धर्म में आस्था रखने वाला व्यक्ति धार्मिक उपायों को भी अपनाता है। जीवन से जुड़ी अनेक जरूरतों पूरा करने, समस्याओं से बचने या संकटमुक्ति के लिए हर उपाय प्रयास करता है। इसी क्रम में देव उपासना और व्रत-उपवास भी एक अहम परंपरा मानी गई है शास्त्रों में व्रत-उपवास से जीवन से जुड़ी सभी समस्याओं से छुटकारे का महत्व बताया गया है। कामनापूर्ति के लिए ऐसे व्रत भी शामिल हैं, जिनका पालन कई माहों या वर्षों तक किया जाता है।
ऐसे ही व्रतों में व्यक्ति पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ व्रत या उपवास का पालन करता है, किंतु किसी हालात के चलते या भूलवश व्रत या उपवास खंडित हो जाता है, जिससे व्रत-सकंल्प टूटने से धार्मिक भावना को ठेस ही नहीं पहुंचती, बल्कि वह धर्म और ईश्वर के प्रति हुए दोष से बेचैन रहता है। मन में कामनापूर्ति को लेकर भय, और संदेह बना रहता है। हुए ऐसे दोष और उसकी बेचैनी से शास्त्रों में प्रायश्चित के लिए भी उपाय बताए हैं।जब व्रत या उपवास चूक या किसी स्थिति में खण्डित हो जाए तब यह उपाय अपनाया जा सकता है, यह संपूर्ण व्रत के नाम से भी जाना जाता है। यह उपाय कर व्रत पालन आगे जारी रख सकते हैं।
व्रत भंग के दोष को दूर करने के उपाय -
इस व्रत में जिसका व्रत हो उस देवी-देवता की उपासना की परंपरा है।
दोष शांति के लिए उसी देवी या देवता की चांदी की मूर्ति बनाई जाती है।
जिस दिन से मूर्ति बनना शुरु हो, उस दिन से पूरे एक माह तक किसी ब्राह्मण द्वारा उस मूर्ति का दूध, दही, घी, शहद, शक्कर आदि से बने पंचामृत और शुद्ध जल से स्नान कराया जाए। उस देवता विशेष के मंत्र बोलकर चंदन मिले जल से अर्घ्य दें।
गंध, अक्षत, फूलों आदि सोलह प्रकार की पूजा सामग्रियों से पूजा की जाए।
हवन कराया जाए और देवता से व्रत भंग होने की क्षमा मांग कर इस विशेष प्रार्थना के साथ आहूति दी जाए कि जो व्रत भंग हुआ था, उसका दोष दूर हो और व्रत पूर्ण हो।
यज्ञ-हवन करने वाले ब्राह्मण भी यह कहकर हवन की पूर्णाहुति करते हैं कि यजमान का खण्डित व्रत पूर्ण हुआ।
ब्राह्मणों द्वारा ऐसा बोलने का पौराणिक महत्व है। पुराण अनुसार ब्राह्मणों द्वारा किए जाने वाले धार्मिक कर्म और बोले कल्याणकारी शब्दों को भगवान भी स्वीकारते हैं।
इस प्रकार व्रत भंग के दोष को दूर करने के लिए इस उपाय को करने से हर व्रत के पालन में हुए दोष दूर हो जाता।
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