बीमारी का बगैर दवाई भी इलाज़ है,मगर मौत का कोई इलाज़ नहीं दुनियावी हिसाब किताब है कोई दावा ए खुदाई नहीं लाल किताब है ज्योतिष निराली जो किस्मत सोई को जगा देती है फरमान दे के पक्का आखरी दो लफ्ज़ में जेहमत हटा देती है

Wednesday 24 August 2022

कुंडली में हंस महापुरुष योग बनाते हैं तो अति शक्तिशाली



L.K.A.24/8/2022

जब बृहस्पति हंस महापुरुष योग बनाते हैं तो अति शक्तिशाली परिणाम देते हैं इस योग वाले व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा बहुत ऊंची हो जाती है, व्यक्ति शिक्षा सम्बन्धी कार्य या प्रवचन करता है। लोग उससे सलाह लेने आते हैं। जन्म पत्रिका के शक्तिशाली योगों में से एक है हंस महापुरुष योग। यह योग बृहस्पति ग्रह के कारण बनता है। जन्म पत्रिका में कुल 12 भाव होते हैं। उनमें से 4 भाव केन्द्र स्थान कहलाते हैं और 3 भाव त्रिकोण कहलाते हैं। लग्न स्थान, केन्द्र और त्रिकोण दोनों का दायित्व निभाता है।

कैसे होता है हंस महापुरुष योग का निर्माण

बृहस्पति की 2 राशियां हैं, एक धनु है और एक मीन। धनु को 9 के अंक से व्यक्त करते हैं और मीन को 12 से। कर्क राशि जिसे 4 के अंक से व्यक्त किया जाता है बृहस्पति की उच्च राशि कहलाती है। इन तीनों ही राशियों में जब बृहस्पति होते हैं तो शक्तिशाली परिणाम देते हैं, परन्तु इन तीनों में से भी जब बृहस्पति कर्क राशि यानि 4 के अंक पर होते हैं तो सर्वाधिक शुभ फल देते हैं। जब बृहस्पति कुंडली के केंद्र भावों में अपनी उच्च राशि, मूल त्रिकोण राशि अथवा स्वराशि में से किसी भी राशि में स्थित होता है तो इस योग का निर्माण होता है ज्योतिषाचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने बताया कि इसका तात्पर्य यह हुआ कि यदि किसी कुंडली में देव गुरु बृहस्पति प्रथम, चतुर्थ, सप्तम या दशम भाव में अर्थात् केंद्र भावों में अपनी उच्च अवस्था वाली राशि अर्थात् कर्क राशि में स्थित हों अथवा अपनी मूल त्रिकोण राशि धनु में विद्यमान हों या फिर अपनी स्वराशि मीन राशि में स्थित हों तो बृहस्पति द्वारा हंस महापुरुष योग का निर्माण होगा। 

हंस महापुरुष योग देता है शक्तिशाली परिणाम 

जब बृहस्पति हंस महापुरुष योग बनाते हैं तो अति शक्तिशाली परिणाम देते हैं। इस योग वाले व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा बहुत ऊंची हो जाती है। व्यक्ति शिक्षा सम्बन्धी कार्य या प्रवचन करता है। लोग उससे सलाह लेने आते हैं। शास्त्रों के ज्ञाता होते हैं। गुणी और आत्म विश्वास से भरपूर होते हैं। धर्माचरण करते हुए सब के पूज्य हो जाते हैं और इस योग का श्रेष्ठ फल 50 से 60 वर्ष के बीच देखने में आता है।

नीच राशि में होने से नहीं मिलता शुभ फल

इसके अतिरिक्त, यदि नवांश कुंडली में देव गुरु बृहस्पति अपनी नीच राशि में अथवा शत्रु राशि में अथवा पीड़ित अवस्था में होते हैं तो भी जन्म कुंडली में इस राज योग के बनने के बावजूद इसके संपूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाते बल्कि उनमें अल्पता या शून्यता आने लग जाती है। यही वजह है कि अक्सर लोग यह कहते सुने जाते हैं कि मेरी कुंडली में तो इतने राजयोग होने के बावजूद मुझे उनका फल नहीं मिल रहा और कई बार तो स्थिति ऐसी भी होती है कि उनके जीवन में इस ग्रह की महादशा आती ही नहीं है या फिर बहुत विलंब से आती है। इस वजह से भी उन्हें इसके संपूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाते। इसीलिए इन सभी बिंदुओं पर विचार करने के बाद ही इस राज योग के फलों के बारे में कथन करना चाहिए।


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