शायद आपको आज के दिन का महत्व न पता हो। आज अमावस्या है और शनिवार का दिन है।
जिसके कारण आज की शनि अमावस्या का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। शनैश्चरी
अमावस्या है। संभव है कि शनैश्चरी अमावस्या के मायने कितने खास हैं, ये बात सभी जानते होंगे । शनिश्चरी अमावस्या योग में
शनिदेव की विधि-विधानपूर्वक उपासना से सुख,
समृद्धि, संपत्ति, शांति, संतान और आरोग्य सुख की
प्राप्ति होती है।
इस दिन शनिदेव की पूजा करने से बिगड़े हुए कार्य भी बनने लगते हैं। शनि की साढ़े
साती से प्रभावित चल रहे जातकों के लिए इस दिन शनि देव की आराधना विशेष लाभकारी
होगी। इस दिन मन से की गई शनि पूजा विशेष लाभ देगी व जीवन में शनिकृपा भी बनी
रहेगी।
शनि अमावस्या के दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व ही गंगा, यमुना अथवा किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। यदि ऐसा संभव न हो, तो घर पर ही साधारण पानी में गंगा या यमुना का जल मिलाकर
स्नान करना चाहिए।
इसके बाद अपने इष्टदेव, गुरुजन, माता-पिता, श्री गणेश, भगवान शिव और सूर्यदेव की आराधना करके सूर्य को जल अर्पित
करना चाहिए। शनैश्चरी अमावस्या को अपने पितरों के निमित्त भी दक्षिण दिशा की ओर
मुख करके काले तिल मिश्रित जल अर्पण करना चाहिए।
ऐसा करने से पितृ दोष दूर होकर पितरों की कृपा जीवनभर मिलती रहती है। पीपल पर
प्रातः अथवा शाम को जल चढ़ाना भी अच्छा उपाय है। शनि देव की मूर्ति पर उनके चरणों
की ओर देखते हुए सरसों का तेल, काले तिल, लोहे की कील या सिक्का, काले वस्त्र का टुकड़ा, काजल आदि अर्पित करते हुए
शनि देव से सभी दुःख और कष्ट दूर करने की प्रार्थना करनी चाहिए।
ऐसा करने से शनि देव जल्द प्रसन्न होकर मनोकामना पूरी करते हैं। 35 से 42 वर्ष की आयु सीमा वाले
जातकों तथा शनि के अशुभ प्रभाव से पीड़ित जातकों को इस शनैश्चरी अमावस्या पर शनिदेव
की उपासना करते हुए श्रद्धानुसार लोहा, भैंस, काली उड़द या मसूर की दाल, सरसों का तेल, काले रंग की वस्तुएं जैसे
छाता, जूते, कम्बल, कपड़ा आदि का दान शाम के समय किसी वृद्ध एवं निर्धन व्यक्ति
को करना अत्यंत ही शुभ परिणाम देने वाला सरल व प्रभावकारी उपाय है।
जिन जातकों की कुंडली में शनि निर्बल राशिगत हो, उन्हें इसके कारण लकवा, कमर दर्द, चोट लगने से दर्द एवं अंग भंग, पेट रोग, कुष्ठ, दमा, नेत्र रोग, वात रोग आदि होने
की संभावना रहती है।
इसलिए इन रोगों से बचाव के लिए जातकों को शनि ग्रह से संबंधित मंत्र “ओउम शं शनैश्चराय नमः” का प्रतिदिन ग्यारह माला जप करना चाहिए। इसके अलावा शनि स्तोत्र, शनि स्तवन, शनि पाताल क्रिया, महाकाल शनि मृत्युंजय स्तोत्र, हनुमान उपासना आदि का विधि पूर्वक पाठ करना भी बहुत उपयोगी माना गया है।
जिन जातकों की राशि में शनि नीच या कमजोर है, उन्हें इस दिन शनि पूजन जरूर करना चाहिए। पूजा के बाद शनि से संबंधित वस्तुएं
दान करना लाभकारी होता है व शनिदेव की कृपा बनी रहती है। इस अमावस्या पर किया गया
शनि पूजन उपासकों को विशेष लाभ पहुंचाता है। इससे ग्रहदोष भी शांत होते हैं और
जीवन में सुख-शांति आती है।
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