बीमारी का बगैर दवाई भी इलाज़ है,मगर मौत का कोई इलाज़ नहीं दुनियावी हिसाब किताब है कोई दावा ए खुदाई नहीं लाल किताब है ज्योतिष निराली जो किस्मत सोई को जगा देती है फरमान दे के पक्का आखरी दो लफ्ज़ में जेहमत हटा देती है

Wednesday 30 August 2023

कुंडली भी बताती है आपके घर में प्रेतादि समस्याओं को



आओ समझें तंत्र ज्योतिष रहस्य को...

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प्रेतात्माओं की वैज्ञानिक स्वीकार्यता:-

   वेद और विज्ञान दोनों ही ये मानते हैं कि समस्त ब्रह्मांड दोही मूल यौगिकों से बना है,  एक है पदार्थ और दूसरा है तरंग यह दोनों मिलकर पूरे ब्रह्मांड के समस्त चराचर का निर्माण करते हैं।  तरंगों के आवेश से पदार्थ एवं समस्त भौतिक तत्वों को प्रभावित किया जाता है और यह भौतिक विज्ञान का सिद्धांत है कि प्रत्येक की तरंग एवं पदार्थ दूसरे पदार्थों पर सकारात्मक या फिर नकारात्मक प्रभाव अवश्य डालता है इसी वैज्ञानिक आधार पर ब्रह्मांड के तमाम तरंग समूह हमारे जीवन में सकारात्मक अथवा नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।पकउ।

      प्रेत आत्माओं का शास्त्रीय वर्णन:- 

हमारा सनातन वैदिक सिद्धांत कहता है के आत्मा अमर है और विभिन्न योनियों में अपने कर्मानुसार भ्रमण करती रहती है यानि कि जीवन जगत के अलावा एक आत्माओं का संसार भी होता है।

    और वह आत्माएं अपने स्वभाव अनुसार विशेष परिस्थितियों में मानव जीवन पर अपना प्रभाव डालती रहती हैं उन्हीं प्रभावों से पीड़ित होकर हम प्रेत बाधा, पित्र बाधा, भूत बाधा आदि समस्याओं से यदा-कदा ग्रसित हो जाते हैं।पकउ।

      हमारा आज का विषय है, ज्योतिष कुंडली के अध्यन से प्रेतबाधा की पहचान और निदान, कुंडली के निम्नलिखित योग प्रेतबाधा को इंगित करते हैं।

1. नीच राशि में स्थित राहु के साथ लग्नेश हो तथा सूर्य, शनि व अष्टमेश से दृष्ट हो।

2. पंचम भाव में सूर्य तथा शनि हो, निर्बल चन्द्रमा सप्तम भाव में हो तथा बृहस्पति बारहवें भाव में हो।

3. जन्म समय चन्द्रग्रहण हो और लग्न, पंचम तथा नवम भाव में पाप ग्रह हों तो जन्मकाल से ही पिशाच बाधा का भय होता है।

4. षष्ठ भाव में पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट राहु तथा केतु की स्थिति भी पैशाचिक बाधा उत्पन्न करती है।

5. लग्न में शनि, राहु की युति हो अथवा दोनों में से कोई भी एक ग्रह स्थिति हो अथवा लग्नस्थ राहु पर शनि की दृष्टि हो।

6. लग्नस्थ केतु पर कई पाप ग्रहों की दृष्टि हो।

7. निर्बल चन्द्रमा शनि के साथ अष्टम में हो तो पिशाच, भूत-प्रेत मशान आदि का भय।

8. निर्बल चन्द्रमा षष्ठ, अथवा बाहरहवें भाव में क्रूर ग्रह के साथ हो तो भी पिशाच भय रहता है।

9. चर राशि (मेष, कर्क, तुला, मकर) के लग्न पर यदि षष्ठेश की दृष्टि हो।

10. एकादश भाव में मंगल हो तथा नवम भाव में स्थिर राशि (वृष, सिंह,वृश्चिक, कुंभ) और सप्तम भाव में द्विस्वभाव राशि(मिथुन, कन्या, धनु मीन) हो।

11. लग्न भाव मंगल से दृष्ट हो तथा षष्ठेश, दशम, सप्तम या लग्न भाव में स्थिति हों।

12. मंगल और षस्टेश यदि लग्नेश के साथ केंद्र या लग्न भाव में स्थिति हो ।

13. पापग्रहों से युक्त या दृष्ट केतु लग्नगत हो और लग्नेश निर्बल हो।

14. शनि राहु केतु या मंगल में से कोई भी एक ग्रह नीच का होकर सप्तम स्थान में हो।

15. जब लग्न में चन्द्रमा और राहु योग हो और त्रिकोण भावों में क्रूर ग्रह हों।

16. अष्टम भाव में शनि के साथ निर्बल चन्द्रमा (विषयोग) हो।

17. राहु शनि दोनों ही लग्न में स्थित हो।

18. लग्नेश एवं राहु अपनी नीच राशिस्थ होकर अष्टम भाव या अष्टमेश से संबंध बनाऐ।

19. राहु नीच राशि का होकर अष्टम भाव में हो तथा लग्नेश  पाप ग्रह के साथ द्वादश में हो।

20- द्वितीय में राहु, द्वादश में शनि, षष्ठ में चंद्र, तथा लग्नेश भी अशुभ भावों में हो।

21- चन्द्रमा तथा राहु दोनों ही नीचस्थ होकर अष्टम भाव में हो।

22. चतुर्थ भाव में उच्च का राहु हो वक्री मंगल द्वादश भाव में हो तथा अमावस्या तिथि का जन्म हो।

23. नीचस्थ सूर्य के साथ केतु हो तथा उस पर शनि की दृष्टि हो तथा लग्नेश भी नची राशि का हो।

24-दशमेश यदि अष्टम या एकादश भाव में हो एवं संबंधित भाव के स्वामी से द्रष्ट हो। तो भी प्रेत बाधा योग बनता है।।

25- दूसरे, तीसरे या पांचवें भाव में राहु अथवा केतु हों, या फिर सूर्य, चंद्र, लग्नेश और नवमेश में से कोई दो ग्रह  राहु या शनी से पीड़ित हो तो पित्र या कुलदेवों के प्रकोप का भय रहता है।।

जिन जातकों की कुण्डली में उपरोक्त योगों में से एकाधिक योग हों, उन्हें विशेष सावधानीपूर्वक रहना चाहिए तथा संयमित जीवन शैली का आश्रय ग्रहण करना चाहिए। जिन बाह्य परिस्थितियों या स्थानों के कारण प्रेत बाधा का प्रकोप हो सकता है उनसे विशेष रूप से दूर रहें, बचें।। पकउ।।

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     वैसे ऊपरी बाधाऐ दो प्रकार की होती हैं 1- सात्विक, 2- तामसिक।

        1- सात्विक बाधाओं से मुक्त रखने में निम्नलिखित उपाय भी सहायक सिद्ध हो सकते हैं:-

1️⃣अपने शरीर, मन एवं निवास का पवित्र बनाए रखें।

 2️⃣नित्य हनुमान चालीसा, देवी कवच, रामरक्षा स्तोत्र या गायत्री पाठ-जप करें ।

3️⃣ नित्य कुलदेवी एवं कुलदेवता का पूजन, ध्यान व प्रार्थना करें।

4️⃣ अपने या कुलगुरू का सानिध्य करें, और उनका आशीर्वाद लेते रहें।

5️⃣ पित्रशांती एवं ग्रहशांती करवाएं।।

6️⃣सही प्राणप्रतिष्ठित पुखराज रत्न धारण करें।।

 

          2- तामसिक बाधाओं से मुक्त रखने में निम्नलिखित उपाय भी सहायक रहते हैं:-

1️⃣ भैरवी, काली या महाकाल का नित्य पूजन अर्चन करते रहें।

2️⃣ गुग्गुल की धूनी देते रहें, या नित्य होम करें।

3️⃣ देवीकवच या सुंदरकांड का पाठ करें।

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