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Thursday, 11 May 2023

आखिर मंत्र करने से याददाश्त कैसे बढती है ? क्या मस्तिष्क का सम्बंध ब्रह्मांड से होता है ? क्या है इसका वैज्ञानिक आधार ?

अंतर्गत लेख:


 


मंत्रों का विज्ञान बहुत गहरा है । यह उसी प्रकार गहरा है जैसे पृथ्वी पर समुद्र और आसमान में अंतरिक्ष की गहराई का कोई छोर नहीं है । मंत्र अनुभव और अभ्यास से फल देता है । जैसे आप समुद्र में गोता लगाना चाहते हैं लेकिन डूबने का डर होता है । जैसे-जैसे आपको तैरने का अभ्यास हो जाता है तो आपके लिए गोता लगाना आसान हो जाता है । वैसे ही जब आपको मंत्रो की विधि का अभ्यास हो जाता है तो जो चाहे वो कर सकते हो । 

अब आपको एक वैज्ञानिक उदाहरण से समझाता हूँ । जब आप एक गहरा  कूआ खोदते हो तो आपको सिर्फ गड्डा ही दिखाई देता है । लेकिन धीरे-धीरे और नीचे जाते हैं तो चारों तरफ से पानी अपने प्रैशर से उस कुए में आना शुरू हो जाता है । तथा पानी का श्रोत उस कुए के साथ लिंक बना लेता है । और बहुत दूर-दूर के जल के श्रोत उस कुए से मिल जाते हैं । तथा धीरे-धीरे कुआं पानी से भर जाता है और फिर जितना मर्जी पानी कुएं से खींचा जाए लेकिन कुआं कभी खाली नहीं होता है । 

ऐसे ही जब आप अपने मस्तिष्क को मंत्रों के स्रोत का कूआ बना लेते हो तो अंतरिक्ष के चारों तरफ से ऊर्जा के श्रोत आपके मस्तिष्क से जुड़ जाते हैं । आपके मस्तिष्क की हार्ड डिस्क मेमोरी बड़ी हो जाती है । और आपके पास ऊर्जा का भंडार हो जाता है । चारों तरफ से आने वाली ऊर्जा आपकी याददास्त को बढ़ा देती है । और यह याददास्त पुनर्जन्म में भी साथ रहती है । इसलिए ऋषि मुनि अपने पुनर्जन्म के रहस्य को जानते थे । 

इसलिए मंत्रों का अभ्यास करना चाहिए तथा अपने दिमाग की हार्डडिस्क को बड़ा करना चाहिए तथा दिमाग में ऊर्जा का भंडार भरना चाहिए । जितना मंत्रों का उच्चारण किया जाता है उतना ही मनुष्य के मस्तिष्क की नस-नाड़ियों व ब्रह्मरंध्र का संबंध अनेकों लोकों से होने लगता है । तथा मनुष्य की याददाश्त बढ़ जाती है । मंत्रों को करते समय ध्यान को हमेशा अंतरिक्ष की ओर ऊर्ध्व गति में रखना चाहिए । बहुत से लोगों का ध्यान उन मंत्रों का ध्यान किताबों के पन्ने पर होता है । ऐसा करने से मस्तिष्क ऊर्ध्व गति को प्राप्त नहीं होता है । 

जिस प्रकार जल के स्रोतों का सम्बंध कुंए के साथ होता है ठीक इसी प्रकार मनुष्य के मस्तिष्क का संबंध अंतरिक्ष के साथ होता है । मनुष्य की याददाश्त अंतरिक्ष में संचित होती है । जिस प्रकार कुए से जितना अधिक पानी सींचा जाता है कुए का पानी उतना ही शुद्ध व पवित्र होता चला जाता है । ठीक इसी प्रकार साधक व ज्ञानी जितना अपने ज्ञान को बाहर फैलाता है उतना ही ज्ञान शुध्द व पवित्र होकर अंतरिक्ष से आपके मस्तिष्क में संचित होता रहता है । और एक दिन ऐसा समय आता है कि आप 24 घंटे लगातार बोलते रहने पर  भी आपका ज्ञान समाप्त नहीं होता है । इसलिए अपने मस्तिष्क के ऊर्जा के स्रोतों को मंत्र अभ्यास से गहरा करते रहना चाहिए । 

LAL Kitab Anmol

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