बीमारी का बगैर दवाई भी इलाज़ है,मगर मौत का कोई इलाज़ नहीं दुनियावी हिसाब किताब है कोई दावा ए खुदाई नहीं लाल किताब है ज्योतिष निराली जो किस्मत सोई को जगा देती है फरमान दे के पक्का आखरी दो लफ्ज़ में जेहमत हटा देती है

Wednesday 4 September 2019

बड़े मन्दिर के गुरु जी सबसे निराले

अंतर्गत लेख:




गुरु जी की संगत बाकि दुनिया के लोगों से थोड़ी सी अलग है .क्योंकि जो भी यहाँ आया है वो अपनी मर्ज़ी से नहीं आया पर अपने आत्मा की जरूरत को पूरी करने को बुलाया गया है .. ये यात्रा सांसारिक जिम्मेवारी को निभाते हुए अपने अध्यात्मिक उत्थान की है ..हम जितनी जल्दी इस बात को समझ जाये कि इस देह से जो दुनियादारी निभा रहे हैं वो बस एक आवरण है हमरी सोल की . हम अलग अलग किरदार में हैं इस दुनिया रूपी नाटक में पर हम सब की मंजिल है ..ज्योत में समाहित होना ..ये परमात्मा से मिलन ही हमारा आदि और हमारा अंत है
हजारों गुरुओं की धरती है हमारा देश ..पर गुरूजी सबके गुरु हैं ...हम गुरूजी की आराधना कर गुरूजी को कुछ नहीं देते ..हम अपनी मंजिल से थोडा और पास आ जाते हैं ...गुरूजी आये ही हैं हमें मुक्त करने ...परम मुक्ति मिले इससे पहले हमें इस सांसारिक जंजाल से भी खुद को मुक्त करने की इच्छा रखनी होगी ..प्रवचन में सुनते आये की बिना बैराग्य के अध्यात्मिक उत्थान संभव नहीं है .. तो क्या हमें घर संसार से मुंह मोड बिना मुक्ति नहीं मिल सकती ?..
गुरूजी ने इस बार वैराग्य की प्रैक्टिकल परिभाषा हमें समझाई है ..सबसे जुड़े रहकर भी सबसे अलग रहना है ..ये सुनने में कठिन है ..पर गुरूजी की जब मेहर हो जाती है तो ये संभव हो जाता है.. हम जब गुरूजी के शरण में आते हैं ..तब तक या तो सब हमें तिरस्कृत कर चुके होते हैं हमारे लाख अच्छे होने के बाद भी ..या तो गुरूजी से जुड़ने के बाद सब छोड़ जाते हैं .
.ये तो दुनिया की बात हुई ....हमें ...गुरूजी हमसे जुड़े हर इंसान का वो रूप दिखाते हैं जिसे देखने के बाद हम जान जाते हैं कि हमारे वो कभी थे ही नहीं ,उनसे अपने लिए कोई उम्मीद करना ही हमारी नासमझी थी ..फिर हमारा मोह भंग होता है .....ये बात नहीं है कि हमारे आस पास वाला हर इंसान गलत है ... वो बहुत पाक और शुद्ध आत्मा वाला हो सकता है ..पर हमारे अध्यात्मिक रस्ते में उसका कोई योगदान नहीं होगा, इस कारण उसका हमसे दूर रहना ही सही है ..
इस राह पर सबको अकेले जाना है सब जानते हैं फिर भी भीड़ इकट्ठी करने में लगे रहते हैं..अपना अपना रास्ता है गुरूजी गाइड कर रहे हैं फिर भी हम सहमती जुटाने के चक्कर में रहते हैं ..क्या हम सही कर रहे हैं ?
'
यदि हम गलत करेंगे तो हमें बता दिया जाता है ... हम अपनी आवाज़ सुनने की कोशिश तो करें ...जब तक दूसरों की सुनते रहेंगे अपनी अंतर आत्मा की सुनने की आदत नहीं पड़ेगी ..जब तक हम अकेले नहीं होते हम यात्रा नहीं कर सकते ...अकेले रहने की आदत डालनी होगी तभी तो हमारी आत्मा के साथ रह पाएंगे ....जिस दिन हम अकेलापन एन्जॉय करने लगे समझ लें की आत्मा से रूबरू हो गए ...
अकेलापन एक तो हमें मजबूरी से मिलती है जब हमें सब छोड़ जाते हैं ..दूसरा जब हम खुद ही अपनी ख़ुशी से सबको छोड़ देते हैं ...जब हम छोड़ना सिख जाते हैं ये अवस्था बहुत सुंदर है ..क्योंकि अब किसी से शिकायत नहीं रहती ,हम सबसे एक समान प्यार करने लगते हैं .. सब हमसे जुड़े होते हैं पर हम किसी से नहीं ..प्यार सबसे.... पर बिना कुछ पाने की उम्मीद से ..जो दे दिया किसी ने प्यार ..गुरूजी की मेहर मान स्वीकार कर लिया ..नहीं दिया कोई गम नहीं ...अपने आप में मस्त
कुछ भी नहीं छोड़ना है बुरी आदतों के सिवा , घर परिवार दुनियादारी सबके साथ अपनी ड्यूटी सेवा भाव से निभा सकते हैं हम ...अपनी यात्रा पर निरंतर आगे बढ़ते हुए ...धीरे धीरे हम पाएंगे कि हमने जितना छोड़ा था उससे दुगुना साथ चल रहे हैं ..फिर हमारा समर्पण होते ही दुनिया बदल जाती है ..सब कुछ खुद ब खुद होता प्रतीत होता है ..हमें लगता है की हम बस कर रहे हैं कराने वाले हाथ गुरूजी के हैं ...न तो काम के सफल असफल की चिंता सताती है न ही आज और अभी के अलावा किसी भविष्य का इंतज़ार रहता है ....जो रंग राखे ..सब मंजूर
गुरूजी इतने शक्तिशाली हैं कि किसी भी संगत को अथाह अध्यात्मिक शक्ति देकर अपने गद्दी पर बिठा सकते थे ...पर ऐसा नहीं किया क्योंकि वो खुद हर संगत के साथ हर वक़्त जुड़े रहते हैं ..किसी भी मिडिल person की जरूरत नहीं है ..उनकी बातों और दिशाओं को समझने के लिए ..अपनी माँ से कैसे प्यार करना है हम किसी और से थोड़े ही सीखते हैं .. बस आवाज़ तो दें गुरूजी को दिल से ......... पूरी प्रकृति को लगा देते हैं अपने एक संगत की पुकार पर ...
हम सब नौसिखिये हैं ..जब भी कोई हमारी बातों को बिना आत्म चिंतन के ग्रहण करना शुरू करेगा ,अपना ही रास्ता रोक रहा होगा ....गुरूजी को जो समझाना होता है वो समझा ही देते हैं
कोई भी सत्संग वो होता है जो सच हुआ हो ..जिसे सेकड़ों बार दुहराने के बाद भी हुबहू वही रहता है ...ये भगवन और एक भक्त के बीच हुई घटना होती है ..इसे कोई भी तीसरा नहीं समझ सकता ...इस बात की analysis करने की गलती तो हमें करनी ही नहीं है ....गुरूजी की बातों को समझ पाना या समझा पाना नामुमकिन है ..ये वही समझ सकता है जिसपर मेहर हुई है
विवेचना करना मतलब दिमाग लगा देना ..गुरूजी कहा करते की दिमाग तो बहार छोड़ कर ही उनके पास आना है... वहां सिर्फ प्यार और श्रधा का लेन देन होता है .. सत्संग सिर्फ सत्संग होता है ..वो प्लेटफार्म देखकर नहीं किया जाता की यहाँ लोग क्या सुनना चाहते हैं ... जिसे समझ आया गुरूजी की कृपा ..जिसे समझ नहीं आया ..शायद उसका समय नहीं आया है ..इन बातों को समझने के लिए..
सिर्फ गुरूजी को ही सुनना शुरू करें ..खुद जुड़े गुरूजी से.... यही हमें ले जायेगा असली चीज़ तक ...सत्संग के बाद गुरूजी सीधा घर जाने कहा करते ...वो जानते हैं की हम इंसान सत्संग पर भी अपना टीका टिपण्णी करने से बाज़ नहीं आयेंगे ..यदि खुद के साथ रहेंगे तो ही सत्संग को आत्मसात कर पाएंगे ..संगत से ज्यादा मिलना जुलना बढाने की जगह हम गुरूजी से अपनी नजदीकियां बढ़ा सकते हैं
खुद के साथ रहना सीखना बहुत जरूरी है .. खुद को आज़ाद रखना सीखना होगा हमें ...तभी हम वो आनंद को महसूस कर पाएंगे जो हमारी सृष्टी के साथ हमें दी गयी थी ..पर हम सामाजिक बेड़ियों के इतने आदी हो गए कि अभी भी उन्ही से बंध कर रहना अच्छा लगता है,
जहाँ आनंद है वहां ईश्वर है ...हर जगह व्याप्त आनंद को ग्रहण करने लायक बनना होगा हमें
गुरूजी हम सब पर अपनी मेहर करें...
🌺 जय गुरूजी 🌺
LAL Kitab Anmol

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