लिए पीपल में गंगाजल में काले तिल, दूध, अक्षत और फूल अर्पित करें. पितृ दोष शांति के लिए ये उपाय बहुत कारगर है. पितृ पक्ष में रोजाना घर में शाम के समय दक्षिण दिशा में तेल का दीपक लगाएं.i

पितृदोष से मुक्ति दिलाएंगे ये उपाय

अगर आपकी कुंडली में पितृदोष है, तो पितरों की फोटो दक्षिण दिशा की ओर लगाएं। इसके साथ ही रोजाना माला चढ़ाकर उनका स्मरण करना चाहिए। पीपल के पेड़ पर दोपहर के समय जल चढ़ाएं। इसके साथ ही फूल, अक्षत, दूध, गंगाजल और काले तिल भी चढ़ाएं और पितरों का स्मरण करें।

पितरों का आशीर्वाद कैसे मिलता है?

मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान जो व्यक्ति अपने पितरों के निमित्त गाय के शुद्ध घी का दान करता है, उसे पितरों का पूरा आशीर्वाद मिलता है.

 पितरों को प्रसन्न करने के 5 अचूक उपाय

1.            प्रतिदिन पढ़ें हनुमान चालीसा। श्राद्ध पक्ष में अच्छे से करें श्राद्ध कर्म।

2.            गरीब, अपंग व विधवा महिला को दें दान। ...

3.            तेरस, चौदस, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन गुड़-घी की धूप दें। ...

4.            घर का वास्तु ठीक करवाएं। ...

5.            गया में जाकर तर्पण पिंडदान करें।

 पितृदोष से मुक्ति के उपाय

शाम के समय पीपल के वृक्ष पर दीप जलाएं और नाग स्तोत्र, महामृत्युंजय मंत्र या रुद्र सूक्त या पितृ स्तोत्र व नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें. इससे भी पितृ दोष की शांति होती है. प्रतिदिन इष्ट देवता व कुल देवता की पूजा करें. ऐसा करने से भी पितृदोष का शमन होता है.

पितृ दोष में क्या नहीं करना चाहिए?

हिंदू धर्म शास्त्र के मुताबिक, पितृ पक्ष के दौरान जमीन के अंदर होने वाली सब्जियों जैसे मूली, अरबी, आलू आदि का सेवन नहीं करना चाहिए और नहीं इनका पितरों का भोग लगाना चाहिए. श्राद्ध के दौरान ब्राह्मणों को भी इसे ना खिलायें. सनातन धर्म में लहसुन और प्याज को तामसिक भोजन माना जाता है

पितृपक्ष में कौन कौन से काम वर्जित रहते हैं?

             पितृपक्ष के समय में लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए. ...

             इस समय में अपने घर के बुजुर्गों और पितरों का अपमान न करें. ...

             पितृपक्ष में स्नान के समय तेल, उबटन आदि का प्रयोग करना वर्जित है.

             इस समय में आप कोई भी धार्मिक या मांगलिक कार्य जैसे मुंडन, सगाई, गृह प्रवेश, नामकरण आदि न करें.

पितरों के स्वामी कौन है?

पितृलोक के स्वामी यमराज हैं। जलदान से यमराज संतुष्ट होते हैं, तो पितरों को भी सुख मिलता है।

 

Posted By Lal Kitab Anmol12:55

 
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