बीमारी का बगैर दवाई भी इलाज़ है,मगर मौत का कोई इलाज़ नहीं दुनियावी हिसाब किताब है कोई दावा ए खुदाई नहीं लाल किताब है ज्योतिष निराली जो किस्मत सोई को जगा देती है फरमान दे के पक्का आखरी दो लफ्ज़ में जेहमत हटा देती है

Friday, 1 September 2023

मांगलिक दोष के प्रति कुछ भ्रांतियां

 🪐ज्योतिष- ग्रह- नक्षत्र🪐

प्राचीन काल से ही विवाह के पूर्व कुंडली मिलान किया जाता रहा है। वर और वधु की जन्म कुंडली के आधार पर उनका विवाह होना योग्य हैं या नहीं, इसे कुंडली मिलान में देखा जाता है। कुंडली मिलान में कई बातें देखी जाती हैं उसमें सबसे ज्यादा मान्यता होती हैं मंगल की। बायोडाटा बनाने के पहले ज्योतिषी से पूछा जाता है वर या कन्या मांगलिक है या नहीं! नहीं है तो कोई बात नहीं लेकिन अगर मांगलिक है तब माता-पिता के माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिखलाई देने लगती हैं।

 आधे अधूरे ज्ञान ने मंगल को लेकर एक ‘‘हव्वा’’ बना कर रखा है। मांगलिक को मांगलिक ही जीवनसाथी चाहिए अन्यथा अलग- अलग कुतर्क दिए जाते हैं। दोनों में से एक का जीवन संकट में पड़ जाएगा, संतान नहीं होगी, आल्पायु होंगे आदि आदि। मांगलिक होना उनकी दृष्टि में बहुत बडा दोष हैं।

 मांगलिक होने से विवाह में देरी होगी, वैवाहिक जीवन उतार चढ़ाव से भरा रहेगा आदि अनेको भ्रांतियां दिलों दिमाग में घर कर जाती हैं। ऐसी कई बातें ‘‘ मांगलिक होने ’’ से जुड़ी हुई हैं। ऐसे में मांगलिक और उससे जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने के उपाए|


मांगलिक कितने प्रतिशत

आम धारणा ये है कि मांगलिक बहुत कम होते हैं, परंतु ये गलत धारणा है। ज्योतिष के अनुसार जिन जातक की कुंडली में  प्रथम, चतुर्थ, सप्तम,अष्टम  तथा द्वादश इन भावों पर मंगल होने पर वो अशुभ होता है या साधारण भाषा में उसे मांगलिक कहते हैं।

 हर दिन 24 घंटे होते हैं, प्रत्येक लग्न लगभग 2 घंटे का होता है। इस प्रकार 24 घंटे में लगभग 12 लग्न होते हैं। पहले, चौथे, सातवें, आठवें व बारहवे मंगल होने से उसे मांगलिक कहेंगे। इस प्रकार 12 लग्न में से 5 लग्न वाले पूर्ण रूप से मांगलिक होते हैं। यदि प्रतिशत की बात करें तो 41. 67 प्रतिशत प्रतिदिन मांगलिक उत्पन्न हो रहें हैं। साधारण भाषा में बात करें तो प्रतिदिन 12 लोग उत्पन्न हो रहें हैं उसमें से 5 मांगलिक हैं। इसलिए मांगलिक होने से घबराने की कोई बात नहीं हैं|

 मांगलिक का विवाह मांगलिक के साथ ही होना चाहिेए..


मांगलिक का विवाह मांगलिक के साथ ही होना आवश्यक नहीं है। मंगल लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम तथा द्वादश भाव में प्रतिकुल परिणाम आमतौर पर देता है। इसलिए मंगल के सदृश्य दूसरी कुंडली में इन्हीं स्थानों पर मंगल हो तो अच्छा होता है। इसे मांगलिक का मांगलिक से मिलान कहते हैं।

 इसके अलावा एक कुंडली में इन स्थानों में से किसी स्थान पर मंगल हैं और दूसरी कुंडली में मंगल नहीं हैं तब दूसरी कुंडली में इन्हीं स्थानों में से किसी स्थान पर यदि शनि या राहू, केतु तथा सूर्य में से कोई भी एक ग्रह यदि है तब भी उससे मांगलिक कुंडली का मिलान हो सकता है। इसके अलावा चंद्र कुंडली से भी मांगलिक हो तो भी वह मांगलिक माना जाता है।

 

क्या हैं पगड़ी मंगल तथा चुनरी मंगल.

मांगलिक के संदर्भ में पगड़ी मंगल तथा चुनरी मंगल ये दो शब्द सुनने को मिलते हैं। पूछते हैं मंगल कौन सा है, पगड़ी मंगल या चुनरी मंगल। आमजन तो असमंजस में पड़ते ही हैं नए ज्योतिषी भी ये शब्द सुनकर दुविधा में पड़ जाते हैं कि ये क्या बला हैं कोई ग्रंथ में तो ये सुनने के लिए नहीं मिला। पहले लड़के आमतौर पर पगड़ी पहनते थे और लड़कियां चुनरी ओढ़ा करती थीं। इसलिए यदि लड़के की कुंडली मांगलिक है तब उसे पगड़ी मंगल कहा जाता हैं और यदि लड़की की कुंडली मांगलिक हैं तब उसे चुनरी मंगल कहा जाता है।

 

क्या 28 वर्ष के बाद मंगलदोष दूर हो जाता है

कुछ लोगों में यह भी भ्रम है कि आयु के 28 वर्ष के बाद वह कुंडली मांगलिक नहीं होती। ये पुरी तरह से निराधार है।

 साधारण तौर पर यदि कुंडली मे मंगल दोष हैं तब विवाह 28 वर्ष तक नहीं होने देता, कुछ शुभता उसमें हैं तब 24 वें वर्ष में विवाह करवा देता है, परंतु आमतौर पर 28 वर्ष तक विवाह नहीं होता। 28 वर्ष के बाद कुंडली में मंगल का प्रभाव तो रहेगा ही, हां कुछ हद तक उसका कुप्रभाव कुछ कम हो जाता है।

लेकिन सही मायने में कुंडली में पड़ा हुआ कोई भी दोष पूर्णतया कभी खत्म नहीं होता। वह कभी भी अपनी दशा-महादशा अंतर्दशा में प्रभावी जरूर होता है।।

 

ध्यान रहे👉 मंगल दोष से घबराना नहीं चाहिए, काफी ऐसे उपाय हैं जो हम जीवन पर्यंत करते हुए मंगल दोष के कुप्रभाव से मुक्त हो सकते हैं।

Posted By Lal Kitab Anmol16:38

Wednesday, 30 August 2023

कुंडली भी बताती है आपके घर में प्रेतादि समस्याओं को

आओ समझें तंत्र ज्योतिष रहस्य को...

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प्रेतात्माओं की वैज्ञानिक स्वीकार्यता:-

   वेद और विज्ञान दोनों ही ये मानते हैं कि समस्त ब्रह्मांड दोही मूल यौगिकों से बना है,  एक है पदार्थ और दूसरा है तरंग यह दोनों मिलकर पूरे ब्रह्मांड के समस्त चराचर का निर्माण करते हैं।  तरंगों के आवेश से पदार्थ एवं समस्त भौतिक तत्वों को प्रभावित किया जाता है और यह भौतिक विज्ञान का सिद्धांत है कि प्रत्येक की तरंग एवं पदार्थ दूसरे पदार्थों पर सकारात्मक या फिर नकारात्मक प्रभाव अवश्य डालता है इसी वैज्ञानिक आधार पर ब्रह्मांड के तमाम तरंग समूह हमारे जीवन में सकारात्मक अथवा नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।पकउ।

      प्रेत आत्माओं का शास्त्रीय वर्णन:- 

हमारा सनातन वैदिक सिद्धांत कहता है के आत्मा अमर है और विभिन्न योनियों में अपने कर्मानुसार भ्रमण करती रहती है यानि कि जीवन जगत के अलावा एक आत्माओं का संसार भी होता है।

    और वह आत्माएं अपने स्वभाव अनुसार विशेष परिस्थितियों में मानव जीवन पर अपना प्रभाव डालती रहती हैं उन्हीं प्रभावों से पीड़ित होकर हम प्रेत बाधा, पित्र बाधा, भूत बाधा आदि समस्याओं से यदा-कदा ग्रसित हो जाते हैं।पकउ।

      हमारा आज का विषय है, ज्योतिष कुंडली के अध्यन से प्रेतबाधा की पहचान और निदान, कुंडली के निम्नलिखित योग प्रेतबाधा को इंगित करते हैं।

1. नीच राशि में स्थित राहु के साथ लग्नेश हो तथा सूर्य, शनि व अष्टमेश से दृष्ट हो।

2. पंचम भाव में सूर्य तथा शनि हो, निर्बल चन्द्रमा सप्तम भाव में हो तथा बृहस्पति बारहवें भाव में हो।

3. जन्म समय चन्द्रग्रहण हो और लग्न, पंचम तथा नवम भाव में पाप ग्रह हों तो जन्मकाल से ही पिशाच बाधा का भय होता है।

4. षष्ठ भाव में पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट राहु तथा केतु की स्थिति भी पैशाचिक बाधा उत्पन्न करती है।

5. लग्न में शनि, राहु की युति हो अथवा दोनों में से कोई भी एक ग्रह स्थिति हो अथवा लग्नस्थ राहु पर शनि की दृष्टि हो।

6. लग्नस्थ केतु पर कई पाप ग्रहों की दृष्टि हो।

7. निर्बल चन्द्रमा शनि के साथ अष्टम में हो तो पिशाच, भूत-प्रेत मशान आदि का भय।

8. निर्बल चन्द्रमा षष्ठ, अथवा बाहरहवें भाव में क्रूर ग्रह के साथ हो तो भी पिशाच भय रहता है।

9. चर राशि (मेष, कर्क, तुला, मकर) के लग्न पर यदि षष्ठेश की दृष्टि हो।

10. एकादश भाव में मंगल हो तथा नवम भाव में स्थिर राशि (वृष, सिंह,वृश्चिक, कुंभ) और सप्तम भाव में द्विस्वभाव राशि(मिथुन, कन्या, धनु मीन) हो।

11. लग्न भाव मंगल से दृष्ट हो तथा षष्ठेश, दशम, सप्तम या लग्न भाव में स्थिति हों।

12. मंगल और षस्टेश यदि लग्नेश के साथ केंद्र या लग्न भाव में स्थिति हो ।

13. पापग्रहों से युक्त या दृष्ट केतु लग्नगत हो और लग्नेश निर्बल हो।

14. शनि राहु केतु या मंगल में से कोई भी एक ग्रह नीच का होकर सप्तम स्थान में हो।

15. जब लग्न में चन्द्रमा और राहु योग हो और त्रिकोण भावों में क्रूर ग्रह हों।

16. अष्टम भाव में शनि के साथ निर्बल चन्द्रमा (विषयोग) हो।

17. राहु शनि दोनों ही लग्न में स्थित हो।

18. लग्नेश एवं राहु अपनी नीच राशिस्थ होकर अष्टम भाव या अष्टमेश से संबंध बनाऐ।

19. राहु नीच राशि का होकर अष्टम भाव में हो तथा लग्नेश  पाप ग्रह के साथ द्वादश में हो।

20- द्वितीय में राहु, द्वादश में शनि, षष्ठ में चंद्र, तथा लग्नेश भी अशुभ भावों में हो।

21- चन्द्रमा तथा राहु दोनों ही नीचस्थ होकर अष्टम भाव में हो।

22. चतुर्थ भाव में उच्च का राहु हो वक्री मंगल द्वादश भाव में हो तथा अमावस्या तिथि का जन्म हो।

23. नीचस्थ सूर्य के साथ केतु हो तथा उस पर शनि की दृष्टि हो तथा लग्नेश भी नची राशि का हो।

24-दशमेश यदि अष्टम या एकादश भाव में हो एवं संबंधित भाव के स्वामी से द्रष्ट हो। तो भी प्रेत बाधा योग बनता है।।

25- दूसरे, तीसरे या पांचवें भाव में राहु अथवा केतु हों, या फिर सूर्य, चंद्र, लग्नेश और नवमेश में से कोई दो ग्रह  राहु या शनी से पीड़ित हो तो पित्र या कुलदेवों के प्रकोप का भय रहता है।।

जिन जातकों की कुण्डली में उपरोक्त योगों में से एकाधिक योग हों, उन्हें विशेष सावधानीपूर्वक रहना चाहिए तथा संयमित जीवन शैली का आश्रय ग्रहण करना चाहिए। जिन बाह्य परिस्थितियों या स्थानों के कारण प्रेत बाधा का प्रकोप हो सकता है उनसे विशेष रूप से दूर रहें, बचें।। पकउ।।

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     वैसे ऊपरी बाधाऐ दो प्रकार की होती हैं 1- सात्विक, 2- तामसिक।

        1- सात्विक बाधाओं से मुक्त रखने में निम्नलिखित उपाय भी सहायक सिद्ध हो सकते हैं:-

1️⃣अपने शरीर, मन एवं निवास का पवित्र बनाए रखें।

 2️⃣नित्य हनुमान चालीसा, देवी कवच, रामरक्षा स्तोत्र या गायत्री पाठ-जप करें ।

3️⃣ नित्य कुलदेवी एवं कुलदेवता का पूजन, ध्यान व प्रार्थना करें।

4️⃣ अपने या कुलगुरू का सानिध्य करें, और उनका आशीर्वाद लेते रहें।

5️⃣ पित्रशांती एवं ग्रहशांती करवाएं।।

6️⃣सही प्राणप्रतिष्ठित पुखराज रत्न धारण करें।।

 

          2- तामसिक बाधाओं से मुक्त रखने में निम्नलिखित उपाय भी सहायक रहते हैं:-

1️⃣ भैरवी, काली या महाकाल का नित्य पूजन अर्चन करते रहें।

2️⃣ गुग्गुल की धूनी देते रहें, या नित्य होम करें।

3️⃣ देवीकवच या सुंदरकांड का पाठ करें।

Posted By Lal Kitab Anmol12:38

Friday, 18 August 2023

रक्षा बंधन, जानें राखी बांधने का शुभ मुहूर्त

अंतर्गत लेख:

 31 अगस्त को मनाया जाएगा रक्षा बंधन, जानें राखी बांधने का शुभ मुहूर्त


सावन की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का पवित्र त्योहार मनाया जाता है, इस साल रक्षाबंधन के दिन भद्र काल और पंचक का निर्माण हो रहा है. रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त 30 अगस्त 2023 को रात्रि 09:01 बजे से प्रारंभ होकर 31 अगस्त को सुबह 7:05 बजे तक रहेगा, इसीलिए इस बार रक्षाबंधन 30 और 31 अगस्त को मनाई जाएगीl

रक्षा बंधन के त्योहार की तैयारियों की शुरुआत हो चुकी है। बाजारों में रंग बिरंगी राखियां नजर आने लगी है। इस साल 31 अगस्त को रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाएगा। इस अवसर पर बहन भाई के हाथ में राखी बांधकर उनकी लंबी उम्र की कामना करती है।

रक्षा बंधन भाई बहन के लिए सबसे खास त्योहार होता है। इसे परंपरा के अनुसार व धार्मिक विधि द्वारा बताए कार्यों में इससे अनूठा कोई त्योहार नहीं होता है। दुनिया में भाई बहन से पवित्र कोई रिश्ता नहीं बनाया गया है। यह दोनों ईश्वर द्वारा दिया गया बहुत ही निर्मल व पवित्र रिश्ता होता है।




रक्षा बंधन के दिन बहन अपने भाई की लंबी आयु के साथ स्वास्थ्य व संपन्नता की कामना करती है। और भाई अपनी बहन को तोहफा देता है। राखी बांधने के लिए भद्र व शुभ मुहूर्त का बहुत ही महत्व होता है। भाई व बहन दोनों के लिए शुभ मुहूर्त में राखी बांधना व बंधवाना उत्तम होता है।

शुभ मुहूर्त

राखी बंधने के लिए शुभ मुहुर्त की बात करें तो 30 अगस्त को भद्र रात में 9 बजकर 1 मिनट तक होने के कारण आप चौघड़िया मुहूर्त में भी राखी बांध सकते हैं। अमृत चौघड़िया मुहूर्त राखी बांधने के लिए सर्वोत्तम मुहूर्त सुबह 7 बजकर 34 मिनट से 9 बजकर 10 मिनट तक। शुभ चौघड़िया मुहूर्त सुबह 10 बजकर 46 मिनट से 12 बजकर 22 मिनट तक रहेगा ।

रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त 30 अगस्त को रात 09 बजकर 01 मिनट के बाद से शुरू होगा और इस मुहूर्त का समापन 31 अगस्त को सूर्योदय काल में सुबह 07 बजकर 05 बजे पर होगा.


Posted By Lal Kitab Anmol07:33

मंगल का कन्या राशि में गोचर

अंतर्गत लेख:

 LKA

                               ज्योतिषी- ग्रह- नक्षत्र


                             18 अगस्त 2023 शुक्रवार   समय-: दोपहर 3:14 पर

 


🔴मंगल ग्रह के गोचर का समय-:

आज साहस और ऊर्जा के कारक ग्रह मंगल 18 अगस्त 2023 की दोपहर 3 बजकर 14 मिनट पर कन्या राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं।।

ज्योतिष में मंगल ग्रह का विशेष स्थान प्राप्त है, मंगल को सभी ग्रहों का सेनापति कहा जाता है, मंगल को ऊर्जा- भाई- भूमि- शक्ति- साहस- पराक्रम- शौर्य का कारक ग्रह कहा जाता है।

मंगल ग्रह मेष और वृश्चिक राशि का स्वामित्व प्राप्त है यह मकर राशि में उच्च का और कर्क राशि में नीच का होता है।

मंगल ग्रह का 18 अगस्त को राशि परिवर्तन होने जा रहा है और यह राशि परिवर्तन सभी 12 राशियों को प्रभावित करेगा, कुछ राशि वालों के लिए शुभ होगा, तो कुछ राशि वालों के लिए अशुभ फलों की प्राप्ति होगी।

वैदिक ज्योतिष में लाल ग्रह मंगल को भूमि पुत्रके रूप में जाना जाता है। मंगलशब्द का अर्थ होता है शुभ। सनातन धर्म में मंगल ग्रह का संबंध देश के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न देवी-देवताओं से संबंधित बताया गया है। जैसे दक्षिण भारत में मंगल देव को भगवान कार्तिकेय (मुरुगन) के साथ जोड़कर देखा जाता है। जबकि उत्तर भारत में भगवान हनुमान के साथ इनका संबंध बताया गया है। इसके अलावा महाराष्ट्र में मंगल को भगवान गणेश के साथ जोड़ा जाता है।

सभी ग्रहों में से मंगल और सूर्य हमारे शरीर के सभी अग्नि तत्वों को नियंत्रित करते हैं। इसे जीवन शक्ति, शारीरिक ऊर्जा, सहनशक्ति, समर्पण, इच्छाशक्ति, कुछ करने की प्रेरणा और किसी भी कार्य को पूर्ण करने की ऊर्जा आदि का कारक प्राप्त होता है। जिस जातक की कुंडली में मंगल का प्रभाव अधिक होता है वो लोग साहसी, आवेगी और सीधे आगे बढ़ना पसंद करते हैं।

मंगल को भूमि, वास्तविक अवस्था, प्रौद्योगिकी और इंजीनियरिंग का कारक भी माना जाता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि मंगल ग्रह हमारे जीवन में विशेष महत्व है।

मंगल का कन्या राशि में गोचर-:

अब बात करते हैं कन्या राशि के बारे में। राशि चक्र की छठी राशि कन्या है। यह पृथ्वी तत्व की राशि है और प्रकृति में दोहरी और स्त्री राशि है। कन्या राशि कुंवारी और अविवाहित लड़की का प्रतिनिधित्व करती है। ये स्वभाव में परिपूर्णतावादी (परफ़ेक्शनिस्ट) और थोड़े आलोचक होते हैं। यह संघर्ष और लड़ाई का प्रतीक भी है। काल पुरुष कुंडली के छठे भाव में मंगल आरामदायक स्थिति में मौजूद होते हैं लेकिन फिर भी कई लोगों के लिए समस्या खड़ी कर सकते हैं। हालांकि इसके लिए जातक की कुंडली में मंगल की स्थिति एवं दशा का विश्लेषण करना ज़रूरी हो जाता है।।

 मंगल के गोचर का सभी राशियों पर इस प्रकार प्रभाव रहेगा-:

मेष राशि -:

मेष राशि वालों के लिए मंगल लग्न और आठवें भाव के स्वामी हैं। मंगल का कन्या राशि में गोचर आपके छठे भाव यानी शत्रु, स्वास्थ्य, प्रतियोगिता के भाव में होगा।

 छठे भाव में मंगल की मौजूदगी आपके लिए लाभकारी साबित होगी। आत्मविश्वास बढ़ेगा संतान की ओर से सुखद समाचार मिलेंगे। कारोबार में भी स्थिति मजबूत होगी। आपके शत्रु परास्त होंगे। प्रतियोगिता में सफलता का योग भी बनता। यदि कोई मुकदमा है तो उसमें आप भारी पड़ेंगे, कानूनी फैसले आपके पक्ष में आने की संभावना है।

मंगल आपके छठे भाव से नौवें भाव, बारहवें भाव और लग्न पर दृष्टि डाल रहे हैं, जिसका परिणाम स्वरूप आपके पिता के स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इस दौरान कार्य क्षेत्र में भी बदलाव देखने को मिल सकते हैं, काम के सिलसिले में आपको लंबी यात्राएं करनी पड़ सकती है। यदि आपने विदेश जाने की तैयारी कर रखी है तो यह मंगल आपके विदेश जाने का भी योग बना रहा है।

मेष राशि वालों के लिए मंगल का कन्या राशि में गोचर आपके खर्चों में वृद्धि कर सकता है और स्वभाव को आक्रामक/गुस्सैल भी बना सकता है। फालतू के खर्चे व विवाद से बचें।।

उपाय-: मेष राशि वाले जातक उपाय के तौर पर श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें, हनुमान जी के लाल पुष्प चढ़ाएं, मंगलवार के दिन हनुमान जी को सिंदूर अर्पित करें।।

(इस तरह मंगल ग्रह का राशि परिवर्तन सभी 12 राशियों पर अलग-अलग प्रभाव डालेगा।)

ध्यान रहे यह फलादेश केवल मंगल ग्रह के अनुसार है इस फलादेश में अन्य ग्रहों के प्रभाव से अंतर पड़ सकता है।

Posted By Lal Kitab Anmol05:58

#शिवपुराण में स्त्री धर्म से संबंधित कुछ विशेष नियम:-

 LKA 18/8/2023


१- पति बूढ़ा या रोगी हो गया हो तो भी पतिव्रता स्त्री को अपने पति का साथ नहीं छोडऩा चाहिए। जीवन के हर सुख-दु:ख में पति की आज्ञा का पालन करना चाहिए। अपने पति की गुप्त बात किसी को नहीं बताना चाहिए।

२- पत्नी को बिना सिंगार किए अपने पति के सामने नहीं जाना चाहिए। जब पति किसी कार्य से परदेश गया हो तो उस समय सिंगार नहीं करना चाहिए। पतिव्रता स्त्री को कभी अपने पति का नाम नहीं लेना चाहिए। पति के भला-बुरा कहने पर भी चुप ही रहना चाहिए।

३- पति के बुलाने पर तुरंत उसके पास जाना चाहिए और पति जो आदेश दे, उसका प्रसन्नतापूर्वक पालन करना चाहिए। पतिव्रता स्त्री को घर के दरवाजे पर अधिक देर तक नहीं खड़ा रहना चाहिए।

४- पतिव्रता स्त्री को अपने पति की आज्ञा के बिना कहीं नहीं जाना चाहिए। पति के बिना मेले, उत्सव आदि का भी त्याग करना चाहिए यानी नहीं जाना चाहिए। पति की आज्ञा के बिना व्रत-उपवास भी नहीं करना चाहिए।

५- पतिव्रता स्त्री को प्रसन्नतापूर्वक घर के सभी कार्य करना चाहिए। अधिक खर्च किए बिना ही परिवार का पालन-पोषण ठीक से करना चाहिए। देवता, पितर, अतिथि, सेवक, गाय व भिक्षुक के लिए अन्न का भाग दिए बिना स्वयं भोजन नहीं करना चाहिए


६- धर्म में तत्पर रहने वाली स्त्री को अपने पति के भोजन कर लेने के बाद ही भोजन करना चाहिए। जब पति खड़ा हो तो पत्नी को भी खड़ा रहना चाहिए। उसकी आज्ञा के बिना बैठना नहीं चाहिए। पति के सोने के बाद सोना चाहिए और जागने से पहले जाग जाना चाहिए।

७- रजस्वला होने पर पत्नी को तीन दिन तक अपने पति को मुंह नहीं दिखाना चाहिए अर्थात उससे अलग रहना चाहिए। जब तक वह स्नान करके शुद्ध न हो जाए तब तक अपनी कोई बात भी पति के कान में नहीं पडऩे देना चाहिए।

८- मैथुन काल के अलावा किसी अन्य समय पति के सामने धृष्टता यानी दु:साहस नहीं करना चाहिए। पतिव्रता स्त्री को ऐसा काम करना चाहिए, जिससे पति का मन प्रसन्न रहे। ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए, जिससे कि पति के मन में विषाद उत्पन्न हो।

९- पति की आयु बढऩे की अभिलाषा रखने वाली स्त्री को हल्दी, रोली, सिंदूर, काजल, मांगलिक आभूषण, केशों को संवारना, हाथ-कान के आभूषण, इन सबको अपने से दूर नहीं करना चाहिए यानी पति की प्रसन्नता के लिए सज-संवरकर रहना चाहिए।

१०- पतिव्रता स्त्री को सुख और दु:ख दोनों ही स्थिति में अपने पति की आज्ञा का पालन करना चाहिए। यदि घर में किसी वस्तु की आवश्यकता आ पड़े तो अचानक ये बात नहीं कहनी चाहिए बल्कि पहले अपने मधुर वचनों से उसे पति को प्रसन्न करना चाहिए, उसके बाद ही उस वस्तु के बारे में बताना चाहिए।

११- जो स्त्री अपने पति को बाहर से आते देख अन्न, जल आदि से उसकी सेवा करती है, मीठे वचन बोलती है, वह तीनों लोकों को संतुष्ट कर देती है। पतिव्रता स्त्री के पुण्य पिता, माता और पति के कुलों की तीन-तीन पीढिय़ों के लोग स्वर्गलोक में सुख भोगते हैं।

१२- रजोनिवृत्ति के बाद शुद्धता पूर्वक स्नान करके सबसे पहले अपने पति का चेहरा देखना चाहिए, अन्य किसी का नहीं। अगर पति न हो तो भगवान सूर्य देव के दर्शन करना चाहिए।

१३- पतिव्रता स्त्रियों को चरित्रहीन स्त्रियों के साथ बात नहीं करनी चाहिए। पति से द्वेष रखने वाली स्त्री के साथ कभी

 नहीं खड़ा रहना चाहिये।।

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Posted By Lal Kitab Anmol05:52

Monday, 24 July 2023

“ॐ नमः शिवाय” के जप से भोलेनाथ बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं

 “ॐ नमः शिवाय”☘️ 


धर्मग्रंथों के अनुसार “ॐ नमः शिवाय” के जप से भोलेनाथ बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं एवं इस मंत्र के जप से आपके सभी दुःख, सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं और  शिवजी की असीम कृपा प्राप्त होती है। 


भगवान शिव का वार सोमवार माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार सोमवार के दिन भगवान शिव की सच्चे मन से पूजा की जाए तो सारे क्लेशों से मुक्ति मिलती है और मनोकामना पूर्ण होती है। यह भी मान्यता है कि सोमवार के दिन शिवलिंग पर गाय का कच्चा दूध, गंगाजल चढ़ाने एवं रुद्राक्ष की माला से "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप 108 बार करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।।

शिवपूजा का सर्वमान्य पंचाक्षर मंत्र 'ॐ नमः शिवाय',जो प्रारंभ में ॐ के संयोग से षडाक्षर हो जाता है, भगवान शिव को शीघ्र ही प्रसन्न कर देता है। हृदय में 'ॐ नमः शिवाय' का मंत्र समाहित होने पर संपूर्ण शास्त्र ज्ञान एवं शुभकार्यों का ज्ञान स्वयं ही प्राप्त हो जाता है।

🔹पंचतत्वों का प्रतिनिधित्व करता है यह मंत्र-: 

शिव पुराण के अनुसार इस मंत्र के ऋषि वामदेव हैं एवं स्वयं शिव इसके देवता हैं। नमः शिवाय की पंच ध्वनियाँ सृष्टि में मौजूद पंचतत्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिनसे सम्पूर्ण सृष्टि बनी है और प्रलयकाल में उसी में विलीन हो जाती है। भगवान शिव सृष्टि को नियंत्रित करने वाले देव माने जाते हैं। क्रमानुसार 'न' पृथ्वी, 'मः'पानी, 'शि'अग्नि,  'वा' प्राणवायु और 'य' आकाश को इंगित करता है।शिव के पंचाक्षर मंत्र से सृष्टि के पांचों तत्वों को नियंत्रित किया जा सकता है।।  


🔹मंत्र का महत्व-: 

धर्मग्रंथों के अनुसार “ॐ नमः शिवाय” के जप से भोलेनाथ बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं एवं इस मंत्र के जप से आपके सभी दुःख, सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं और आप पर शिवजी की असीम कृपा बरसने लगती है। स्कन्दपुराण में कहा गया है कि-'ॐ नमः शिवाय 'महामंत्र जिसके मन में वास करता है, उसको सभी मंत्र, तीर्थ, तप व यज्ञों का स्वत ही शुभ फल मिल जातें है। यह मंत्र मोक्ष प्रदाता है,पापों का नाश करता है और साधक को लौकिक, परलौकिक सुख देने वाला है।।

🔹मंत्र जप की विधि-: 

• भगवान शिव के "ऊं नमः शिवाय" मंत्र का जप कोई भी कर सकता है, और किसी भी समय, किसी भी अवस्था में किया जा सकता है। इस मंत्र जप के लिए किसी भी प्रकार की कोई वर्जनाएं नहीं है। इस मंत्र को आप चलते-फिरते भी निरंतर जप सकते हैं।

• विशेष मनोकामना व सिद्धि हेतु इस मंत्र का जप रुद्राक्ष की माला से शिव मंदिर में, किसी नदी के पास या पीपल व बरगद के पेड़ के नीचे या कोई एकांत स्थान में बैठकर भी कर सकतें है।।

• भगवान शिव की पूजा- उपासना व शिव को जल अर्पित करते समय भी "ऊं नमः शिवाय" मंत्र का जप ही श्रेष्ठ है।

• ‘ॐ नम: शिवाय’ मंत्र से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है, यह मंत्र सुख- समृद्धि व स्वास्थ्य लाभ भी देता है। 

• इस मंत्र का जप हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए।।


Posted By Lal Kitab Anmol15:29

Wednesday, 19 July 2023

तुलादान क्यों, कैसे और क्यों करें। आओ समझें वैदिक ज्योतिष-तंत्र का रहस्य...

 LKA 19/7/2023

भारतीय ज्योतिष में ग्रहों के कष्टों से निवारण हेतु तुलादान करना एक सशक्त एवं फलदाई उपाय बताया गया है ।

तुला दान का मतलब है अपनी देह के बराबर भजन की ग्रहों से संबंधित वस्तुओं का तौलकर दान करना। पकउ।।

कब किस ग्रह का तुला दान करना चाहिए

यदि कोई ग्रह कुंडली में कारक अथवा मारक है और उस ग्रह की दशाएं या गोचर में वह ग्रह प्रभावित कर रहा है तब तब उस ग्रह को कदापि बलवान न किया जाए, उसका शांति जा या फिर दान करना चाहिए।। इसके विपरीत कभी भी लग्नेश भागेश अथवा कुंडली के कारक ग्रह का तुलादान कदापि नहीं करना चाहिए।।पकउ।।

 


क्या क्या तुलादान करें

विभिन्न परिस्थितियों संबंधित ग्रह के अनुसार तुलादान करें जैसे:-

1️⃣ सूर्य का:- सूर्य यदि कुंडली  में अशुभ फलदाई है और उसका दशांतर है।। परंतु मेष, सिंह लग्न या कारक सूर्य वालों को ये दान उचित नहीं है।

    तब गुड, लाल अन्न , लाल दालें, अनार फल , सोना या पीतल धातु का "तुलादान" करें।।

      ये दान वृद्ध "पिता तुल्य" ब्राह्मण को देना अधिक लाभदायक होगा।।

2️⃣ चंद्र का:- चंद्र यदि कुंडली में अकारक या मारक होकर बलवान है तब इसका तुलादान करना उचित है परंतु कर्क , वृश्चिक लग्न वाले या फिर जिनका चंद्र कारक ग्रह है अथवा क्षीण चंद्र, अमावस्या दोष आदि योग वालों को यह दान करना उचित नहीं है।

 चंद्र के लिए शर्करा, श्वेत अन्न , धुली दालें, दुग्ध, चांदी धातू आदि का "तुलादान" करना चाहिए।।

 दान वृद्ध "माता तुल्य" ब्राह्मणी, अथवा बेसहारा स्त्रियों का देना हितकर रहेगा।।

3️⃣ मंगल का:- यदि कुंडली मांगलिक है, मंगल अकारक या मारक है, और साथ में बलवान भी है....

   तब गुड , तांबा धातु, लाल  धान्य, लाल मसूर, लाल फल आदि का "तुलादान" करना चाहिए।

    ये दान मित्र-ब्राह्मण, तपस्वी, हनुमानजी मंदिर,  सेना के धर्मगुरू, राजगुरु, शस्त्र शिक्षक आदि को देना श्रेष्ठ है।

4️⃣ बुध का:- अकारक मारक होकर वलवान बुध के लिए भी "तुलादान"  करना उचित रहेगा।।

   धान्य, हरी दाल, हरे मीठेफल, स्वर्ण, धृत , हरी बस्तुऐं (चारा आदि) तुलादान कर सकते हैं।

      ये दान वैदिक विद्यार्थी, गणिताचार्य, ज्योतिषाचार्य, गणेश जी मंदिर, अथवा बहन-बुआ आदि को देना सर्वोत्तम हैं। पकउ।।

5️⃣ गुरू का:- अकारक , मारक वलवान गुरु, ब्रह्मश्राप अथवा गुरूश्राप योग, में गुरू के लिए "तुलादान" कर सकते हैं...

        गैहू धान्य, पीली दाल, पीली धातू, धृत, पीले फल, मिठाई आदि से "तुलादान" लाभप्रद रहेगा।।

    ये दान गुरू, ब्राह्मण, विद्वान, वैद्य, शिक्षक, ज्ञानीजनों आदि को देना श्रेयकर है।

6️⃣  शुक्र का:- यदि शुक्र अकारक मारक होकर वलवान हो तब तुलादान कर सकते हैं, परंतु कुंडली में कारक अथवा निर्वल शुक्र मे कदापि ये दान ना करें।।

        चावल, धुली सफेद दाल, वस्त्र, प्लेटेनियम या चांदी धातु, सौन्दर्य सामग्री, आदि से "तुलादान" बहुत ही सौभाग्य बर्धक है।

       ये दान तंत्राचार्य ब्राह्मण, यज्ञाचार्य, ज्योतिषाचार्य, वास्तुविद, वैद्य आदि ब्राह्मणों को देना सर्वोत्तम रहता है।

7️⃣ शनी का:- यदि अकारक मारक होकर वलवान हो,  साढ़े साती- ढैया आदि का रात्रि कालीन जन्म हो, उसकी दशांतर या साढ़ेसाती-ढैया पीड़ित कर रही हो तब ये तुलादान उचित है....

     सप्तधान्य, सतरंगी दालें, काले तिल-सरसों, काले उर्द, स्टील "लोहा" , सरसों का तेल, आदि से तुलादान करना उचित है।

     ये दान जोषी "शनीदान मांगने वाले" ,  दीन-हीन, भिकारी, कोढी, रोगी, मजदूर या शनी उपासकों को देना चाहिए।

8️⃣ राहु-केत का:-  दोषपूर्ण अकारक वलवान राहु-केतु होने पर अशुभ गोचर स्थिति में, और इसकी दशांतर में राहु-केतु का भी तुलादान हितकर रहेगा।।

     पंचधान्य, पचरंगी दालें, पचरंगी मिठाई, पाच फल,  पाच प्रकार के तेल, हवन सामग्री, पांच धातु या कांसा, आदि से तुलादान बहुत श्रेष्ठ फलदाई होता है।

       ये दान जोषी "शनी का दान लेने वाले" ,  मलिन भिकारी, अथवा सफाई कर्मचारियों को देना सर्वाधिक फलदाई रहता है।

 

विशेष नोट :-

   जिस ग्रह की जो भी वस्तुएं लिखी हैं उन सभी कै मिलाकर अपने बजन बराबर तौलकर दान देना सर्वोत्तम लाभकारी होता है। वैसे सामर्थ्य अनुसार किसी एक वस्तु का भी तुलादान लाभप्रद होता।। पकउ।।

    कुंडली में लग्नेश या उसका मित्र ग्रह, कारक, भाग्येश, सुखेश आदि ग्रहों का किसी भी दशा में तुलादान करना कदापि उचित नहीं हैं (उनका रत्न-औषधी धारण करना, जाप अनुष्ठान करना ही उचित रहता है।)पकउ।।

दान करें धन ना घटे, पाप किए घट जाए।।

Posted By Lal Kitab Anmol15:02

Monday, 10 July 2023

भगवान शिव के 108 नाम

 🕉️भगवान शिव के 108 नाम🕉️ 



एक जल का लोटा कुछ आक, धतूरे, बेलपत्र अर्पण मात्र से भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं। आइए सब मिलकर ऐसे सदाशिव भोलेनाथ के 108 नाम का जप करें-: 

१- ॐ भोलेनाथ नमः

२-ॐ कैलाश पति नमः

३-ॐ भूतनाथ नमः

४-ॐ नंदराज नमः

५-ॐ नन्दी की सवारी नमः

६-ॐ ज्योतिलिंग नमः

७-ॐ महाकाल नमः

८-ॐ रुद्रनाथ नमः

९-ॐ भीमशंकर नमः

१०-ॐ नटराज नमः

११-ॐ प्रलेयन्कार नमः

१२-ॐ चंद्रमोली नमः

१३-ॐ डमरूधारी नमः

१४-ॐ चंद्रधारी नमः

१५-ॐ मलिकार्जुन नमः

१६-ॐ भीमेश्वर नमः

१७-ॐ विषधारी नमः

१८-ॐ बम भोले नमः

१९-ॐ ओंकार स्वामी नमः

२०-ॐ ओंकारेश्वर नमः

२१-ॐ शंकर त्रिशूलधारी नमः

२२-ॐ विश्वनाथ नमः

२३-ॐ अनादिदेव नमः

२४-ॐ उमापति नमः

२५-ॐ गोरापति नमः

२६-ॐ गणपिता नमः

२७-ॐ भोले बाबा नमः

२८-ॐ शिवजी नमः

२९-ॐ शम्भु नमः

३०-ॐ नीलकंठ नमः

३१-ॐ महाकालेश्वर नमः

३२-ॐ त्रिपुरारी नमः

३३-ॐ त्रिलोकनाथ नमः

३४-ॐ त्रिनेत्रधारी नमः

३५-ॐ बर्फानी बाबा नमः

३६-ॐ जगतपिता नमः

३७-ॐ मृत्युन्जन नमः

३८-ॐ नागधारी नमः

३९- ॐ रामेश्वर नमः

४०-ॐ लंकेश्वर नमः

४१-ॐ अमरनाथ नमः

४२-ॐ केदारनाथ नमः

४३-ॐ मंगलेश्वर नमः

४४-ॐ अर्धनारीश्वर नमः

४५-ॐ नागार्जुन नमः

४६-ॐ जटाधारी नमः

४७-ॐ नीलेश्वर नमः

४८-ॐ गलसर्पमाला नमः

४९- ॐ दीनानाथ नमः

५०-ॐ सोमनाथ नमः

५१-ॐ जोगी नमः

५२-ॐ भंडारी बाबा नमः

५३-ॐ बमलेहरी नमः

५४-ॐ गोरीशंकर नमः

५५-ॐ शिवाकांत नमः

५६-ॐ महेश्वराए नमः

५७-ॐ महेश नमः

५८-ॐ ओलोकानाथ नमः

५४-ॐ आदिनाथ नमः

६०-ॐ देवदेवेश्वर नमः

६१-ॐ प्राणनाथ नमः

६२-ॐ शिवम् नमः

६३-ॐ महादानी नमः

६४-ॐ शिवदानी नमः

६५-ॐ संकटहारी नमः

६६-ॐ महेश्वर नमः

६७-ॐ रुंडमालाधारी नमः

६८-ॐ जगपालनकर्ता नमः

६९-ॐ पशुपति नमः

७०-ॐ संगमेश्वर नमः

७१-ॐ दक्षेश्वर नमः

७२-ॐ घ्रेनश्वर नमः

७३-ॐ मणिमहेश नमः

७४-ॐ अनादी नमः

७५-ॐ अमर नमः

७६-ॐ आशुतोष महाराज नमः

७७-ॐ विलवकेश्वर नमः

७८-ॐ अचलेश्वर नमः

७९-ॐ अभयंकर नमः

८०-ॐ पातालेश्वर नमः

८१-ॐ धूधेश्वर नमः

८२-ॐ सर्पधारी नमः

८३-ॐ त्रिलोकिनरेश नमः

८४-ॐ हठ योगी नमः

८५-ॐ विश्लेश्वर नमः

८६- ॐ नागाधिराज नमः

८७- ॐ सर्वेश्वर नमः

८८-ॐ उमाकांत नमः

८९-ॐ बाबा चंद्रेश्वर नमः

९०-ॐ त्रिकालदर्शी नमः

९१-ॐ त्रिलोकी स्वामी नमः

९२-ॐ महादेव नमः

९३-ॐ गढ़शंकर नमः

९४-ॐ मुक्तेश्वर नमः

९५-ॐ नटेषर नमः

९६-ॐ गिरजापति नमः

९७- ॐ भद्रेश्वर नमः

९८-ॐ त्रिपुनाशक नमः

९९-ॐ निर्जेश्वर नमः

१०० -ॐ किरातेश्वर नमः

१०१-ॐ जागेश्वर नमः

१०२-ॐ अबधूतपति नमः

१०३ -ॐ भीलपति नमः

१०४-ॐ जितनाथ नमः

१०५-ॐ वृषेश्वर नमः

१०६-ॐ भूतेश्वर नमः

१०७-ॐ बैजूनाथ नमः

१०८-ॐ नागेश्वर नमः।।

 

मात्र 2 मिनट लगेंगे, इन पवित्र नामों को स्वयं जपे और आगे शेयर करें। 

                हर हर महादेव

Posted By Lal Kitab Anmol15:07

Sunday, 9 July 2023

ज्योतिष विज्ञान और दिव्य वास्तु विज्ञान द्वारा गृह शान्ति उपाय एवम् उपचार

 आध्यात्मिक ज्योतिष विज्ञान और दिव्य वास्तु विज्ञान द्वारा गृह शान्ति उपाय एवम् उपचार 


गृह कलह से मुक्ति के उपाय

कहा जाता है कि जिस घर में क्लेश होता है, वहां लक्ष्मी का वास नहीं होता। हर किसी की अपने गृहस्थ जीवन में सुख और शांति की कामना होती है। घर और जीवन की खुशहाली ही व्यक्ति को जीवन में प्रगति के मार्ग पर ले जाती है। परिवार में व्याप्त कलह यानी की क्लेश से व्यक्ति का जीवन कठिनाइयों से भर जाता है। गृह क्लेश से बचने या उसे कम करने के लिए ज्योतिष एवं वास्तु के मिश्रित रुप का आधार लेकर कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं। हम आगे आपको ऐसे ही कुछ उपाय बता रहे हैं, जिनके इस्तेमाल से आपका जीवन सुखमय और खुशहाल बनाया जा सकता है।

सोने की दिशा

आप किस दिशा में सिर और पैर करके सोते हैं यह गृह कलह में काफी अहम भूमिका निभाता है। गृह कलह से मुक्ति के लिए रात को सोते समय पूर्व की और सिर रखकर सोए। इससे आपको तनाव से राहत मिलेगी। ऐसा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

हनुमान उपासना

हनुमान जी की नियमित रूप से की गई उपासना आपको सभी प्रकार के संकट और गृह कलह से दूर रखता है। यदि कोई महिला गृह कलह से परेशान हैं तो भोजपत्र पर लाल कलम से पति का नाम लिखकर तथा ‘हं हनुमंते नम:’ का 21 बार उच्चारण करते हुए उस पत्र को घर के किसी कोने में रख दें। इसके अलावा 11 मंगलवार नियमित रूप से हनुमान मंदिर में चोला चढाएं एवं सिंदूर चढाएं। ऐसा करने से परेशानियों से राहत प्राप्त होगी।

जलाभिषेक

प्रतिदिन सुबह में स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनकर मंदिर या घर पर शिवलिंग के सामने बैठकर शिव उपासना करें। आप ‘ऊँ नम: सम्भवाय च मयो भवाय च नम:। शंकराय च नम: शिवाय च शिवतराय च:।।’ मंत्र का 108 बार उच्चारण कर सकते हैं। इसके बाद आप शिवलिंग पर जलाभिषेक करें। ऐसा नियमित करने से प्पति-पत्नी के वैवाहिक जीवन में सुख शांति बनी रहती है।

गणेश उपासना

यदि किसी घर में पति-पत्नी या बाप-बेटे के बीच कलह है या किसी भी बात पर विवाद चल रहा है तो इसमें गणेश उपासना फायदेमंद रहेगी। वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने के लिए आप नुक्ति के लड्डू का भोग लगाकर प्रतिदिन श्री गणेश जी और शक्ति की उपासना करे।

चीटियों को भोजन

चीटियों के बिल के पास शक्कर या आटा व चीनी मिलाकर डालने से गृहस्थ की समस्याओं का निवारण होता है। ऐसा नियमित 40 दिन तक करें। ध्यान रखें कि इस प्रक्रिया में कोई नागा न हो।

 कुमकुम लगाए

एक गेंदे के फूल पर कुमकुम लगाकर उसे किसी देव स्थान में मूर्ति के सामने रख दें। ऐसा करने से रिश्तों में आया तनाव और मतभेद दूर होते हैं। साथ ही छोटी कन्या को शुक्रवार को मीठी वस्तु खिलाने और भेंट करने से आपके संकटों का निवारण होता है।

 तकिये में सिंदूर रखें

घर मे व्याप्त कलह क्लेश को कम करने के लिए पति-पत्नी को रात को सोते समय अपने तकिये में सिंदूर की एक पुड़िया और कपूर रखें। सुबह में सूर्योदय से पहले उठकर सिंदूर की पुड़िया घर से बाहर फेंक दें और कपूर को निकालकर अपने कमरे में जला दें। ऐसा करने से लाभ मिलेगा।

हल्दी की गांठ

ससुराल में सुखी रहने के लिए कन्या अपने हाथ से हल्दी की पांच साबुत गांठें, पीतल का एक टुकड़ा और थोड़ा-सा गुड़ ससुराल की दिशा की ओर फेंक दें। ऐसा करने से ससुराल में सुख एवं शांति का वास रहता है। पति-पत्नी के बीच प्रेम संबंध बने रहते हैं।

घर में रखें चांदी की गणेश प्रतिमा, पति-पत्नी के बीच नहीं होंगे झगड़े

घर में रखी हर वस्तु परिवार के सदस्यों के बीच संबंधों पर प्रभाव डालती है। सभी वस्तुओं की अलग-अलग सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार की ऊर्जा होती हैं। वास्तु के अनुसार बताई गई वस्तु सही जगह रखने पर घर में सकारात्मक ऊर्जा अधिक सक्रीय होती है।

सामान्यत: शादी के बाद पति-पत्नी के बीच छोटे-छोटे झगड़े होते रहते हैं लेकिन कई बार यही छोटे झगड़े काफी बढ़ जाते हैं। इन झगड़ों की वजह से दोनों के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में मानसिक तनाव बढऩे लगता है और वैवाहिक जीवन में खटास घुल जाती है। इससे बचने के लिए वास्तु और ज्योतिष में कई सटीक उपाय बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार श्रीगणेश को परिवार का देवता माना गया है।

श्रीगणेश की आराधना से परिवार की सुख-समृद्धि और परस्पर प्रेम बना रहता है। इसी वजह से प्रथम पूज्य गणेशजी की मूर्ति घर में रखी जाती है। श्रीगणेश की चांदी की प्रतिमा घर में रखने से पति-पत्नी के बीच झगड़े नहीं होते और प्रेम बढ़ता रहता है।

🙏 नम्र निवेदन 🙏

आप सभी से नम्र निवेदन है कि कृपया ये ज्ञानवर्धक सन्देश सभी को प्रेषित करें जिससे सभी लाभान्वित हो सकें।

आप अपनी सभी समस्याओं के समाधान

के लिए मुझसे सम्पर्क कर सकते हैं।

9911342666

Posted By Lal Kitab Anmol12:40

 
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