पितृ दोष से हानि-
संतान न होना, संतान हो तो विकलांग, मंदबुद्धि या चरित्रहीन अथवा होकर मर जाना। (2) नौकरी, व्यवसाय में हानि, बरकत न हो। (3) परिवार में ऐक्य न हो, अशांति हो। (4) घर के सदस्यों में एक या अधिक लोगों का अस्वस्थ होना, इलाज करवाने पर ठीक न होना।
{लक्षण}
पितृ दोष और पितृ ऋण से पीड़ित कुंडली शापित कुंडली कही जाती है। ऐसे व्यक्ति अपने मातृपक्ष अर्थात माता के अतिरिक्त मामा-मामी मौसा-मौसी, नाना-नानी तथा पितृपक्ष अर्थात दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई आदि को कष्ट व दुख देता है और उनकी अवहेलना व तिरस्कार करता है। जन्म पत्री में यदि सूर्य पर शनि राहु-केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक की कुंडली में पितृ ऋण की स्थिति मानी जाती है। इसके अलावा भी अन्य कई स्थितियां होती है।
इसके
अलावा व्यक्ति अपने कर्मों से भी पितृदोष निर्मित कर लेता है। विद्वानों ने पितर
दोष का संबंध बृहस्पति (गुरु) से बताया है। अगर गुरु ग्रह पर दो बुरे ग्रहों का
असर हो तथा गुरु 4-8-12वें भाव में हो या नीच राशि में
हो तथा अंशों द्वारा निर्धन हो तो यह दोष पूर्ण रूप से घटता है और यह पितर दोष
पिछले पूर्वज (बाप दादा परदादा) से चला आता है, जो
सात पीढ़ियों तक चलता रहता है।
पितृ
ऋण कई प्रकार का होता है जैसे हमारे कर्मों का, आत्मा
का, पिता का, भाई का, बहन का, मां का, पत्नी का, बेटी और बेटे का। आत्मा का ऋण को स्वयं का ऋण भी
कहते हैं। जब कोई जातक अपने जातक पूर्व जन्म में धर्म विरोधी कार्य करता है तो वह इस
जन्म में भी अपनी इस आदत को दोहराता है। ऐसे में उस पर यह दोष स्वत: ही निर्मित हो
जाता है। धर्म विरोधी का अर्थ है कि आप भारत के प्रचीन धर्म हिन्दू धर्म के प्रति
जिम्मेदार नहीं हो। पूर्व जन्म के बुरे कर्म,
इस
जन्म में पीछा नहीं छोड़ते। अधिकतर भारतीयों पर यह दोष विद्यमान है। स्वऋण के कारण
निर्दोष होकर भी उसे सजा मिलती है। दिल का रोग और सेहत कमजोर हो जाती है। जीवन में
हमेशा संघर्ष बना रहकर मानसिक तनाव से व्यक्ति त्रस्त रहता है।
पितृदोष
के प्रकार–कुंडली में दोष
सबसे
खतरनाक: जब पितृदोष प्रथम स्तर पर हो. पितृदोष प्रथम स्तर पर होता है यदि सूर्य इन
ग्रहों में से किसी के साथ किसी भी भाव या घर में होता है. यह सबसे खतरनाक दोष है.
मध्यम प्रभाव: पितृदोष जब द्वितीय स्तर पर हो
पितृ दोष कितने प्रकार के होते हैं?
इसी
प्रकार मंगल यदि राहु या केतु के साथ हो या इनसे दृष्ट हो तो मंगलकृत पितृ दोष का
निर्माण होता है। दो प्रकार के होते हैं पितृदोष : सूर्यकृत पितृदोष होने से जातक
के अपने परिवार या कुटुंब में अपने से बड़े व्यक्तियों से विचार नहीं मिलते।
पितृ
दोष कैसे बनता है?
जब
किसी जातक की कुंडली के लग्न भाव और पांचवें भाव में सूर्य, मंगल और शनि विराजमान हो तो पितृदोष बनता है. इसके
अलाव अष्टम भाव में गुरु और राहु एक साथ आकर बैठ जाते हैं तो पितृ दोष का निर्माण
होता है. जब कुंडली में राहु केंद्र या त्रिकोण में मौजूद हो तो पितृदोष बनता है.
आपको
कैसे पता चलेगा कि आपके पास पितृ दोष है?
कुंडली
में सूर्य की स्थिति को 'पिता' का प्रतीक माना जाता है। नवम भाव में सूर्य की
स्थिति या उसमें सूर्य की स्थिति के साथ नवम भाव पर किसी अन्य ग्रह का नकारात्मक
प्रभाव पितृ दोष का संकेत है।
भयानक
प्रभाव
आप
कर्ज में दब जाते हो और ऐसे में आपके घर की शांति भंग हो जाती है। मातृ ऋण के कारण
व्यक्ति को किसी से किसी भी तरह की मदद नहीं मिलती है। जमा धन बर्बाद हो जाता है।
फिजूल खर्जी को वह रोक नहीं पाता है। कर्ज उसका कभी उतरना नहीं।
पितृ
दोष कैसे खत्म किया जाए ?
पितृ
पक्ष शांति के लिए रोजाना दोपहर के समय पीपल के पेड़ की पूजा करें. पितरों को
प्रसन्न करने के लिए पीपल में गंगाजल में काले तिल, दूध, अक्षत और फूल अर्पित करें. पितृ दोष शांति के लिए ये
उपाय बहुत कारगर है. पितृ पक्ष में रोजाना घर में शाम के समय दक्षिण दिशा में तेल
का दीपक लगाएं.i
पितृदोष
से मुक्ति दिलाएंगे ये उपाय
अगर
आपकी कुंडली में पितृदोष है, तो पितरों की फोटो दक्षिण दिशा
की ओर लगाएं। इसके साथ ही रोजाना माला चढ़ाकर उनका स्मरण करना चाहिए। पीपल के पेड़
पर दोपहर के समय जल चढ़ाएं। इसके साथ ही फूल,
अक्षत, दूध, गंगाजल और काले तिल भी चढ़ाएं
और पितरों का स्मरण करें।
पितरों
का आशीर्वाद कैसे मिलता है?
मान्यता
है कि पितृपक्ष के दौरान जो व्यक्ति अपने पितरों के निमित्त गाय के शुद्ध घी का दान
करता है, उसे पितरों का पूरा आशीर्वाद
मिलता है.
1. प्रतिदिन
पढ़ें हनुमान चालीसा। श्राद्ध पक्ष में अच्छे से करें श्राद्ध कर्म।
2. गरीब, अपंग व विधवा महिला को दें दान। ...
3. तेरस, चौदस, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन
गुड़-घी की धूप दें। ...
4. घर
का वास्तु ठीक करवाएं। ...
5. गया
में जाकर तर्पण पिंडदान करें।
शाम के समय पीपल के वृक्ष पर दीप जलाएं और नाग स्तोत्र, महामृत्युंजय मंत्र या रुद्र सूक्त या पितृ स्तोत्र व नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें. इससे भी पितृ दोष की शांति होती है. प्रतिदिन इष्ट देवता व कुल देवता की पूजा करें. ऐसा करने से भी पितृदोष का शमन होता है.
पितृ
दोष में क्या नहीं करना चाहिए?
हिंदू
धर्म शास्त्र के मुताबिक, पितृ पक्ष के दौरान जमीन के अंदर
होने वाली सब्जियों जैसे मूली, अरबी, आलू आदि का सेवन नहीं करना चाहिए और नहीं इनका
पितरों का भोग लगाना चाहिए. श्राद्ध के दौरान ब्राह्मणों को भी इसे ना खिलायें.
सनातन धर्म में लहसुन और प्याज को तामसिक भोजन माना जाता है
पितृपक्ष में कौन कौन से काम वर्जित रहते हैं?
• पितृपक्ष
के समय में लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा आदि का सेवन नहीं करना
चाहिए. ...
• इस
समय में अपने घर के बुजुर्गों और पितरों का अपमान न करें. ...
• पितृपक्ष
में स्नान के समय तेल, उबटन आदि का प्रयोग करना वर्जित
है.
• इस
समय में आप कोई भी धार्मिक या मांगलिक कार्य जैसे मुंडन, सगाई, गृह प्रवेश, नामकरण आदि न करें.
पितरों
के स्वामी कौन है?
पितृलोक
के स्वामी यमराज हैं। जलदान से यमराज संतुष्ट होते हैं, तो पितरों को भी सुख मिलता है।
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