बीमारी का बगैर दवाई भी इलाज़ है,मगर मौत का कोई इलाज़ नहीं दुनियावी हिसाब किताब है कोई दावा ए खुदाई नहीं लाल किताब है ज्योतिष निराली जो किस्मत सोई को जगा देती है फरमान दे के पक्का आखरी दो लफ्ज़ में जेहमत हटा देती है

Saturday 29 April 2017

गीता में ढेरों ज्योतिषीय उपचार भी छिपे हुए हैं





गीता को ज्योतिषीय आधार पर विश्लेषित किया जाए तो इसमें ग्रहों का प्रभाव और उनसे होने वाले नुकसान से बचने और उनका लाभ उठाने के संकेत स्पष्ट दिखाई देते हैं।

महाभारत के युद्ध से ठीक पहले श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए ज्ञान यानी गीता में ढेरों ज्योतिषीय उपचार भी छिपे हुए हैं। गीता के अध्यायों का नियमित अध्ययन कर हम कई समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं।

गीता की टीका तो बहुत से योगियों और महापुरूषों ने की है लेकिन ज्योतिषीय अंदाज में अब तक कहीं पुख्ता टीका नहीं है। फिर भी कहीं-कहीं ज्योतिषियों ने अपने स्तर पर प्रयोग किए हैं और ये बहुत अधिक सफल भी रहे हैं। गीता की नैसर्गिक विशेषता यह है कि पढ़ने वाले व्यक्ति के अनुसार ही इसकी टीका होती है। यानी हर एक के लिए अलग। इन संकेतों के साथ इस स्वतंत्रता को बनाए रखने का प्रयास किया है।

गीता के अठारह अध्यायों में भगवान श्रीकृष्ण ने जो संकेत दिए हैं, उन्हें ज्योतिष के आधार पर विश्लेषित किया गया है। इसमें ग्रहों का प्रभाव और उनसे होने वाले नुकसान से बचने और उनका लाभ उठाने के संबंध में यह सूत्र बहुत काम के लगते हैं।

शनि संबंधी पीड़ा होने पर प्रथम अध्याय का पठन करना चाहिए। द्वितीय अध्याय, जब जातक की कुंडली में गुरू की दृष्टि शनि पर हो, तृतीय अध्याय 10वां भाव शनि, मंगल और गुरू के प्रभाव में होने पर, चतुर्थ अध्याय कुंडली का 9वां भाव तथा कारक ग्रह प्रभावित होने पर, पंचम अध्याय भाव 9 तथा 10 के अंतरपरिवर्तन में लाभ देते हैं। इसी प्रकार छठा अध्याय तात्कालिक रूप से आठवां भाव एवं गुरू व शनि का प्रभाव होने और शुक्र का इस भाव से संबंधित होने पर लाभकारी है।

सप्तम अध्याय का अध्ययन 8वें भाव से पीडित और मोक्ष चाहने वालों के लिए उपयोगी है। आठवां अध्याय कुंडली में कारक ग्रह और 12वें भाव का संबंध होने पर लाभ देता है। नौंवे अध्याय का पाठ लग्नेश, दशमेश और मूल स्वभाव राशि का संबंध होने पर करना चाहिए। गीता का दसवां अध्याय कर्म की प्रधानता को इस भांति बताता है कि हर जातक को इसका अध्ययन करना चाहिए।

कुंडली में लग्नेश 8 से 12 भाव तक सभी ग्रह होने पर ग्यारहवें अध्याय का पाठ करना चाहिए। बारहवां अध्याय भाव 5 9 तथा चंद्रमा प्रभावित होने पर उपयोगी है। तेरहवां अध्याय भाव 12 तथा चंद्रमा के प्रभाव से संबंधित उपचार में काम आएगा। आठवें भाव में किसी भी उच्च ग्रह की उपस्थिति में चौदहवां अध्याय लाभ दिलाएगा। प ंद्रहवां अध्याय लग्न एवं 5वें भाव के संबंध में और सोलहवां मंगल और सूर्य की खराब स्थिति में उपयोगी है।


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