बीमारी का बगैर दवाई भी इलाज़ है,मगर मौत का कोई इलाज़ नहीं दुनियावी हिसाब किताब है कोई दावा ए खुदाई नहीं लाल किताब है ज्योतिष निराली जो किस्मत सोई को जगा देती है फरमान दे के पक्का आखरी दो लफ्ज़ में जेहमत हटा देती है

Monday 4 February 2013

ध्यान से व्यक्तिगत और आध्यात्मिक लाभ

अंतर्गत लेख:




ध्यान  चेतन मन की एक प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपनी चेतना बाह्य जगत् के किसी चुने हुए दायरे अथवा स्थलविशेष पर केंद्रित करता है। ध्यान द्वारा हम चुने हुए विषय की स्पष्टता एवं तद्रूपता सहित मानसिक धरातल पर लाते हैं।योगसम्मत ध्यान से इस सामान्य ध्यान में बड़ा अंतर है। पहला दीर्घकालिक अभ्यास की शक्ति के उपयोग द्वारा आध्यात्मिक लक्ष्य की ओर प्रेरित होता है, जबकि दूसरे का लक्ष्य भौतिक होता है और साधारण दैनंदिनी शक्ति ही एतदर्थ काम आती है। संपूर्णानंद प्रभृति कुछ भारतीय विद्वान् योगसम्मत ध्यान को सामान्य ध्यान की ही एक चरम विकसित अवस्था मानते हैं। चित्त को एकाग्र करके किसी एक वस्तु पर केन्द्रित कर देना ध्यान कहलाता है। प्राचीन काल में ऋषि मुनि भगवान का ध्यान करते थे। ध्यान की अवस्था में ध्यान करने वाला अपने आसपास के वातावरण को तथा स्वयं को भी भूल जाता है। ध्यान करने से आत्मिक तथा मानसिक शक्तियों का विकास होता है। जिस वस्तु को चित मे बांधा जाता है उस मे इस प्रकार से लगा दें कि बाह्य प्रभाव होने पर भी वह वहाँ से अन्यत्र न हट सके, उसे ध्यान कहते है। ध्यान के द्वारा अपने भीतर के उर्जा स्त्रोत्र को उत्पन्न करके, आप अपने शरीर को उर्जा गृह में परिवर्तित कर सकते हैं| ध्यान और शरीर! जब मन आवेश मुक्त, शांत, निर्मल और शान्ति में होता है तो ध्यान लग जाता है|
]ध्यान से लाभ
ऐसा पाया गया है कि ध्यान से बहुत से मेडिकल एवं मनोवैज्ञानिक लाभ होते हैं।

बेहतर स्वास्थ्य

शरीर की रोग-प्रतिरोधी शक्ति में वृद्धि ,रक्तचाप में कमी ,तनाव में कमी ,स्मृति-क्षय में कमी (स्मरण शक्ति में वृद्धि ,वृद्ध होने की गति में कमी ,उत्पादकता में वृद्धि
मन शान्त होने पर उत्पादक शक्ति बढती है; लेखन आदि रचनात्मक कार्यों में यह विशेष रूप से लागू होता है।
आत्मज्ञान की प्राप्ति
ध्यान से हमे अपने जीवन का उद्देश्य समझने में सहायता मिलती है। इसी तरह किसी कार्य का उद्देश्य एवं महत्ता का सही ज्ञान हो पाता है।
छोटी-छोटी बातें परेशान नहीं करतीं
मन की यही प्रकृति (आदत) है कि वह छोटी-छोटी अर्थहीन बातों को बडा करके गंभीर समस्यायों के रूप में बदल देता है। ध्यान से हम अर्थहीन बातों की समझ बढ जाती है; उनकी चिन्ता करना छोड देते हैं; सदा बडी तस्वीर देखने के अभ्यस्त हो जाते हैं।

 ध्यान के १०० लाभ 


नियमित ध्यान अभ्यास के लाभों में अनेक प्रकार से सूचित किया गया है। ध्यान अभ्यास से मन का तनाव कम, शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का मजबूत बनना, बेहतर संगठित सोचना, एकाग्रता में सुधार, मन स्मृति में बढ़ावा, शोधन और तंत्रिका तंत्र के जागृति, जीवविज्ञान बुढ़ापे की प्रक्रिया का धीमा होना, प्रक्रिया धारणाएं और चेतना के राज्यों के लिए मस्तिष्क की क्षमता, और शरीर के अंगों, ग्रंथियों और सिस्टमस का ठीक रहना होता है। इन कारणों से, बहुत चिकित्सक और अन्य स्वास्थ्य चिकित्सक नियमित ध्यान के अभ्यास के बारे में राय देते हैं।

शारीरिक लाभ

1. यह ऑक्सीजन की खपत कम करती है.
2. यह सांस की दर घट जाती है.
3. यह रक्त प्रवाह बढ़ता है और हृदय की दर को धीमा कर देती है.
4. व्यायाम सहिष्णुता बढ़ जाती है.
5. शारीरिक विश्राम के एक गहरे स्तर पर ले जाता है.
6. उच्च रक्तचाप के साथ लोगों के लिए अच्छा है.
7. खून लैक्टेट के स्तर को कम करके चिंता हमलों कम कर देता है.
8. मांसपेशियों में तनाव कम हो जाती है
9. एलर्जी जैसे पुराने रोगों, गठिया आदि में मदद करता है
10. पूर्व मासिक धर्म सिंड्रोम के लक्षण कम कर देता है.
11. पोस्ट ऑपरेटिव उपचार में मदद करता है.
12. प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाता है.
13. वायरस की गतिविधि और भावनात्मक संकट को कम कर देता है
14. ऊर्जा, शक्ति और उत्साह बढ़ाता है.
15. वजन घटाने में मदद करता है
16. मुक्त कण की कमी, कम ऊतकों को नुकसान
17. उच्च त्वचा प्रतिरोध
18. कोलेस्ट्रॉल के स्तर में गिरा, हृदय रोग के खतरे को कम करती है.
19. बेहतर आसान साँस लेने में जिसके परिणामस्वरूप फेफड़ों के लिए हवा का प्रवाह.
20. उम्र बढ़ने की प्रक्रिया कम हो जाती है.
21. DHEAS के उच्च स्तर (Dehydroepiandrosterone)
22. पुरानी बीमारियों में से रोका, धीमा या नियंत्रित दर्द
23. आप कम पसीना
24. इलाज सिरदर्द और माइग्रेन
25. दिमाग से काम के ग्रेटर सुव्यवस्था
26. चिकित्सा देखभाल के लिए कम की आवश्यकता
27. कम ऊर्जा व्यर्थ
28. खेल गतिविधियों के लिए इच्छुक
29. अस्थमा से महत्वपूर्ण राहत
30. एथलेटिक घटनाओं में बेहतर प्रदर्शन
31. अपने आदर्श वजन Normalizes
32. हमारे endocrine प्रणाली harmonizes
33. हमारे तंत्रिका तंत्र को आराम
34. मस्तिष्क विद्युत गतिविधि में स्थायी लाभकारी परिवर्तन निर्माण
35. इलाज बांझपन को विनियमित के रिलीज के साथ हस्तक्षेप कर सकते हैं) में मदद करता है.

मनोवैज्ञानिक लाभ

36. आत्म विश्वास बनाता है.
37. Serotonin का स्तर बढ़ता है, मूड और व्यवहार को प्रभावित करती है.
38. Phobias और भय का समाधान
39. नियंत्रण अपने विचारों में मदद करता है
40. ध्यान और एकाग्रता के साथ मदद करता है
41. रचनात्मकता बढ़ाएँ
42. मस्तिष्क तरंग जुटना वृद्धि.
43. सीखने की क्षमता और याददाश्त में सुधार हुआ है.
44. ऊर्जा और कायाकल्प की वृद्धि हुई भावनाओं.
45. भावनात्मक स्थिरता में वृद्धि हुई.
46. बेहतर रिश्तों को
47. धीमी दर पर मन उम्र
48. आसान बुरी आदतों को दूर करने के लिए
49. अंतर्ज्ञान विकसित
50. में वृद्धि उत्पादकता
51. घर पर और काम पर संबंधों में सुधार
52. एक दी स्थिति में बड़ा चित्र देखने में सक्षम
53. छोटे मुद्दों की अनदेखी में मदद करता है
54. वृद्धि करने के लिए जटिल समस्याओं का समाधान करने की क्षमता
55. अपने चरित्र purifies
56. विकसित करने की शक्ति होगा
57. दो मस्तिष्क गोलार्द्धों के बीच ग्रेटर संचार
58. एक तनावपूर्ण घटना के लिए अधिक तेजी से और अधिक प्रभावी ढंग से जवाब.
59. लोगों अवधारणात्मक क्षमता और मोटर प्रदर्शन बढ़ जाती है
60. उच्च खुफिया विकास दर
61. वृद्धि की नौकरी से संतुष्टि
62. प्रियजनों के साथ घनिष्ठ संपर्क के लिए क्षमता में वृद्धि
63. संभावित मानसिक बीमारी में कमी
64. बेहतर, अधिक मिलनसार व्यवहार
65. कम आक्रामकता
66. धूम्रपान, शराब की लत छोड़ने में मदद करता है
67. की जरूरत है और दवाओं की गोलियाँ, और दवाइयों पर निर्भरता कम कर देता है
68. कम नींद सोने के अभाव से उबरने की आवश्यकता
69. कम समय की आवश्यकता के लिए सो, अनिद्रा इलाज में मदद करता है
70. जिम्मेदारी की भावना बढ़ जाती है
71. सड़क क्रोध को कम कर देता है
72. बेचैन सोच में कमी
73. कम चिंता करने की प्रवृत्ति
74. सुन कौशल और सहानुभूति बढ़ जाती है
75. अधिक सही निर्णय करने में मदद करता है
76. ग्रेटर सहिष्णुता
77. धैर्य देता माना और रचनात्मक तरीके में कार्य
78. एक स्थिर, अधिक संतुलित व्यक्तित्व बढ़ता
79. भावनात्मक परिपक्वता विकसित

आध्यात्मिक लाभ

80. परिप्रेक्ष्य में चीजें रखने में मदद करता है
81. खुशी, मन की शांति प्रदान करता है
82. आप जीवन में अपने उद्देश्य खोजने में मदद करता है
83. स्वयं actualization में वृद्धि.
84. में वृद्धि दया
85. बढ़ रहा है ज्ञान
86. खुद को और दूसरों की गहरी समझ
87. सद्भाव में शरीर, मन और आत्मा लाता है
88. आध्यात्मिक विश्राम के गहरे स्तर
89. एक स्वयं की वृद्धि की स्वीकृति
90. क्षमा जानने के में मदद करता है
91. जीवन की ओर परिवर्तन रवैया
92. अपने परमेश्वर के साथ एक गहरा संबंध बनाता है
93. अपने जीवन में synchronicity बढ़ जाती है
94. ग्रेटर directedness आंतरिक
95. वर्तमान क्षण में रहने में मदद करता है
96. चौड़ा, प्यार के लिए मजबूत बनाने की क्षमता बनाता है
97. शक्ति और अहंकार से परे चेतना की डिस्कवरी
98. आश्वासन या knowingness की एक आंतरिक भावना का अनुभव
99. एकता की भावना का अनुभव
100. आत्मज्ञान के लिए ले जाता है

ध्यान विधि..?

कैसे करें ध्यान? यह महत्वपूर्ण सवाल है। यह उसी तरह है कि हम पूछें कि कैसे श्वास लें, कैसे जीवन जीएं, आपसे सवाल पूछा जा सकता है कि क्या आप हंसना और रोना सीखते हैं या कि पूछते हैं कि कैसे रोएं या हंसे? सच मानो तो हमें कभी किसी ने नहीं सिखाया की हम कैसे पैदा हों। ध्यान हमारा स्वभाव है, जिसे हमने चकाचौंध के चक्कर में खो दिया है।

ध्यान के शुरुआती तत्व- 

1.श्वास की गति
2.मानसिक हलचल
3. ध्यान का लक्ष्य
4.होशपूर्वक जीना।
उक्त चारों पर ध्यान दें तो तो आप ध्यान करना सीख जाएंगे।

श्वास का महत्व :

ध्यान में श्वास की गति को आवश्यक तत्व के रूप में मान्यता दी गई है। इसी से हम भीतरी और बाहरी दुनिया से जुड़े हैं। श्वास की गति तीन तरीके से बदलती है-
1.मनोभाव
2.वातावरण
3.शारीरिक हलचल।
इसमें मन और मस्तिष्क के द्वारा श्वास की गति ज्यादा संचालित होती है। जैसे क्रोध और खुशी में इसकी गति में भारी अंतर रहता है।श्वास को नियंत्रित करने से सभी को नियंत्रित किया जा सकता है। इसीलिए श्वास क्रिया द्वारा ध्यान को केन्द्रित और सक्रिय करने में मदद मिलती है।
श्वास की गति से ही हमारी आयु घटती और बढ़ती है। ध्यान करते समय जब मन अस्थिर होकर भटक रहा हो उस समय श्वसन क्रिया पर ध्यान केन्द्रित करने से धीरे-धीरे मन और मस्तिष्क स्थिर हो जाता है और ध्यान लगने लगता है। ध्यान करते समय गहरी श्वास लेकर धीरे-धीरे से श्वास छोड़ने की क्रिया से जहां शरीरिक , मानसिक लाभ मिलता है,

मानसिक हलचल :

ध्यान करने या ध्यान में होने के लिए मन और मस्तिष्क की गति को समझना जरूरी है। गति से तात्पर्य यह कि क्यों हम खयालों में खो जाते हैं, क्यों विचारों को ही सोचते रहते हैं या कि विचार करते रहते हैं या कि धुन, कल्पना आदि में खो जाते हैं। इस सबको रोकने के लिए ही कुछ उपाय हैं- पहला आंखें बंदकर पुतलियों को स्थिर करें। दूसरा जीभ को जरा भी ना हिलाएं उसे पूर्णत: स्थिर रखें। तीसरा जब भी किसी भी प्रकार का विचार आए तो तुरंत ही सोचना बंद कर सजग हो जाएं। इसी जबरदस्ती न करें बल्कि सहज योग अपनाएं।

ध्यान और लक्ष्य :

निराकार ध्यान-

ध्यान करते समय देखने को ही लक्ष्य बनाएं। दूसरे नंबर पर सुनने को रखें। ध्यान दें, गौर करें कि बाहर जो ढेर सारी आवाजें हैं उनमें एक आवाज ऐसी है जो सतत जारी रहती है आवाज, फेन की आवाज जैसी आवाज या जैसे कोई कर रहा है ॐ का उच्चारण। अर्थात सन्नाटे की आवाज। इसी तरह शरीर के भीतर भी आवाज जारी है। ध्यान दें। सुनने और बंद आंखों के सामने छाए अंधेरे को देखने का प्रयास करें। इसे कहते हैं निराकार ध्यान।

आकार ध्यान-

आकार ध्यान में प्रकृति और हरे-भरे वृक्षों की कल्पना की जाती है। यह भी कल्पना कर सकते हैं कि किसी पहाड़ की चोटी पर बैठे हैं और मस्त हवा चल रही है। यह भी कल्पना कर सकते हैं कि आपका ईष्टदेव आपके सामने खड़ा हैं। 'कल्पना ध्यान' को इसलिए करते हैं ताकि शुरुआत में हम मन को इधर उधर भटकाने से रोक पाएं।

होशपूर्वक जीना:

क्या सच में ही आप ध्यान में जी रहे हैं? ध्यान में जीना सबसे मुश्किल कार्य है। व्यक्ति कुछ क्षण के लिए ही होश में रहता है और फिर पुन: यंत्रवत जीने लगता है। इस यंत्रवत जीवन को जीना छोड़ देना ही ध्यान है।जैसे की आप गाड़ी चला रहे हैं, लेकिन क्या आपको इसका पूरा पूरा ध्यान है कि 'आप' गाड़ी चला रहे हैं। आपका हाथ कहां हैं, पैर कहां है और आप देख कहां रहे हैं। फिर जो देख रहे हैं पूर्णत: होशपूर्वक है कि आप देख रहे हैं वह भी इस धरती पर। कभी आपने गूगल अर्थ का इस्तेमाल किया होगा। उसे आप झूम इन और झूम ऑउट करके देखें। बस उसी तरह अपनी स्थिति जानें। कोई है जो बहुत ऊपर से आपको देख रहा है। शायद आप ही हों।

ध्यान सरलतम विधियां  

ध्यान करने की अनेकों विधियों में एक विधि यह है कि ध्यान किसी भी विधि से किया नहीं जाता, हो जाता है। ध्यान की हजारों विधियां बताई गई है। हिन्दू, जैन, बौद्ध तथा साधु संगतों में अनेक विधि और क्रियाओं का प्रचलन है। विधि और क्रियाएं आपकी शारीरिक और मानसिक तंद्रा को तोड़ने के लिए है जिससे की आप ध्यानपूर्ण हो जाएं।
ध्यान की हजारों विधियां हैं। शंकर ने माँ पार्वती को 112 विधियां बताई थी जो 'विज्ञान भैरव तंत्र' में संग्रहित हैं। इसके अलावा वेद, पुराण और उपनिषदों में ढेरों विधियां है। संत, महात्मा विधियां बताते रहते हैं। किसी भी सुखासन में आंखें बंदकर शांत व स्थिर होकर बैठ जाएं। फिर बारी-बारी से अपने शरीर के पैर के अंगूठे से लेकर सिर तक अवलोकन करें। इस दौरान महसूस करते जाएं कि आप जिस-जिस अंग का अलोकन कर रहे हैं वह अंग स्वस्थ व सुंदर होता जा रहा है। यह है सेहत का रहस्य। शरीर और मन को तैयार करें ध्यान के लिए।
1 ध्यान दिन में एक या दो बार करें। कमर सीधी रखकर एक कुर्सी पर बैठें। अगर जमीन पर बैठना सुविधाजनक है तो चौकडी मार कर बैठें। सिर ऊंचा रखें, और ध्यान सिर के उपर या मस्तिश्क में आगे की ओर रखें।
2 सिद्धासन में आंखे बंद करके बैठ जाएं। फिर अपने शरीर और मन पर से तनाव हटा दें अर्थात उसे ढीला छोड़ दें। बिल्कुल शांत भाव को महसूस करें। महसूस करें कि आपका संपूर्ण शरीर और मन पूरी तरह शांत हो रहा है। नाखून से सिर तक सभी अंग शिथिल हो गए हैं। इस अवस्था में 10 मिनट तक रहें। यह काफी है साक्षी भाव को जानने के लिए।
3 आराम महसूस करने के लिये एक या दो बार शवास अन्दर लें और बाहर निकालें। कुछ समय के लिये स्थिर रहें जब तक आपको केन्द्रित लगे। अपने प्राकृतिक साँस लेने की ताल से अवगत रहें।
4 जब साँस अन्दर लेना स्वाभाविक लगे, तो मन में एक अपने चुने हुए शब्द जैसे कि "भगवान," "शांति," "आनन्द," या कोई और सुखद शब्द को बोलें। जब साँस छोड़ें तो फिर मन में उसी शब्द को बोलें। यह अनुभव करें कि आपका चुना हुआ शब्द आपके मन में बड रहा है और आपका जागरूकता का क्षेत्र भी बड रहा है। इसे बिना प्रयास के और बिना परिणाम की चिंता से करें।
5 जब मन शान्त हो जाए, तब आप शब्द को सुनना बंद कर दें। मन स्थिर रखें और ध्यान अभ्यास की शान्ति कई मिनट के लिए अनुभव करें, और जब ठीक समझें तो ध्यान समाप्त कर दें।
उपरोक्त ध्यान विधियों के दौरान वातावरण को सुगंध और संगीत से तरोताजा और आध्यात्मिक बनाएं।
श्री कृष्ण अर्जुन संवाद :- श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा: शुद्ध एवं एकांत स्थान पर कुशा आदि का आसन बिछाकर सुखासन में बैठें. अपने मन को एकाग्र करें. मन व इन्द्रियों की क्रियाओं को अपने वश में करें, जिससे अंतःकरण शुद्ध हो. इसके लिए, सर व गर्दन को सीधा रखें और हिलाएं-दुलायें नहीं. आँखें बंद रखें व साथ ही जीभ को भी न हिलाएं. अब अपनी आँख की पुतलियों को भी इधर-उधर नहीं हिलने दें और उन्हें एकदम सामने देखता हुआ रखें. एकमात्र ईश्वर का स्मरण करते रहें. ऐसा करने से कुछ ही देर में मन शांत हो जाता है और ध्यान आज्ञा चक्र पर स्थित हो जाता है और परम ज्योति स्वरुप परमात्मा के दर्शन होते हैं. विशेष :- ध्यान दें जब तक मन में विचार चलते हैं तभी तक आँख की पुतलियाँ इधर-उधर चलती रहती हैं. और जब तक आँख की पुतलियाँ इधर-उधर चलती हैं तब तक हमारे मन में विचार उत्पन्न होते रहते हैं. जैसे ही हम मन में चल रहे समस्त विचारों को रोक लेते हैं तो आँख की पुतलियाँ रुक जाती हैं. इसी प्रकार यदि आँख की पुतलियों को रोक लें तो मन के विचार पूरी तरह रुक जाते हैं. और मन व आँख की पुतलियों के रुकते ही आत्मा का प्रभाव ज्योति के रूप में दीख पड़ता है.




LAL Kitab Anmol

3 comments:

  1. behatarin jankari di hai shriman apne ,apke sabhi posts behtarin hai, is gyan se humen avgat karane ke liye shukriya , aap aisi hi jankari humen dete rahiye ,khuda hafiz

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  2. excellent information

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