बीमारी का बगैर दवाई भी इलाज़ है,मगर मौत का कोई इलाज़ नहीं दुनियावी हिसाब किताब है कोई दावा ए खुदाई नहीं लाल किताब है ज्योतिष निराली जो किस्मत सोई को जगा देती है फरमान दे के पक्का आखरी दो लफ्ज़ में जेहमत हटा देती है

Tuesday, 30 May 2023

15 मंत्र जो हर सनातनी को सीखना और बच्चों को सिखाना चाहिए...

 

ये सनातनी 15 मंत्र  हैं जो...

हर सनातनी को सीखना और बच्चों को सिखाना चाहिए...

 


1. Mahadev

          ॐ त्र्यम्बकं यजामहे,

           सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ,

           उर्वारुकमिव बन्धनान्,

           मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् !!

 

2. Shri Ganesha

              वक्रतुंड महाकाय,

              सूर्य कोटि समप्रभ

              निर्विघ्नम कुरू मे देव,

              सर्वकार्येषु सर्वदा !!

 

3. Shri hari Vishnu

           मङ्गलम् भगवान विष्णुः,

           मङ्गलम् गरुणध्वजः।

           मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः,

           मङ्गलाय तनो हरिः॥

 

4. Shri Brahma ji

             ॐ नमस्ते परमं ब्रह्मा,

              नमस्ते परमात्ने ।

              निर्गुणाय नमस्तुभ्यं,

              सदुयाय नमो नम:।।

 

5. Shri Krishna

               वसुदेवसुतं देवं,

               कंसचाणूरमर्दनम्।

               देवकी परमानन्दं,

               कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम।

 

6. Shri Ram

              श्री रामाय रामभद्राय,

               रामचन्द्राय वेधसे ।

               रघुनाथाय नाथाय,

               सीताया पतये नमः !

 

7. Maa Durga

            ॐ जयंती मंगला काली,

            भद्रकाली कपालिनी ।

            दुर्गा क्षमा शिवा धात्री,

            स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते।।

 

8. Maa Mahalakshmi

            ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो,

            धन धान्यः सुतान्वितः ।

            मनुष्यो मत्प्रसादेन,

            भविष्यति न संशयःॐ ।

 

9. Maa Saraswathi

            ॐ सरस्वति नमस्तुभ्यं,

             वरदे कामरूपिणि।

             विद्यारम्भं करिष्यामि,

             सिद्धिर्भवतु मे सदा ।।

 

10. Maa Mahakali

             ॐ क्रीं क्रीं क्रीं,

             हलीं ह्रीं खं स्फोटय,

             क्रीं क्रीं क्रीं फट !!

 

11. Hanuman ji

          मनोजवं मारुततुल्यवेगं,

          जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।

          वातात्मजं वानरयूथमुख्यं,

          श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥

 

12. Shri Shanidev

             ॐ नीलांजनसमाभासं,

              रविपुत्रं यमाग्रजम ।

              छायामार्तण्डसम्भूतं,

              *तं नमामि शनैश्चरम् ||

 

13. Shri Kartikeya

        ॐ शारवाना-भावाया नम:,

         ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा ,

         वल्लीईकल्याणा सुंदरा।

          देवसेना मन: कांता,

          कार्तिकेया नामोस्तुते ।

 

14. Kaal Bhairav ji

          ॐ ह्रीं वां बटुकाये,

          क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये,

          कुरु कुरु बटुकाये,

          ह्रीं बटुकाये स्वाहा।

 

15. Gayatri Mantra

            ॐ भूर्भुवः स्वः,

            तत्सवितुर्वरेण्यम्

            भर्गो देवस्य धीमहि

            धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

 परिवार ओर बच्चों को भी सिखायें

 

🖊️ आचार्य लक्ष्मण सिंह स्वतंत्र

ज्योतिष वास्तु लाल किताब उपाय विशेषज्ञ

9911342666

Posted By Lal Kitab Anmol11:45

आखिर कुंडली मिलान का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रहस्य क्या है ? कैसे 1 गुण न मिलने पर विवाह टूट जाता है ?

lka 

क्या होते हैं 36 गुण ? 

पहला गुण वर्ण मिलान - ज्योतिष को वेदों का नेत्र बोला जाता है । इसलिए वेद और ज्योतिष के अनुसार वैदिक संस्कृति में 4 वर्ण होते है । 

ब्राह्मण वर्ण 

क्षत्री वर्ण 

वैश्य वर्ण 

शूद्र वर्ण

इन वर्णो का ज्योतिषीय व वैज्ञानिक रहस्य होता है । राशियों और ग्रहों के अनुसार हमारा मस्तिष्क सोचता है और राशियों के स्वामी ग्रह की किरणें  हमारे मस्तिष्क को चलाती हैं । जैसा राशि और ग्रह का स्वभाव होता है वैसा ही हमारे वर्ण का स्वभाव होता है । इसका जाति से कोई संबंध नहीं होता है । ये वर्ण जीवन की उत्पत्ति के साथ ही शुरू से आते हैं । 

कर्क , वृश्चिक और मीन राशि में पैदा होने वाले जातक ब्राह्मण वर्ण के होते हैं । जिसके कारण इन लोगों में ज्ञान की मात्रा ज्यादा होती है । ये किसी भी जाति व धर्म में पैदा हों चाहे मुसलमान हों या ईसाई इनमें ज्ञान की मात्रा ज्यादा होती है । 



मेष , सिंह और धनु राशि वालों में क्षत्रीय गुण ज्यादा होते हैं । इनमें लड़ने की क्षमता ज्यादा होती है । ये चाहे ब्राह्मण कुल में जन्म लें फिर भी लड़ने की क्षमता ज्यादा होती है । 

वृष , कन्या और मकर राशि वाले व्यापारी किस्म के दिमाग वाले वैश्य गुण वाले होते हैं । 

मिथुन , तुला और कुम्भ राशि वाले शूद्र वर्ण में आते हैं । इन लोगों का दिमाग छोटे और निम्न वर्ग के कामों में ज्यादा रुझान रहता है । ऐसे लोग मेहनत करने वाले कार्यों में ज्यादा रुचि रखतें है । ऐसा बड़ा अधिकारी या मंत्री होने पर भी घर के कार्य खुद ही करना पसंद करते हैं । 


कुंडली मिलाते  समय अगर लड़के का वर्ण ब्राह्मण है और लड़की का भी ब्राह्मण है तो दोनों का नेटवर्क एक जैसा हो जाता है और तालमेल अच्छा रहता है । दोनों ज्ञानी होंगे । अगर एक का नेटवर्क ब्राह्मण हो और दूसरे का क्षत्री हो दोनों में लड़ाई होना स्वाभाविक हो जाता है । 

अगर लड़के का वर्ण ब्राह्मण और लड़की का वैश्य वर्ण है तो लड़के में ज्ञान रहेगा तथा लड़की का दिमाग व्यापार में ज्यादा चलेगा । जिसके कारण तालमेल नहीं रहता है । लड़की अपने केरियर पर ज्यादा ध्यान  देती है । जिसके कारण घर में विवाद हो जाता है । 

इसी प्रकार लड़के का वर्ण ब्राह्मण और लड़की का शूद्र है तो लड़की में निम्न श्रेणी के काम करने की आदत होती है । जैसे बिना स्नान किये किचन का काम करना या बिना कुल्ला किये चाय बिस्किट कहा लेना ।  जिसके कारण दोनों के दिमाग के नेटवर्क में भिन्नता आ जाती है । और तालमेल भी भिन्न-भिन्न हो जाता है । लड़का धार्मिक विचारों का होता है और लड़की व्यसनशील होती है । 

 में कहा गया है कि अगर लड़की का वर्ण शूद्र हो जाये तो इंद्र देवता की कन्या ही क्यों न हो उसका भी विवाह टूट जाता है । इस वर्ण का 1 पॉइंट होता है । यह एक पॉइंट ही ज़िंदगी को तबाह कर देता है । इसलिए कुंडली मिलाते समय यह अवश्य देख लेना चाहिए कि अष्टकूट मिलान में वर्ण का मिलान स्वभाव और आदतों का मिलान होता है । 

इस एक गुण के न मिलने पर स्वभाव भिन्न-भिन्न होने से शादी टूट जाती है । जब हम पूछते हैं कि शादी क्यों टूटी तो पता चलता है लड़का म्लेच्छ रहता है । कुल्ला नहीं करता है मुँह से बदबू आती रहती है । इसलिए मैं उसके साथ नहीं रह सकती हूं । बहुत से लोग कुंडली मिलान का मज़ाक उड़ाते हैं लेकिन उनका मिलान होने पर पता चलता है कि उनकी पत्नी तो शराब ही बहुत पीती है और बहुत दुखी है । इसलिए शादी से पहले कुंडली अवश्य मिलानी चाहिए । बाकी सभी गुणों की जानकारी देने की कोशिश करूंगा । 

लक्षमण सिंह ( ज्योतिष आचार्य )

Posted By Lal Kitab Anmol11:42

Monday, 22 May 2023

कुंडली में चन्द्रमा कमजोर होने के लक्षण

अंतर्गत लेख:

  lka 

सबसे पहला चंद्र मन का कारक है जिसकी भी कुंडली में चंद्र निर्बल या  या कमजोर होता है वह मन से कमजोर होते हैं छोटी-छोटी बातों में चीड़ जाना  नाराज हो जाना भड़क जाना यह चंद्र के लक्षण है

🌛। पहेले हम ये जानते है चन्द्रमा कमजोर कब होता है चन्द्रमा लगनाधिपथी  सुखादीपति कर्माधिपति भाग्यअधिपति बनके नीच राशि में हो अस्त का हो बाल्यावस्था में हो पाप ग्रहों से दृष्ट हो पाप ग्रहों से पीड़ित हो पाप ग्रह जैसे शनि राहु जैसे पाप ग्रहों से दृष्ट हो शनि राहु केतु जैसे ग्रहों के साथ ही युति  बना कर बैठा हो तब चंद्रमा कमजोर माना जाता है

🌙. चंद्र कमजोर होता है तो जातक मन को बैलेंस बनाकर नहीं रख पाता बहुत बुद्धिमान गुणवान होने के बावजूद भी वह अपने काम में कंसंट्रेट नहीं कर पाते क्योंकि उनका मन स्थिर नहीं रहता है भटकता रहता है इधर उधर

🌛..चंद्र जब कमजोर हो तो जातक हमेशा कुछ ना कुछ सोचता रहता है निर्णय शक्ति जातक  कमजोर होता है वह  सोचता कुछ है करता कुछ है काफी बार गलत निर्णय के कारण काम में बाधा भी होने लग जाता है

🌙 चंद्र मन को कमजोर करता है मन को शांत रहने नहीं देता अगर कुंडली में कमजोर हो चंद्र तो काफी बार माता का सेहत भी ठीक नहीं रहता दिमाग में गलत विचार आते हैं गलत ख्याल आते हैं किसी के प्रति गलत ख्याल जल्दी आ जाते हैं आत्महत्या के विचार आते हैं

🌙  . जैसे मान लो आपके पास हर प्रकार का सुख है लेकिन वह सुख का आपको एहसास ना हो  हर  सुख होते हुए भी जातक बोले कि नहीं मेरे पास कुछ नहीं है तो वह चंद्रमा कमजोर होने का लक्षण होता है क्यों क्योंकि सुख का मालिक चंद्रमा होता है

🌙.. इस संसार में धरती में और इंसान में भी 70% पानी है  अगर चंद्र कम  कमजोर हो तो जातक को खांसी जुखाम सर्दी लगा रहता है पागलपन मिर्गी दौड़े यह सब भी देता है

🌙 चंद्र कमजोर हो तो पाचन क्रिया को भी प्रभावित करता है इसीलिए ऐसे लोगों को बाहर का जंक फूड नहीं खाना चाहिए नहीं तो पेट से रिलेटेड बीमारी हो सकता है

🌙 जब चंद्र कमजोर हो तो जातक बुरी बुरी आदतों का भी जल्दी शिकार हो जाता है जैसे बीड़ी सिगरेट गांजा  जा दारू यह सब उन्हें पता होता है कि यह गलत है लेकिन वह तभी भी नहीं छोड़ पाते क्योंकि मन से कमजोर होते हैं

🌛.. उपाय

🌹 ।। सबसे पहला उपाय चंद्र माता का कारक होता है तो मां का पांव छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए

माता की सेवा करना चाहिए, माता के पैरों में तेल मालिश अवश्य करें

 

🙏दूसरा उपाय चंद्र शिवजी के माथे पर  पर विराजमान है

 इसीलिए शिवजी का आराधना करना चाहिए उनको जल् दूध से अभिषेक करना चाहिए जितना हो सके शिवजी का आराधना करना चाहिए

पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए

आपके जीवन में कोई भी समस्या हो और आप अपनी जन्म कुंडली का फलादेश कराना चाहते हैं तो संपर्क कर सकते हैं

Posted By Lal Kitab Anmol02:19

Tuesday, 16 May 2023

सर्वशक्तिशाली महामृत्युंजय मंत्र के ८ विशेष प्रयोग

अंतर्गत लेख:


🏻ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥

महामृत्युंजय मंत्र का सीधा अर्थ है मृत्यु को भी विजय करने वाला, महामृत्युञजय मंत्र भगवान रूद्र का एक सर्वशक्तिशाली और साक्षात् प्रभाव देने वाला सिद्ध मंत्र है और अधिकांशतः लोग इससे परिचित भी हैं ही, समान्यतया अच्छे स्वास्थ के लिए, असाध्य रोगों से मुक्ति के लिए और अकाल मृत्यु-भय से रक्षा के लिए महामृत्युंजय मंत्र जाप किया जाता है या कर्मकाण्डी ब्राह्मण से इसका अनुष्ठान कराया जाता है पर महामृत्युंजय मंत्र का प्रयोग न केवल अकाल मृत्यु से रक्षा के लिए बल्कि आपके जीवन की और भी बहुत सी बाधाओं से मुक्ति देने में महामृत्युंजय मंत्र का जाप अपना चमत्कारिक

 प्रभाव दिखाता है 

१:- यदि आपका स्वास्थ समान्य से अधिक और हमेशा ही खराब रहता है, तो नित्य महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें अवश्य लाभ होगा।

२:- बीमारी या रोगों के कारण जब जीवन संकट वाली स्थिति आ जाये तो महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें या वैदिक ब्राह्मण से अनुष्ठान कराएं।

३:- जिन लोगों के साथ बार बार एक्सीडेंट्स की स्थिति बनती रहती हो ऐसे लोगो को महामृत्युंजय मंत्र का नित्य जाप करना बहुत सकारात्मक परिवर्तन लाता है।

४:- जिन लोगों को डर भय और फोबिया की समस्या हो ऐसे लोगों को महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना बहुत शुभ परिणाम देता है।

५:- एक सफ़ेद कागज पर लाल पैन से महामृत्युंजय मंत्र लिखें एक दिन के लिए अपने पूजास्थल पर रखें और फिर हमेशा वाहन चलाते समय इसे अपने ऊपर वाले जेब में रखें दुर्घटनाओं से हमेशा आपकी रक्षा होगी।

६:- जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प योग होने से जीवनं में संघर्ष रहता हो उनके लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप अमृत-तुल्य होता है।

७:- कुंडली में चन्द्रमाँ पीड़ित या कमजोर होने पर उत्पन्न होने वाली मानसिक समस्याओं में भी महामृत्युंजय मंत्र का जाप बहुत शुभ परिणाम देता है।

८:- महामृत्युंजय मंत्र की ध्वनि से घर से सभी "नकारात्मक" ऊर्जाएं दूर रहती हैं।


Posted By Lal Kitab Anmol06:31

Thursday, 11 May 2023

आखिर मंत्र करने से याददाश्त कैसे बढती है ? क्या मस्तिष्क का सम्बंध ब्रह्मांड से होता है ? क्या है इसका वैज्ञानिक आधार ?

अंतर्गत लेख:

 


मंत्रों का विज्ञान बहुत गहरा है । यह उसी प्रकार गहरा है जैसे पृथ्वी पर समुद्र और आसमान में अंतरिक्ष की गहराई का कोई छोर नहीं है । मंत्र अनुभव और अभ्यास से फल देता है । जैसे आप समुद्र में गोता लगाना चाहते हैं लेकिन डूबने का डर होता है । जैसे-जैसे आपको तैरने का अभ्यास हो जाता है तो आपके लिए गोता लगाना आसान हो जाता है । वैसे ही जब आपको मंत्रो की विधि का अभ्यास हो जाता है तो जो चाहे वो कर सकते हो । 

अब आपको एक वैज्ञानिक उदाहरण से समझाता हूँ । जब आप एक गहरा  कूआ खोदते हो तो आपको सिर्फ गड्डा ही दिखाई देता है । लेकिन धीरे-धीरे और नीचे जाते हैं तो चारों तरफ से पानी अपने प्रैशर से उस कुए में आना शुरू हो जाता है । तथा पानी का श्रोत उस कुए के साथ लिंक बना लेता है । और बहुत दूर-दूर के जल के श्रोत उस कुए से मिल जाते हैं । तथा धीरे-धीरे कुआं पानी से भर जाता है और फिर जितना मर्जी पानी कुएं से खींचा जाए लेकिन कुआं कभी खाली नहीं होता है । 

ऐसे ही जब आप अपने मस्तिष्क को मंत्रों के स्रोत का कूआ बना लेते हो तो अंतरिक्ष के चारों तरफ से ऊर्जा के श्रोत आपके मस्तिष्क से जुड़ जाते हैं । आपके मस्तिष्क की हार्ड डिस्क मेमोरी बड़ी हो जाती है । और आपके पास ऊर्जा का भंडार हो जाता है । चारों तरफ से आने वाली ऊर्जा आपकी याददास्त को बढ़ा देती है । और यह याददास्त पुनर्जन्म में भी साथ रहती है । इसलिए ऋषि मुनि अपने पुनर्जन्म के रहस्य को जानते थे । 

इसलिए मंत्रों का अभ्यास करना चाहिए तथा अपने दिमाग की हार्डडिस्क को बड़ा करना चाहिए तथा दिमाग में ऊर्जा का भंडार भरना चाहिए । जितना मंत्रों का उच्चारण किया जाता है उतना ही मनुष्य के मस्तिष्क की नस-नाड़ियों व ब्रह्मरंध्र का संबंध अनेकों लोकों से होने लगता है । तथा मनुष्य की याददाश्त बढ़ जाती है । मंत्रों को करते समय ध्यान को हमेशा अंतरिक्ष की ओर ऊर्ध्व गति में रखना चाहिए । बहुत से लोगों का ध्यान उन मंत्रों का ध्यान किताबों के पन्ने पर होता है । ऐसा करने से मस्तिष्क ऊर्ध्व गति को प्राप्त नहीं होता है । 

जिस प्रकार जल के स्रोतों का सम्बंध कुंए के साथ होता है ठीक इसी प्रकार मनुष्य के मस्तिष्क का संबंध अंतरिक्ष के साथ होता है । मनुष्य की याददाश्त अंतरिक्ष में संचित होती है । जिस प्रकार कुए से जितना अधिक पानी सींचा जाता है कुए का पानी उतना ही शुद्ध व पवित्र होता चला जाता है । ठीक इसी प्रकार साधक व ज्ञानी जितना अपने ज्ञान को बाहर फैलाता है उतना ही ज्ञान शुध्द व पवित्र होकर अंतरिक्ष से आपके मस्तिष्क में संचित होता रहता है । और एक दिन ऐसा समय आता है कि आप 24 घंटे लगातार बोलते रहने पर  भी आपका ज्ञान समाप्त नहीं होता है । इसलिए अपने मस्तिष्क के ऊर्जा के स्रोतों को मंत्र अभ्यास से गहरा करते रहना चाहिए । 

Posted By Lal Kitab Anmol09:07

Monday, 1 May 2023

जन्म कुंडली मे मकान व जमीन योग

 *lka 1/5/2023

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ज्योतिष में 12 भाव होते हैं और इन सभी 12 भावों के बीच में ही हमारी कुंडली का ताना-बाना बुना रहता है। इन सभी 12 भावों की शुभ और अशुभ दशा पर हमारे जीवन की जरूरी बातें निर्भर करती हैं। आज हम बात करने जा रहे हैं जमीन-जायदाद के बारे में और आपको बताएंगे कि कुंडली के कौन से भाव का संबंध जमीन से होता है और कैसे पता चलता है कि आपको खुद की जमीन खरीदने का सुख प्राप्‍त होगा या नहीं।


1.-लग्न में गुरु अपनी उच्च राशि मे हो और साथ मे चन्दमा हो तो जातक के लिए सुंदर मकान का योग होता हैं.! 


2. लग्नेश ओर एकादसेश की युति सुख भाव मे हो तो जातक के एक से अधिक मकान होने का योग होता हैं.! 


3.-सुख भाव मे यदि शनि हो तो पुराने मकान का योग होता है.!


4.-भाग्येश व दसमेश बलि होकर सुख भाव मे हो तो उत्तम मकान का योग होता हैं.!


5.-मेष ओर वृश्चिक में मंगल सुख भाव मे हो तो जमीन व मकान खरीदने में कई परेशानिया आती है.!


6.- यदि सुख भाव मे सिंह राशि का सूर्य हो तो भी मकान खरीदने या बनाने में कुछ बाधाये आती है आदि...!!


7 यदि कुंडली में शनि और मंगल दोनों ही शुभ अवस्था में हैं व्यक्ति भूमि भी खरीदता है और उसपर आलीशान भवन भी बनाता है। यदि शनि और मंगल दोनों ही ग्रह चतुर्थ भाव में बली होकर बैठे हों तो यह बात लगभग निश्चित होती है कि व्यक्ति को भूमि-भवन का सुख प्राप्त होगा।


जन्म कुंडली मे मकान व जमीन योग

Posted By Lal Kitab Anmol13:52

Wednesday, 19 April 2023

साल का पहला सूर्य ग्रहण 20 अप्रैल को लगने जा रहा है

 ⚫    सूर्य ग्रहण    ⚫ 

  20 अप्रैल 2023 गुरुवार 

साल का पहला सूर्य ग्रहण 20 अप्रैल को लगने जा रहा है।  सनातन पंचांग के अनुसार वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को साल का पहला ग्रहण लगेगा। हर वर्ष सूर्य और चंद्र ग्रहण लगते हैं जिसे विज्ञान में इस खगोलीय घटना माना जाता है जबकि ज्योतिष शास्त्र में इस खगोलीय घटना का विशेष महत्व होता है। 20 अप्रैल को लगने वाला यह ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा, जिस कारण से इसका सूतक काल मान्य नहीं होगा। हालांकि इस सूर्य ग्रहण का प्रभाव हर एक राशि के जातकों के जीवन पर अवश्य ही पड़ेगा। 20 अप्रैल को लगने वाले इस सूर्य ग्रहण को वैज्ञानिक हाइब्रिड सूर्य ग्रहण का नाम दे रहे हैं। 

▪️सूर्य ग्रहण का समय-: 

 ग्रहण की शुरुआत 20 अप्रैल 2023 को सुबह 7 बजकर 04 मिनट से होगी। यह सूर्य ग्रहण 20 अप्रैल को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर खत्म हो जाएगा। इस तरह से ग्रहण 5 घंटे 24 मिनट तक रहेगा। इस सूर्य ग्रहण को भारत में नहीं देखा जा सकेगा जबकि दुनिया के बाकी हिस्सों में इसे आसानी से देखा जा सकेगा। 

▪️कैसा होगा सूर्य ग्रहण-: 

साल का पहला सूर्य ग्रहण 3 तरह का दिखाई देगा जिसमें यह आंशिक, पूर्ण और कुंडलाकार के रूप में होगा। इस तरह से साल 2023 का यह पहला सूर्य ग्रहण हाइब्रिड सूर्य ग्रहण होगा क्योंकि जब सूर्य ग्रहण आंशिक, पूर्ण और कुंडलाकार रूप में हो तो इसे हाईब्रिड सूर्य कहते हैं। आंशिक सूर्य ग्रहण की घटना के दौरान चंद्रमा सूर्य के छोटे से हिस्से को ढक पाता है। वहीं पूर्ण सूर्य ग्रहण तब होता है जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा तीनों ही एक ही सीध में होते हैं। ऐसे में धरती के एक हिस्से में कुछ देर के लिए पूरी तरह से अंधेरा छा जाता है। इसके अलावा कुंडलाकार सूर्य ग्रहण होता है जब ग्रहण के दौरान चंद्रमा सूर्य के बीचों-बीच आ जाता है फिर सूर्य एक चमकदार रिंग की तरह दिखाई देने लगता है। इस तरह के सूर्य ग्रहण को रिंग ऑफ फायर कहा जाता है। 

▪️सूर्य ग्रहण का प्रभाव-: 

भारत में इस सूर्य ग्रहण को नहीं देखा जा सकेगा। जिस कारण से इसका सूतक काल मान्य नहीं होगा। सूतक काल को अशुभ समय माना जाता है। सूर्य ग्रहण के लगने से 12 घंटे पहले सूतक काल शुरू हो जाता है जिस दौरान किसी भी तरह का शुभ कार्य, पूजा और खाना इत्यादि नहीं बनाया जाता है।

▪️ग्रहण के दुष्परिणाम-: 

सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण जैसी घटनाओं का प्रभाव पृथ्वी पर अच्छा नहीं माना जाता। अतः इस सूर्य ग्रहण का प्रभाव भी पृथ्वी पर ठीक नहीं रहेगा। सूर्य ग्रहण के दुष्परिणाम पृथ्वी पर पड़ेंगे जैसे-महामारी, आगजनी, युद्ध, प्राकृतिक आपदाएं, सुनामी, भूकंप इत्यादि।

यह सूर्य ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा और भारत में सूर्य ग्रहण का सूतक काल भी मान्य नहीं रहेगा। अतः ग्रहण के किसी भी तरह के नियम पालन की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी।।

Posted By Lal Kitab Anmol07:39

Monday, 10 April 2023

शुभ कल्याणकारी रहेगा मेष में उच्च का सूर्य

 


✍🏻प्रतिवर्ष 13/14 अप्रैल को सूर्य मेष राशि में प्रवेश होते ही श्रेष्ठ एवं उच्च का होता है, मेष राशि चक्र की प्रथम राशि है, इस समय सूर्य नक्षत्र समूह के प्रथम नक्षत्र अश्विनी में भी प्रवेश करता है। सिंधी-पंजाबी इस दिन नववर्ष वैशाखी पर्व मनाते हैं।

सूर्य एक राशि में एक माह रहता है मेष राशि के सूर्य में जन्म लेने वाले व्यक्ति के लिए कल्याणकारी समय रहता है। मेष राशि के प्रवेश के समय कर्क लग्न की कुंडली में सूर्य दसवें भाव में होता है। कुंडली में दसवां भाव ऐसा भाव होता है, जब सूर्य का तेज प्रकाश सहन कर सकते हैं। इन परिस्थितियों में जन्म लेने वाले व्यक्ति को सूर्य महान एवं कर्मयोगी बनाता है। दसवां स्थान कर्म एवं राज्य का होता है ज्योतिषाचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने बताया कि भगवान श्रीराम जी की कुंडली में दसवें भाव में मेष का सूर्य होने से उन्हें यशस्वी कीर्तिमान एवं कर्मठ बनाने के साथ कुलदीपक भी बनाया। वर्तमान में जब उच्च सूर्य राजनीति में भारी सफलता प्रदान करता है ज्योतिषाचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने बताया कि जन्म राशि से गोचर सूर्य 3, 6, 10, 11वां होने पर शुभ फल देता है। व्यक्ति को कार्यों में आशातीत सफलता, शत्रु नाश, प्रसन्नता- खुशियां, स्वस्थता, धन-लाभ, सुख-संतोष में वृद्धि एवं मान प्रतिष्ठा मिलती है। परंतु जब गोचर में उच्च सूर्य मेष राशि पर होने पर उक्त शुभ फलों में कई गुना वृद्धि हो जाती है।

जब सूर्य मेष राशि में हो तो जातक को भगवान शिव का पूरी अवधि में सहस्त्रधार-अभिषेक शास्त्रोक्त विधि से परंपरागत रूप से करना चाहिए। जिस राशि में गोचर सूर्य अशुभ होता है उन्हें प्रतिदिन सूर्यमंत्र का जाप करते हुए सूर्य देव का जलाभिषेक करना लाभकारी होता है- सूर्य मंत्र ॐ घृणि सूर्याय नमः।

Posted By Lal Kitab Anmol13:20

Thursday, 6 April 2023

वास्तु शास्त्र में सभी दिशाओं के लिए वहां विद्यमान उर्जाओं के अनुरूप उचित और लाभदायक गतिविधियां बताई गई हैं

अंतर्गत लेख:

 LKA 

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🏻वास्तु शास्त्र में सभी दिशाओं के लिए वहां विद्यमान उर्जाओं के अनुरूप उचित और लाभदायक गतिविधियां बताई गई हैं। चार प्रमुख दिशाओं की जानकारी हम सभी को हैं। लेकिन वास्तु में एक शुभ भवन के निर्माण के लिए चार प्रमुख दिशाओं के अलावा चार अन्य दिशाओं में की जाने वाली गतिविधियाँ भी निर्धारित की गई है, इन सभी दिशाओं के अलग-अलग प्रभाव होते हैं इन प्रभावों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न कमरों के निर्माण से लेकर वस्तुओं को रखने की जगह के सम्बन्ध में वास्तु में कई नियम बनाये गए है। इन नियमों के अनुरूप बना घर व्यक्ति को आर्थिक समृद्धि के साथ ही एक शांतिपूर्ण जीवन भी प्रदान करता है तो आइये जानते हैं पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री से कि प्रत्येक दिशा में की जाने वाली वास्तु सम्मत गतिविधियां एवं निर्माण-

१:-उत्तर दिशा:- वस्तुओं के संग्रहण, खाद्य पदार्थों के भण्डारण और औषधियों को रखने के लिए उत्तर दिशा सर्वोत्तम है। उत्तर दिशा के स्वामी कुबेर जी है अतः इस दिशा में निर्मित मुख्य द्वार आर्थिक समृद्धि प्रदान करता है। इस दिशा को दक्षिण व पश्चिम दिशाओं की तुलना में अधिक खुला रखें।

२:-उत्तर-पूर्व दिशा यानि (ईशान)- ईशान दिशा का सम्बन्ध सात्विक उर्जाओं से होता है। यह दिशा ध्यान, अध्यात्म और धार्मिक कार्यों के लिए बेहद उपयुक्त मानी जाती है। यहाँ पर अतिथियों के लिए स्वागत कक्ष भी बना सकते है। उत्तरी ईशान में बना अंडरग्राउंड वाटर टैंक उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करता है। चूँकि यह सात्विक उर्जाओं से सम्बंधित दिशा है अतः विशेष रूप से इस दिशा को सदैव स्वच्छ रखें।

३:-पूर्व दिशा:- अनुसार सूर्य पूर्व दिशा का स्वामी है, यह वास्तु में सबसे प्रमुख दिशाओं में से एक मानी जाती है। पूर्व दिशा गार्डन लगाने के लिए बहुत अच्छी है। यहाँ पर सुंदर पौधें लगा सकते है। सामान्यतया इस दिशा को भी उत्तर के समान ही खुला रखना बेहतर परिणाम देता है। अगर आप यहाँ किसी प्रकार का निर्माण कराना चाहते है तो आप अतिथि कक्ष भी बना सकते है। पूर्व में निर्मित अतिथि कक्ष आपके सामाजिक संपर्कों को बढ़ाने में बहुत सहायक सिद्ध होगा.!

४:-दक्षिण-पूर्व यानि (आग्नेय):- अग्नि तत्व से सम्बंधित इस दिशा में किचन का निर्माण आपकी आय में वृद्धि करता है और बेहतर कैश फ्लो प्रदान करता है। आग्नेय में आप बडे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण व गैजेट्स भी रख सकते है.!

५:-दक्षिण दिशा:- दक्षिण दिशा में बेडरूम का निर्माण किया जा सकता है। यहाँ पर निर्मित बेडरूम आपको एक आरामदायक अनुभव देगा, आपकी नींद की गुणवता भी बढ़ेगी और सुकून भी मिलेगा। ध्यान रहे कि सोते वक्त आपका सिर दक्षिण दिशा की ओर ही रहे। 

६:- दक्षिण-पश्चिम यानि (नैऋत्य):- इस दिशा का सम्बन्ध तमस उर्जा से होता है। अतः यह भी एक आरामदायक शयन कक्ष के निर्माण के लिए अच्छी दिशा है, हालाँकि इस स्थान पर बने शयन कक्ष का उपयोग घर के मुखिया के द्वारा किया जाना चाहिए। यह जीवन में स्थायित्व प्रदान करेगा।

७:- पश्चिम दिशा:- इस दिशा में आप डाइनिंग रूम बना सकते है। यहाँ पर किया गया भोजन स्वास्थ्य के लिए लिहाज से लाभकारी रहता है। इसके अतिरिक्त यहां पर बच्चों के द्वारा की गई मेहनत का बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिए स्टडी रूम भी बनाया जा सकता है।

८:-उत्तर-पश्चिम यानि (वायव्य):- चूँकि इस दिशा का सम्बन्ध भी दक्षिण-पूर्व दिशा के समान रजस उर्जा से है, अतः किचन बनाने के लिए यह भी एक उत्तम दिशा है। इस स्थान को वाहन पार्किंग के लिए भी उपयोग में लाया जा सकता है।

Posted By Lal Kitab Anmol13:14

Tuesday, 21 March 2023

चैत्र शुक्ल (बसंत नवरात्र) शुक्ल प्रतिपदा दिनांक 22 मार्च 2023 बुधवार को चैत्र नवरात्र प्रारंभ होंगे।

अंतर्गत लेख:

 चैत्र नवरात्र स्थापना 

  22 मार्च 2023 बुधवार 

                                          

🔸चैत्र शुक्ल (बसंत नवरात्र) शुक्ल प्रतिपदा दिनांक 22 मार्च 2023 बुधवार को चैत्र नवरात्र प्रारंभ होंगे।

🔸घटस्थापना (देवी आह्वान) के लिए देवी पुराण व तिथि तत्व में प्रातः काल का समय ही श्रेष्ठ बताया गया है अतः इस दिन प्रातः काल में द्विस्वभाव लग्न में घट स्थापना करनी चाहिए।

🔸इस वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा बुधवार को सूर्योदय 6:23 बजे होगा और द्विस्वभाव लग्न प्रातः 7:31 बजे तक रहेगा, अतः 6:23 से 7:31 बजे तक घट स्थापना कर नवरात्र शुरू करने का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त रहेगा।(दिल्ली के समय अनुसार)

                                

🔸इसके बाद भी द्विस्वभाव मिथुन लग्न में दिन में 11:14 से 12:00 बजे तक भी घटस्थापना की जा सकती है।

🔸चौघड़िया के हिसाब से घट स्थापना करने वाले प्रातः 6:23 से 9:28 बजे तक लाभ व अमृत के चौघड़िया में व दिन में 11:14 से 12:00 बजे तक शुभ चौघड़िये में के पूर्वार्ध में घट स्थापना कर सकते हैं।

⚛️नवरात्रि कलश स्थापित करने की दिशा और स्थान-:

कलश को उत्तर या फिर उत्तर पूर्व दिशा में रखें। जहां कलश बैठाना हो उस स्थान पर पहले गंगाजल के छींटे मारकर उस जगह को पवित्र कर लें। इस स्थान पर दो इंच तक मिट्टी में रेत और सप्तमृतिका मिलाकर एक सार बिछा लें। कलश पर स्वास्तिक चिह्न बनाएं और सिंदूर का टीका लगाएं। कलश के गले में मौली लपेटें।

⚛️कैसे करें कलश स्थापना-: 

नवरात्रि की पूजा में कलश स्थापना का विशेष महत्व है. कलश को श्रीविष्णु का रूप माना जाता है, इसलिए नवरात्रि से पहले घटस्थापना या कलश स्थापना की जाती है। कलश स्थापना अगर शुभ मुहूर्त में की जाए तो इसका विशेष फल मिलता है।

 कलश स्थापना से पहले घर के मंदिर को अच्छी तरह से साफ कर लें. इसके बाद पूजा के स्थान पर लाल कपड़ा बिछाएं. कलश के लिए वैसे तो मिट्टी का कलश सबसे शुभ होता है लेकिन अगर वो नहीं है तो तांबे का कलश भी चलेगा. इसे लगातार 9 दिनों तक एक ही स्थान पर रखा जाता है. कलश में गंगा जल या स्वच्छ जल भर दें. अब इस जल में सुपारी, इत्र, दूर्वा घास, अक्षत और सिक्का डालें. इसके बाद कलश के किनारों पर अशोक या आम के पत्ते रखें और कलश को ढक्कन से ढक दें. एक नारियल पर लाल कपड़ा या चुन्नी लपेट दें. अब नारियल और चुन्नी को रक्षा सूत्र या मोली से बांधें. इसे तैयार करने के बाद चौकी या जमीन पर जौ वाला पात्र (जिसमें आप जौ बो रहे हैं) रखें. अब जौ वाले पात्र के ऊपर मिटटी का कलश और फिर कलश के ढक्कन पर नारियल रखें।

उसके बाद आप विधि विधान से पाठ- पूजा उपासना करें, माता का ध्यान स्मरण करें व मंत्र जप करें, माता के प्रसाद का भोग लगाएं और माता की आरती करें।।


Posted By Lal Kitab Anmol03:29

 
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