।
इसे चिन
बंध भी कहते
हैं। ऐसा माना
जाता है कि
इस बंध का
अविष्कार जालंधरिपाद नाथ ने
किया था इसीलिए
उनके नाम पर
इसे जालंधर बंध
कहते हैं। कहते
हैं कि यह
बंध मौत के
जाल को भी
काटने की ताकत
रखता है, क्योंकि
इससे दिमाग, दिल
और मेरुदंड की
नाड़ियों में निरंतर
रक्त संचार सुचारु
रूप से संचालित
होता रहता है।
विधि : किसी भी
सुखासन पर बैठकर
पूरक करके कुंभक
करें और ठोड़ी
को छाती के
साथ दबाएँ। इसे
जालंधर बंध कहते
हैं। अर्थात कंठ
को संकोचन करके
हृदय में ठोड़ी
को दृढ़ करके
लगाने का नाम
जालंधर बंध है।
इसके लाभ : इड़ा और
पिंगला नाड़ी बंद होकर
प्राण-अपान सुषुन्मा
में प्रविष्ट होता
है। इस कारण
मस्तिष्क के दोनों
हिस्सों में सक्रियता
बढ़ती है। इससे
गर्दन की माँसपेशियों
में रक्त का
संचार होता है,
जिससे उनमें दृढ़ता
आती है। कंठ
की रुकावट समाप्त
होती है। मेरुदंड
में खिंचाव होने
से उसमें रक्त
संचार तेजी से
बढ़ता है। इस
कारण सभी रोग
दूर होते हैं
और व्यक्ति सदा
स्वस्थ बना रहता
है।
सावधानी : शुरू में
स्वाभाविक श्वास ग्रहण करके
जालंधर बंध लगाना
चाहिए। यदि गले
में किसी प्रकार
की तकलीफ हो
तो न लगाएँ।
शक्ति से बाहर
श्वास ग्रहण करके
जालंधर न लगाएँ।
श्वास की तकलीफ
या सर्दी-जुकाम
हो तो भी
न लगाएँ। योग
शिक्षक से अच्छे
से सीखकर इसे
करना चाहिए।
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